केंद्र सरकार, संघ लोक सेवा आयोग के साथ ही जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी को नोटिस। चार सप्ताह में मांगा जवाब
रिपोर्ट- कमल जगाती
नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आईएफएस संजीव चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और संघ लोक सेवा आयोग के साथ-साथ कैट के चेयरमैन जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी को भी व्यक्तिगत रूप से नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जबाब पेश करने को कहा है। मामले के अनुसार फरवरी माह में केंद्र सरकार द्वारा सीधे भर्ती किए जा रहे संयुक्त सचिवों के मामले में तमाम दस्तावेजों के साथ अनियमितता का आरोप लगाते हुए कैट की नैनीताल बैंच में याचिका दायर की थी।
याचिकर्ता का कहना है कि, अक्टूबर में केन्द्र सरकार ने इस मामले की सुनवाई दिल्ली कैट में स्थानान्तरित करने के लिए याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कैट के चेयरमैन जस्टिस रेड्डी ने इसी महीने की चार तारीख को इस मामले की सुनवाई नैनीताल बैंच से दिल्ली बैंच स्थानान्तरित करने के आदेश जारी किए थे। याचिकर्ता के अनुसार चेयरमैन ने अपने आदेश मे कहा था कि, इस मामले की सुनवाई दिल्ली में करने से केन्द्र सरकार की कार्यप्रणाली पर असर पड़ेगा, इसलिए इस मामले की सुनवाई दिल्ली बैंच द्वारा ही की जानी उचित है।
इस निर्णय को संजीव चतुर्वेदी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी। जिसमें यह कहा गया कि, इस मामले में पहले से ही जस्टिस रेड्डी और उनके बीच कई सारे वाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं। अत: जस्टिस रेड्डी इस मामले की सुनवाई जज के रूप में नहीं कर सकते है, क्योंकि इन मामलों में वे स्वयं भी एक पक्षकार हैं। याचिकर्ता का यह भी कहना है कि, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में भी जस्टिस रेड्डी के इसी तरह के अदेशों को रद्द करते हुए उनके विरुद्ध तीखी टिप्पणी की थी और केन्द्र सरकार का रवैया भी प्रतिशोधात्मक बताते हुए 25 हजार का जुर्माना लगाया था।
बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस निर्णय को बरकरार रखते हुए जुर्माने की राशि बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी थी। इसके बाद इन्ही मामलों में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में जस्टिस रेड्डी को अवमानना का नोटिस भी जारी किया गया था। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा न्यायालय के सम्मुख यह भी तथ्य लाया गया कि संजीव चतुर्वेदी और रेड्डी के बीच इतने सारे वादों के लंबित रहते इस मामले की सुनवाई जस्टिस रेड्डी द्वारा नहीं की जा सकती, क्योंकि प्राकृति न्याय का सिद्धांत है। कोई भी व्यक्ति अपने मामले में जज नहीं बन सकता है और न ही निर्णय दे सकता है।
सुनवाई उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई जिसमें केंद्र सरकार, संघ लोक सेवा आयोग और कैट के चेयरमैन को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करना है।