उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका को सुनने के बाद ग्लेशियरों और उस क्षेत्र के लोगों को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश किया था । दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता आचार्य अजय गौतम का आरोप है कि राज्य सरकार ने आदेशों को गंभीरता से नहीं लिया जिस कारण ये हादसा देखने को मिला है ।
आचार्य अजय गौतम ने वर्ष 2014 में उत्तराखंड हिमालय में मौजूद 917 ग्लेशियर और हिमालय बैल्ट में मौजूद लगभग 5000 ग्लेशियरों की मोनेटरिंग करने और उनके फटने की स्थिति में आम लोगों को भारी नुकसान से बचाने के लिए योजना बनाने के लिए जनहित याचिका दायर की थी ।
उन्होंने न्यायालय से कहा था कि विश्व की सबसे बड़ी गलेशयरों की इस रेंज में उत्तराखंड के कुल गलेशयरों में से बीस प्रतिशत ग्लेशियर अपना आकार तेजी से बदल रहे हैं । आचार्य अजय गौतम बताते हैं कि उन्होंने न्यायालय के माध्यम से पहले ही सरकारों को आगाह कर दिया था कि अगर ये ग्लेशियर फटते हैं तो क्षेत्र में बड़ी जनहानि होगी ।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार, न्यायालय में धन और तकनीक का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से भागती रही । बताया कि वर्ष 2018-19 में उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करे जिसके लिए सरकार ने कहा कि वो 2020 तक अलग अलग जगहों में एडवांस वार्निंग सिस्टम और डॉप्लर रडार को लगा देंगे । उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए पर्यटन और धामों की यात्रा पर ज्यादा ध्यान दिया, लेकिन देशभर से उत्तराखंड आने वाले लोगों की उसे कम चिंता है ।