” कारी तू कब्बि ना हारी ” एक साधारण शिक्षक के जीवन-संघर्ष की गाथा है,जो विषम परिस्थितियों से जूझता है| लेकिन कर्तव्य निष्ठा के बल पर गाढ़े समय से पार पा लेता है,यह एक आम आदमी की विजय गाथा है|इस आपाधापी भरे जीवन में जीवन के ‘शाश्वत मूल्यों’ का निर्वहन करना किसी चुनौती से कम नहीं होता|
” कारी तू कब्बि ना हारी ” का नायक अंततः में विजय होता है,मूल कथानक यही संदेश देता है| पुस्तक के लेखक वरिष्ठ पीसीएस अधिकारी ललित मोहन रयाल हैं| इस पुस्तक में उनका गद्य अपने खास अंदाज़ में दिखाई देता है, यह जीवनी विधा में एक अनोखी रचना है, जो एक शिक्षक के जीवन की संघर्ष गाथा का वृतांत है| गढ़वाली बोली के आस्वादन से मिश्रित एक शिक्षक की दास्तान को पढ़ा जाना तो बनता है|
रिपोर्ट:महेश चन्द्र पंत