रुद्रप्रयाग।
रौठिया-जवाड़ी ग्राम समूह पेयजल योजना के निर्माण में करोड़ों रुपए का घोटाला सामने आया है। इसका खुलासा मुख्य विकास अधिकारी की जांच रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि, योजना के क्रियान्वयन में प्रत्येक स्तर पर अनियमिततायें, असंवेदनशीलता और लापरवाही हुई है। वहीं भरदार जन विकास विकास मंच ने सरकार से योजना की एसआईटी जांच की मांग की है।
रौठिया-जवाड़ी ग्राम समहू पेयजल योजना की स्वीकृति वर्ष 2006 में मिली थी। इस योजना के लिए लस्तर नदी के पेयजल स्रोत से करीब 50 किमी ग्रेविटी पाइप लाइन बिछाई गई है। योजना का मुख्य उद्देश्य भरदार क्षेत्र के 19 राजस्व ग्रामों के 52 तोकों में पेयजल आपूर्ति करानी थी। इस योजना की जांच के लिए भरदार जन विकास मंच के अध्यक्ष लक्ष्मी प्रसाद डिमरी ने जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को पत्र भेजा था। जिस पर जिलाधिकारी ने मुख्य विकास अधिकारी को इस योजना के जांच के आदेश दिए थे।
योजना की जांच के बाद मुख्य विकास अधिकारी भरत चंद्र भट्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि, भरदार पेयजल योजना निर्माण के लिए वर्ष 2006 में 12 करोड़ 94 लाख रुपये स्वीकृत हुए थे। इस योजना को तीन वर्ष में पूरा होना था। लेकिन वन भूमि के कारण इस पर 2013 में काम शुरू हुआ। जिसमें योजना पर मुख्य पाइप लाइन बिछाने के सिवाय कोई काम नहीं हुआ। जबकि स्रोत पर ट्रीटमेंट प्लांट, सेटलिंग टैंक यूनिट, स्लो सेंड फिल्टर और वितरण पाइप लाइन का काम ही शुरू नहीं किया गया।
इस काम के लिए रिवाइज़ स्टीमेट शासन को भेजा गया और वर्ष 2018 में नाबार्ड के तहत 12 करोड़ 44 लाख रुपए स्वीकृत हुए। इस तरह इस योजना पर कुल लगभग 25 करोड़ 39 लाख रुपये स्वीकृत हुए, जिसमें 15 वर्षों में 20 करोड़ 62 लाख रुपये की धनराशि खर्च कर दी गई है। पहले हुए अनुबंध में 2009 तक काम पूरा होना था और रिवाइज स्टीमेट के बाद हुए अनुबंध में 26 सितंबर 2019 तक यह सभी काम पूरे होने की बात कही गई। लेकिन पिछले 15 वर्षों में पानी की सप्लाई तो दूर प्राथमिक टेस्टिंग का काम भी विभाग नहीं कर पाया है। पेयजल श्रोत, वितरण लाइन और मेन सप्लाई लाइन के काम अधूरे हैं।
जल निगम के अधिकारियों ने योजना के निर्माण में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार पाइप खरीदने में किया। योजना की वन भूमि स्वीकृति के बिना ही वर्ष 2009 से वर्ष 2013 तक विभागीय स्तर से पाइप खरीदे गए। डीपीआर में खरीदे गए पाइपों की कीमत करीब तीन करोड़ 94 लाख रुपये स्वीकृत थी। लेकिन विभाग ने करीब छह करोड़ 11 लाख रुपये में पाइप खरीदे। यहां बिना डीपीआर संशोधन हुए करीब एक करोड़ 71 लाख रुपये का अधिक व्यय पाइप खरीद में किया गया। जबकि शासन से स्वीकृत योजना में स्पष्ट था कि वन भूमि प्रकरण के निस्तारण के बिना योजना में व्यय नहीं किया जा सकेगा। जबकि पाइप सप्लाई भी योजना का अंश था।
मुख्य विकास अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में स्पष्ट कहा कि विभाग ने योजना निर्माण में घोर लापरवाही बरती है। जिसके चलते 15 वर्षों बाद भी ग्रामीणों को योजना का लाभ नहीं मिल पाया है। जिस तरह से योजना निर्माण में लापरवाही बरती जा रही है, उससे लगता नहीं कि भविष्य में यह कार्य पूर्ण हो पायेगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सक्षम अधीक्षण अभियंता स्तर के वरिष्ठ अधिकारी को दिन-प्रतिदिन इस कार्य के अनुश्रवण की जिम्मेदारी सौंपी जाए।
वहीं भरदार जन विकास मंच के अध्यक्ष लक्ष्मी प्रसाद डिमरी ने कहा कि भरदार पेयजल योजना निर्माण में हुए घोटाले के कारण यह योजना आज भी अधूरी है। जिन अधिकारियों ने करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे किये हैं, उन्हें सलाखों के पीछे होना चाहिए। उन्होंने सरकार से इस योजना की एसआईटी से जांच कराने की मांग की है।