स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार द्वारा रिजर्व शिवालिक एलिफेंट कॉरिडोर को डी-नोटिफाइड करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि, विकास के लिए पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ संतुलित विकास का संतुलन बनाना भी जरुरी है।
उच्च न्यायालय ने एन.एच.ए.आई.से सवाल किया है कि दिल्ली–देहरादून हाईवे के लिए वह पेड़ों को बचाने के लिए क्या कदम उठा रहें हैं ?
न्यायालय ने याचिकाकर्ता से भी पूछा कि, किस तरीके से 2500 वृक्ष कटने से दून को अक्षम्य श्रति होगी और क्या इस श्रति की भरपाई अधिक वृक्षारूपण करके नहीं की जा सकती ?
मुख्य न्यायधीश आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई की । मामले के अनुसार देहरादून निवासी रीनू पाल ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि 24 नवम्बर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जोलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार करने लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व फारेस्ट को डी-नोटिफाइड करने का निर्णय लिया गया। इसमें कहा गया कि शिवालिक एलिफेंट रिजर्व के डी-नोटिफाइड नहीं करने से राज्य की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं, लिहाजा इसे डी-नोटिफाइड करना अति आवश्यक है।
इस नोटिफिकेशन को याचिकाकर्ता ने न्यायालय में चुनौती दी। न्यायालय ने सरकार के इस डी-नोटिफिकेशन के आदेश पर रोक लगा रखी है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि रिजर्व शिवालिक एलीफेंट कॉरिडोर 2002 से रिजर्व एलिफेंट कॉरिडोर की श्रेणी में शामिल है, जो लगभग 5405 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यह वन्यजीव बोर्ड द्वारा ही नोटिफाइड किया गया क्षेत्र है। उसके बाद भी बोर्ड इसे डी-नोटिफाइड करने की अनुमति कैसे दे सकती है, जबकि एलिफेंट इस क्षेत्र से ननैपाल तक जाते हैं। मामले में अगली सुनवाई 25 अगस्त को निहित की गई है।