महेश चंद पंत
काला पीलिया, हेपिटाइटिस बी और सी विषाणु के संक्रमण की दर तेजी से बढ़ रही है। इनका पता तब चलता है जब एक स्वस्थ व्यक्ति पैथोलॉजी लैब में जांच कराता है, एक्सीडेंटल फाइंडिंग या फिर रक्त कोष केन्द्र में अपना रक्तदान करता है। इस रक्त में चार प्रकार की जांचें आवश्यक रूप से की जाती है। जो निशुल्क होती हैं, इनमें हेपेटाइटिस बी, हेपिटाइटिस सी ,सिफलिस ,और एड्स की जांच। कोई भी जांच पॉजिटिव पाए जाने पर रक्त कोष द्वारा उस रक्त की यूनिट को नियमानुसार नष्ट कर दिया जाता है। रक्तदाता को उसके उपलब्ध मोबाइल पर सूचना दी जाती है। ऐसे व्यक्तियों के निशुल्क उपचार की व्यवस्था भी सरकार द्वारा की जाती है। एक भेंटवार्ता में पूर्व निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य एवम् परिवार कल्याण उत्तराखंड डॉक्टर एल.एम.उप्रेती बताते हैं कि वर्तमान में हेपेटाइटिस बी से भी अधिक हेपेटाइटिस सी के मामले सामने आ रहे हैं, हेपेटाइटिस बी के खिलाफ कई वर्षों से वैक्सीन उपलब्ध है और लगातार लगाई जा रही है, यह राजकीय वैक्सीन केंद्रों पर निशुल्क लगाई जाती है। और विगत 20 वर्षों से इसके लिए काफी प्रचार प्रसार भी किया गया है। किंतु हेपिटाइटिस सी के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है न ही इसके प्रति किसी प्रकार की जागरूकता जनमानस में है, इस कारण यह रोग तेजी से फैल रहा है। हमारी बदलती हुई जीवन पद्धति, खानपान में हो रहे बदलाव भी इसके बढ़ने के कारण हो सकते हैं,। कम निद्रा ,तनावग्रस्त जिंदगी, अधिक दवाओं का सेवन ,शराब का सेवन ,धूम्रपान , भी कुछ कारण है जो इसके बढ़ने में सहायक हो सकते है।
हेपेटाइटिस सी एक आर एन ए वायरस है यह वायरस शरीर तक कैसे पहुंच जाता है इसमें मतभेद है ।कुछ जातियों में यह प्राकृतिक रूप से अधिक पाया जाता है कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में भी। ज्यादातर मामलों में असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित सुई, औजार, संक्रमित उस्तरे से दाढ़ी बनाना या मुंडन करना, दांत तोड़ने के संक्रमित औजार संक्रमित खून इसके लिए जिम्मेदार माने जाते हैं ।
हेपेटाइटिस सी का विकृत रूप ही सिरोसिस है। सिरोसिस विकसित होने में लंबा समय लगता है। प्रारंभिक अवस्था में लीवर बढ़ जाता है , जिसका सामान्यतया रोगी को पता नहीं चलता। फिर धीरे-धीरे वजन घटना, कमजोरी , खून की कमी , पेट का बढ़ जाना , पेट में पानी भर जाना , पैरों में सूजन आदि की दिक्कतें होने लगती हैं। ऐसे समय पर कई बार डॉक्टरों द्वारा पेट से पानी भी निकाला जाता है किंतु इससे बीमारी ठीक नहीं होती । लीवर में एक बार सिरो सिस होने पर अंतहीन चक्र स्थापित हो जाता है और लीवर में छोटी-छोटी गांठें बन जाती है, जिसका पता लीवर की बायोस्पी करने पर ही चलता है
खून के माध्यम से हेपिटाइटिस सी के विषाणु लीवर की कोशिकाओं में पहुंच जाते हैं। शुरुआत में हल्का बुखार और पीलिया की शिकायत हो सकती है किंतु जल्दी ही यह क्रॉनिक स्टेज में पहुंच जाता है। संक्रमण कोशिकाओं को धीरे धीरे समाप्त करता है। क्रॉनिक एक्टिव हेपेटाइटिस, जिस कारण लिवर का आकार सिकुड़ कर छोटा हो जाता है, *जिसे लिवर सिरोसिस कहते हैं। बाद में लिवर सिरोसिस के रोगियों में लिवर कैंसर होने की संभावना अत्यधिक रहती है।* हेपेटाइटिस बी के मुकाबले हेपेटाइटिस सी के रोगियों में लिवर कैंसर की संभावना कहीं अधिक होती है। हेपेटाइटिस सी का उपचार महंगा होने के कारण व्यक्ति समय पर उपचार नहीं करा पाता है और एक दिन यकृत अपना काम करना बंद कर देता है फल स्वरुप लिवर फेल हो जाने के कारण मृत्यु हो जाती है। यद्यपि लीवर फेलियर के लिए लीवर प्रत्यारोपण का विकल्प रहता है लीवर प्रत्यारोपण की सुविधा देश के इने गिने चिकित्सालय में ही उपलब्ध है जैसे कि एम्स नई दिल्ली, पीजीआई चंडीगढ़, पीजीआई लखनऊ सरीके अस्पताल, किंतु यह अत्यधिक जटिल और खर्चीला ऑपरेशन है। दान में लीवर को प्राप्त करना भी कठिन है। इसलिए हेपेटाइटिस से बचाव आवश्यक हो जाता है।
रक्त केंद्र रुद्रपुर में वर्ष 2022 में जनवरी से दिसंबर तक कुल 5817 यूनिट रक्त स्वैच्छिक रूप से जमा किया गया। आपको आश्चर्य होगा जानकर कि *इनमें से 310 यूनिट रक्त को इसलिए नष्ट कर दिया गया क्योंकि यह संक्रमण पाया गया था* ।संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने से, संबंधित रोगियों को जिन्हें रक्त चढ़ाया जाता , वह भी संक्रमण हो जाते हैं। रक्त केंद्र द्वारा हर व्यक्ति को स्वस्थ रक्त देने की व्यवस्था की जाती है जिससे कि रक्त केंद्र के माध्यम से कोई संक्रामक रोग न फैलने पाए । *इसके लिए रक्त यूनिट की स्क्रीनिंग की जाती है ,स्क्रीनिंग में सबसे अधिक 201 प्रकरण हेपेटाइटिस सी के थे। 82 मामले हेपिटाइटिस बी के भी सामने आए। हेपिटाइटिस सी के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि वास्तव में चौंकाने वाली है और इसके लिए और अधिक शोध करने की आवश्यकता है।*
हर व्यक्ति में हेपेटाइटिस सी के प्रति जागरूक होना अनिवार्य प्रतीत होता है। रक्तदान के बाद अपना स्टेटस पता करना भी व्यक्ति की जिम्मेदारी है ।पॉजिटिव पाए जाने पर प्राथमिक स्टेज पर ही इसका उपचार संभव है। उपचार राजकीय चिकित्सालय में निशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है। जो उपचार कुछ वर्ष पूर्व लाखों में होता था आज निशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है। अपना खान-पान सही रखें ,शराब सिगरेट, पान बीड़ी ,का सेवन न करें, असुरक्षित यौन संबंधों से बचें , विसंक्रमित रेजर का प्रयोग करें ,झोलाछाप डॉक्टरों से सावधान रहें ,संक्रमित सुई से इंजेक्शन न लगवाए बढ़ती हुई नशे की लत और इंजेक्शन द्वारा नशा करना हेपिटाइटिस सी को दावत देने जैसा है। समय-समय पर अपना स्टेटस जरूर पता करते रहे।
विभिन्न सामाजिक संस्थाओं अथवा निजी चिकित्सा संस्थानों व अन्य प्रकार से आयोजित रक्तदान शिविरों के आयोजनों में भी इस प्रकार की सतर्कता अति आवश्यक है , संक्रमित रक्त चढ़ाना जीवन के प्रति घातक है। हेपेटाइटिस के बढ़ते खतरे से सभी को सावधान और सतर्क रहने की आवश्यकता है।
डॉक्टर एल एम उप्रेती ,एमडी, ट्रांसफ्यूजन साइंस विशेषज्ञ रक्त केंद्र , जिला चिकित्सालय रुद्रपुर।