मोरी/पुरोला 18 अगस्त 2023
नीरज उत्तराखंडी
सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त करवाने के उच्च न्यायालय के आदेश ने कई विभाग के अधिकारियों की नींद उड़ा दी है। आदेश के पालनार्थ आनन-फानन में अतिक्रमण का चिन्हकरण कर लाल निशान भी लगा दिए और भवन स्वामियों के भवनों पर नोटिस चस्पा कर अपने कार्य की शुरुआत कर दी ।
लेकिन प्रश्न यह उठ रहा है जब कब्जा किया जा रहा था तब संबंधित विभाग कहां सो रहा था
वन भूमि पर अतिक्रमण का आलम तो यह है कि वन भूमि व वृक्षों के रक्षक कई वनकार्मिक भू- भक्षी बनकर वन भूमि पर अतिक्रमण कर आलीशान आवासीय भवन बना गये। तो कुछ ने सड़क किनारे पक्का निर्माण कर व्यवसायी भवन बना डाले। ताकि सेवानिवृत्त के बाद सुख से जीवन यापन कर सके। लेकिन जिस थाली में खाया उसी में छेद करने वाले इन वनकार्मिक की हाईकोर्ट के आदेश ने नींद उड़ा दी है।
वही दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से अति संवेदनशील क्षेत्र में नाप भूमि या लीज पट्टे की भूमि की आड़ में सरकारी भूमि पर कब्जा कर निर्माण नियमों की अनदेखी कर बहुमंजिली कोठियां बनाने वालों का चैन भी छीन गया है।
कब्जे करने का यह साहस सफेद पोश रसूखदारों, आईएएस आईएफएस व पीसीएस अधिकारियों से भी मिला है जिन्होने स्थानीय काश्तकारों से कुछ भूमि खरीदकर उस नाप भूमि की आड़ में सैकड़ों नाली वन व सिविल भूमि पर सौकडों देवदार व बाज बुरांश हरे वृक्षों को काट कर अवैध कब्जा कर न केवल सेब के बागों का विस्तार किया बल्कि आलीशान बंगले भी बना डाले।
आखिर हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने का जोखिम कोई भी अधिकारी नहीं उठाना चाहता । महज अपने फर्ज की आंशिक खानापूर्ति कर अपना पल्लू छुडाना चाहते है। मजे की बात तो ये है कि जिन राजस्व कर्मियों व वन कर्मियों को अतिक्रमण मुक्त करवाने के लिए भेजा जायेगा । वे स्वयं अतिक्रमण करवाने में सहयोगी रहें हैं ।जमीन की रजिस्ट्री करवाने में चौपाल लगाकर अधिकारी के साथ शामिल रहे है। उन्ही विभागों के बड़े अधिकारी अतिक्रमणकारी हैं।ऐसे में अतिक्रमण हटाना टेढी खीर साबित हो रही है।