टिहरी झील के ऊपर नवनिर्मित सड़क के किनारे एक मजार नुमा धार्मिक स्थल कुछ दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है।
इस स्थल पर पहले आधे चांद और तारे के बीच जय पीर 786 बाबा लिखा हुआ है, तथा एक मजार के ऊपर चादर पड़ी है।। साथ ही सफेद और लाल झंडे लगे हुए थे।
जब इस पर स्थानीय ग्रामीणों ने इसका विरोध किया और सोशल मीडिया पर इसको लेकर टिप्पणियां की जाने लगी तो फिर किसी ने इसको फिर से सफेद रंग में पोंछ कर मिटा दिया दिया।
अभी तक की जानकारी के अनुसार यह कार्य किसी स्थानीय व्यक्ति ने किया था और उसने अपनी गलती मान ली है।
किंतु 2 दिन तक यह मामला स्थानीय समाज में चर्चा का विषय बना रहा। कुछ लोग इसे झील की गतिविधियों पर नजर रखने की साजिश के रूप में देख रहे हैं तो कुछ लोग जमीन कब्जाने के हथकंडे के रूप में इसका विश्लेषण कर रहे हैं। बहरहाल यह निर्माण जिसने भी किया है और उसका मकसद चाहे जो भी रहा हो लेकिन यह एक अवैध निर्माण है।
दो दिनों से यह जिस तरीके से चर्चा का विषय बना हुआ है और इसके बावजूद स्थानीय शासन प्रशासन की इस पर चुप्पी कुछ सवाल खड़े करती है।
कुछ लोगों का कहना है कि मजार पर लाल और सफेद रंग का झंडा नहीं लगता। तो कुछ कहते हैं कि पीर बाबा के आगे मुसलमान जय शब्द का इस्तेमाल नहीं करते, इसलिए यह निर्माण किसी मुस्लिम व्यक्ति ने नहीं किया है तो कोई इसे मस्जिद की नींव के रूप में देख रहा है।
टिहरी के शिलापट का ‘नागपुर’ ने लिया संज्ञान
टिहरी में विधायक धन सिंह नेगी ने एक मस्जिद के सुंदरीकरण के लिए ₹2लाख विधायक निधि से जारी किए तो इसका शिलापट चर्चा का विषय बना हुआ है।
दो साल पहले का बना शिलापट अब फिर से चर्चा का विषय है। यहां तक कि संघ के मुख्यालय नागपुर के पदाधिकारियों ने इस शिलापट का संज्ञान लिया है तथा देश विदेश में आरएसएस की विचारधारा से जुड़े टिहरी मूल के लोगों से भी व्यक्तिगत रूप से इसकी चर्चा की है। भाजपा के अनुषांगिक संगठनों की मुस्लिम विरोधी छवि और एजेंडा अब कहीं कहीं उसके नेताओं के लिए मुसीबत भी बन रहा है।
बैजरो पुल की मजार भी चर्चा मे
पौड़ी जिले के बैजरो पुल पर एक जय पीर बाबा दरबार के नाम से मजार बनी है, यहां पर भोले शंकर, जय श्री राम, साईं राम और ओम जैसे शब्द भी अंकित किए गए हैं।
अब ऐसे मे भी यह अहम सवाल है एक ओर हिंदू और मुस्लिम धार्मिक कट्टरता का सवाल है तो वहीं दूसरी ओर पीर बाबा की इस मजार पर हिंदू देवी देवताओं के भी नाम अंकित हैं।
उत्तराखंड के टिहरी और अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी जिलों के गांव में भी मुस्लिम लगभग तेरहवीं शताब्दी से रह रहे हैं और यहीं की संस्कृति, रीति रिवाज, खानपान में घुले मिले हैं।
ऐसे में उत्तराखंड के लोगों को जहां भीतरी और बाहरी सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाले तत्वों के प्रति भी सावधान रहना होगा, वहीं इस बात की भी आवश्यकता है कि कई सदी पहले से यहां रह रहे मुस्लिमों में कोई अलगाव का भाव विकसित ना हो।