श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में आउटसोर्सिंग को लेकर एक बार फिर खड़ा हुआ बड़ा बवाल
रिपोर्ट- जगदम्बा कोठारी
श्रीनगर। वीरचंद्र सिंह गढ़वाली राजकीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान, श्रीनगर में मनमानियों का खेल रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जहां एक ओर सरकार कोरोना वारियर्स को सम्मान देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर मेडिकल कॉलेज के स्टाफ को मनमाने तरीके से आउटसोर्सिंग में डाला जा रहा है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार कर गुपचुप तरीके से 450 पदों पर आउटसोर्सिंग के तहत ट्रांसफर किया जा रहा है।
दरअसल मेडिकल कॉलेज में पिछले 10 वर्षों से विभिन्न पदों पर 450 स्थानीय बेरोजगार कार्यरत हैं। इन रोजगार पाए कर्मियों में लगभग 200 संविदा, 120 वेतन भोगी, 80 के करीब नियत और 50 के करीब उपनल के माध्यम से कार्यरत हैं। 2 वर्ष पूर्व मेडिकल कॉलेज में ई-टेंडर के माध्यम से 519 पदों के लिए आउटसोर्सिंग के माध्यम से निविदा निकाली थी। जिस पर इन्हीं कर्मचारियों में से 300 कर्मचारियों ने माननीय उच्चतम न्यायालय में आपत्ति दर्ज की थी।
इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने 27 फरवरी 2019 को कॉलेज प्रशासन को आदेशित किया था कि न्यायालय में पहुंचे इन सभी टीम 300 कर्मचारियों को यथावत रखकर शेष अन्य पदों पर आउटसोर्सिंग के तहत भर्ती प्रक्रिया जारी रखी जाए। लेकिन अब कॉलेज प्रशासन ने गुपचुप तरीके से एक निजी कंपनी को 519 पदों पर आउट सोर्सिंग भर्ती के लिए एक निजी कंपनी को ठेका दे दिया है। हैरत की बात है कि, कोर्ट से स्टे पाए इन 300 कर्मचारियों को भी आउटसोर्सिंग में डाल दिया गया है। जिसका कि यह कर्मचारी पुरजोर विरोध कर रहे हैं।
गुपचुप तरीके से खेला ठेका देने का खेल
वर्षों से तैनात इन दैनिक, नियत और संविदा कर्मियों को कॉलेज प्रशासन ने आउटसोर्सिंग में डालने के लिए एक कंपनी को करोड़ों मे ठेका देने की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने के साथ ही फाइनेंसियल बिड भी खोल दी है। 2 माह पूर्व गोपनीय तरीके से इस ठेके की टेक्निकल बिड भी खोल दी गई थी। आउटसोर्सिंग कंपनी ‘एसआईएस’ नाम की एक कंपनी को करोड़ों रुपए में कॉलेज प्रशासन ने गुपचुप तरीके से ठेका दे दिया। इस बात की भनक जब इन कर्मचारियों को लगी तो कर्मचारियों में हड़कंप मच गया।
कोरोना वारियर्स को सम्मान देने के बजाय तिरस्कार
श्रीनगर मेडिकल कॉलेज कोरोना काल की शुरुआत से ही कोरोना सैंपलिंग एंव संक्रमितों के इलाज का मुख्य केंद्र रहा है। जहां प्रतिदिन टिहरी, चमोली, पौड़ी और रुद्रप्रयाग सहित अन्य जिलों के सैकड़ों सैंपल जांच के लिए भेजे जाते थे और यह वही कर्मचारी हैं जिन्होंने सैंपल लेने से लेकर लैब टेस्टिंग तक के कार्य अपनी जान जोखिम पर लेकर किए। आज इन्हीं कर्मचारियों को सम्मान देने के बजाय सरकार इन्हें आउटसोर्सिंग में डालकर इनका उपहास उड़ा रही है। प्रदेश में आउटसोर्सिंग कंपनियों का कितना बड़ा खेल चल रहा है यह किसी से छुपा नहीं है। इसी विरोध को लेकर इन कर्मचारियों ने पुनः हाईकोर्ट की शरण लेने का फैसला किया है।