स्टोरी(कमल जगाती, नैनीताल):-
उत्तराखंड के नैनीताल की नैनीझील में बरसातों के समय, भारी तादाद में सिल्ट(मलुवा)जमा हो जाता है । पहले से इसे दो तीन वर्षों में निकलने का रिवाज था लेकिन अब पिछले सात वर्षों से इसमें से सिल्ट नहीं निकाली गई है । आज कुमाऊं आयुक्त दीपक रावक्त से पूछे जाने पर उन्होंने सिल्ट हटाने को महत्वपूर्ण तो बताया लेकिन विशेसज्ञों की राय के बाद ।
‘स्कन्द पुराण’ के ‘मानस खण्ड’ में नैनीताल को त्रिऋषि सरोवर अर्थात तीन साधुवों अत्रि, पुलस्क और पुलक की भूमि बताया गया है ।
ब्रिटिश काल मे वर्ष 1841 में इसकी खोज पीटर बैरन नामक अंग्रेज ने की थी । इसके बाद ये झील धीरे धीरे लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी । कश्मीर में आतंक के फैलने के बाद पर्यटकों का रुझान उत्तराखंड की इस सुंदर झील की तरफ बड़ा । बहुत कम समय में अपनी बेहद खूबसूरती के कारण ये झील, देश विदेश के लोगों का फेवरेट पिकनिक स्पॉट बन गई । समय के साथ वैध और अवैध निर्माणों का मलुवा शहर के चारों तरफ के 62 नालों के माध्यम से झील में घुल गया । कुछ वर्ष पहले तक झील सफाई का काम होता था, लेकिन पिछले सात वर्षों से संबंधित जिलाधिकारी कन्नी काटते दिख रहे हैं । झील से मलुवे को गर्मियों के सीजन के समय ही हटाया जाता है क्योंकि इस दौरान झील का पानी अपने न्यूनतम शून्य या उससे भी कम स्तर पर होता है ।
नैनीझील में मशीनों से अंतिम बार वर्ष 2015 में मलुवा निकाला(डिसिल्टिंग)गया था । इसके बाद वर्ष 2017 में हाथों से मैन्युली मलुवा निकाला गया था । संयोग की बात ये है कि इन दोनों वर्षों में आई.ए.एस.दीपक रावत जिलाधिकारी थे जबकि अब वो आयुक्त और अध्यक्ष झील विकास प्राधिकरण जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं ।
आयुक्त से अब नैनीताल की जनता समेत इस शहर के प्रेमी, झील से सिल्ट निकालकर इसके अस्तित्व को बचाने की उम्मीद कर रहे हैं । आयुक्त का कहना है कि झील के अस्तित्व को बचाने के लिए सिल्ट को निकालना तो जरूरी है, लेकिन इसे बिना विशेसज्ञों की राय के किया जाना खतरनाक है, इसलिए उनकी पहले राय ली जाएगी ।