टिहरी के घनसाली ब्लाक के अंतर्गत गंगी गांव में 3 दलित परिवारों ने अपना घर इसलिए हमेशा के लिए छोड़ दिया क्योंकि उन्हें वहां के सवर्ण जाति के परिवारों से खतरा पैदा हो गया था।
कुछ समय पहले एक शादी के दौरान इन दलित परिवारों के साथ सवर्ण परिवार और परिवार के लोगों ने जाति को लेकर विवाद खड़ा किया था। विवाद इतना बढ़ा कि उन्हें गांव छोड़ना पड़ा ।
अब वह लोग अपनी जन्मभूमि छोड़कर कहीं और बसेरा करेंगे। हजारों साल से यह 3 परिवार गंगी गांव में एक सामाजिक सौहार्द पूर्ण व्यवहार से जीवन यापन कर रहे थे। उन्हें अब नई जगह पर नई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा।
उत्तराखंड राज्य के इतिहास में यह पहली घटना है, जब दलितों को गांव छोड़ना पड़ा। ताज्जुब इस बात का है कि जिन दलितों के बिना मंदिर में पूजा नहीं होती, मंदिर की सजावट और बनावट नहीं बनती, और यह भी कि उत्तराखंड का ऐसा कोई भी गांव नहीं है जहां एक गांव में दो-दो मंदिर नहीं होते हैं और इस देवभूमि में और इन मंदिरों की सेवा करते-करते आखिर गंगी गांव के दलितों को सवर्णों के दमनकारी रवैए के कारण नए साल 2018 की शुरुआत से पूर्व गांव से विदा होना पड़ा है।
आगे पढ़िए यह था पूरा मामला
विगत वर्ष 2 दिसंबर 2017 को गंगी गांव में जब एक सफल परिवार मे एक शादी समारोह था। इस शादी में एक दलित ढोली को ढोल बजाने जाना था। लेकिन गांव के सवर्णों ने उक्त ढोली को शराब पिला दी, जिससे वह नशे में होने के कारण ढोल नहीं बजा पाया। इस पर आक्रोशित होकर गांव के सवर्णों ने उसकी जमकर पिटाई कर डाली। यह झगड़ा इतना अत्यधिक बढ़ गया कि दलितों को सवर्णों के डर से अपना पैत्रिक गांव छोड़ने को विवश होना पड़ा। किंतु पुलिस ने राजनीतिक दबाव में दलितों के खिलाफ ही कार्यवाही कर दी। दो तरफा उत्पीड़न से घबराकर इन परिवारों ने देहरादून के परेड ग्राउंड स्थित धरना स्थल पर धरना शुरु कर दिया। किंतु इनको कोई सहारा न मिला। हारकर इन परिवारों ने हमेशा के लिए अपना गांव छोड़ दिया।