उत्तरकाशी के बाद अब बागेश्वर में भी पेड़ों का सामूहिक काटान, स्थानीय चिंता बढ़ी

बागेश्वर, उत्तरकाशी के बाद अब यहां भी हज़ारों पेड़ों पर खतरा, राष्ट्रीय राजमार्ग विस्तार परियोजना में 5700 से अधिक वृक्ष प्रभावित

उत्तरकाशी में बड़े पैमाने पर हो रही पेड़ों की कटान को लेकर विरोध थम भी नहीं पाया था कि अब बागेश्वर जिले से भी चिंताजनक जानकारी सामने आई है। बागेश्वर, कांडा राष्ट्रीय राजमार्ग को जिला मुख्यालय से घिंघारुतोला तक सुरक्षित और आधुनिक बनाने की प्रक्रिया तेज़ हो चुकी है। इसी सुधार कार्य के दौरान रास्ते में आने वाले 5700 से अधिक पेड़ों को हटाने की तैयारी अंतिम चरण में है।

जानकारी के अनुसार, बागेश्वर और अल्मोड़ा जिलों से होकर गुजरने वाले इस हाईवे को उन्नत बनाने के लिए वन विभाग और निर्माण एजेंसियों की औपचारिकताएं लगभग पूरी हो चुकी हैं। परियोजना को पांच हिस्सों में बांटा गया है, लेकिन सबसे बड़ा भाग बागेश्वर क्षेत्र में पड़ रहा है। इस वजह से अधिकतर वृक्ष कटान भी बागेश्वर जिले में ही होगा।

मिडिया से बातचीत में बागेश्वर के डीएफओ आदित्य रत्न ने पुष्टि की कि कुल 5745 पेड़ों पर इसका सीधा असर होगा। उन्होंने बताया कि नियमों के तहत जितने पेड़ हटाए जाएंगे, उनकी भरपाई चार गुना पौधारोपण के माध्यम से की जाएगी।

इस परियोजना से जिन वृक्षों पर असर पड़ेगा, उनमें देवदार, अखरोट, काफल, जामुन, अमरूद, नाशपाती, शहतूत, आम और बांज जैसे करीब 30 से अधिक प्रजातियों के पेड़ शामिल हैं। खास बात यह है कि कई फलदार पेड़ भी इस कटान सूची में शामिल हैं, जिससे स्थानीय लोगों में चिंता और अधिक बढ़ गई है।

पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की समस्या पहले से ही गंभीर रही है, विशेषकर बरसात के महीनों में। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि बड़ी संख्या में पेड़ हटने के बाद ढलानों की स्थिरता पर असर पड़ सकता है और भविष्य में भूस्खलन की घटनाएं और बढ़ सकती हैं। इसी वजह से पर्यावरण प्रेमी इस परियोजना पर सवाल उठा रहे हैं और प्राकृतिक संतुलन को लेकर आशंकाएं जता रहे हैं।

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