पूर्व मुख्यमंत्री तथा वर्तमान हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा हरिद्वार में अवैध खनन का मुद्दा संसद में उठाए जाने से प्रदेश में भाजपा सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
यह स्थिति तब है जबकि धामी सरकार ने अवैध खनन की परिवहन और भंडारण पर प्रभावी रोक लगाते हुए पिछले 7 सालों में सर्वाधिक राजस्व अर्जित किया है। अवैध खनन के परिवहन और भंडारण पर रोक लगाने के लिए बाकायदा एक कंपनी को काम पर लगाया है जिससे सरकार का राजस्व में कई गुना बढ़ोतरी हुई है।
उत्तराखंड की राजनीति में अवैध खनन के आरोप किसी भी सरकार के लिए एक बड़े दाग की तरह होते हैं। इसीलिए विपक्ष हमेशा अवैध खनन को एक राजनीतिक हथियार बनाकर इस्तेमाल करता है। लेकिन अपनी ही पार्टी के सांसद द्वारा इस हथियार का राज्य सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करने से सरकार खुद को असहज स्थिति में महसूस कर रही है।
त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में चरम पर था अवैध खनन
आंकड़े उठाकर देखा जाए तो हरिद्वार में सर्वाधिक अवैध खनन वर्ष 2018 से 2020 के बीच हुआ है। जब हरिद्वार में गंगा मे खनन पर पूर्णतया प्रतिबंध होने के दौरान भी पथरी से लेकर अन्य क्षेत्रों में बिना रवन्ने की खनन सामग्री को क्रेशर से चोरी छुपे निकाले जाने का कार्य काफी चरम पर था।
अकेले पथरी क्षेत्र में दर्जनों स्टैंड क्रशरों से खुलेआम अवैध खनन अगस्त 2017 में पथरी थाने के तहत चौकी प्रभारी समेत 11 पुलिस कर्मचारी अवैध खनन में संलिप्त पाए गए थे। तत्कालीन एसपी कृष्ण कुमार वी के सामने स्टोन क्रेशर की कर्मचारियों ने मीडिया की मौजूदगी में एक भाजपा पदाधिकारी का नाम लिया था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने खुद अवैध खनन को दिया था बढ़ावा। बनाए थे गजब नियम
तत्कालीन डोईवाला विधायक तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खुद अपनी विधानसभा क्षेत्र में ही सर्वाधिक खनन के भंडारण और क्रेशर के लाइसेंस आवंटित किए थे।
यही नहीं बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खनन के लिए कृषि कार्यों में लगे ट्रैक्टरों को भी खनन में कार्य करने की इजाजत देने के लिए बाकायदा शासनादेश जारी किया था।
यही नहीं बल्कि कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग की आड़ में बाकायदा एक शासनादेश जारी किया था जिसमें नदियों से जेसीबी के माध्यम से खनन कराया जा सके। इस पर बाद में हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए इस पर रोक लगा दी थी।
सरकार में खनन के कारोबारी का इतना बोलबाला था कि वह तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ अपने फोटो खिंचवाकर बाकायदा अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर मुकदमा तक दर्ज करवा देते थे।
त्रिवेंद्र सरकार में चरम पर था अवैध खनन। खजाने को जमकर लगती थी चपत
यदि त्रिवेंद्र कार्यकाल की बात करें तो वर्ष 2017-18 में 620 करोड़ के राज्यों का लक्ष्य खनन विभाग द्वारा रखा गया था लेकिन मात्र 437 करोड रुपए का राजस्व सरकार को मिला बाकी राजस्व अवैध खनन की भेंट चढ़कर खनन माफिया और तत्कालीन नेताओं में बंट गया।
इसी तरीके से वर्ष 2018-19 में 750 करोड़ का लक्ष्य रखा गया था लेकिन मात्र 451 करोड़ का ही राजस्व मिला।
वर्ष 2019-20 में विभाग ने राजस्व का लक्ष्य नहीं बढ़ाया और पिछले साल का ही 750 करोड़ का लक्ष्य रखा , लेकिन मात्र 391 करोड़ का ही राजस्व मिला।
वर्ष 2020-21 में भी सरकार ने राजस्व के खनन का लक्ष्य नहीं बढ़ाया और उसे पिछले दो वर्षो की भांति 750 करोड़ का ही लक्ष्य रखा लेकिन इस वर्ष भी सरकार को मात्र 506 करोड़ का राजस्व मिला।
2021-22 में फिर से सरकार ने राजस्व का लक्ष्य नहीं बढ़ाया लेकिन इस वर्ष भी लगभग 200 करोड़ तक का ही राजस्व राज्य सरकार को मिल पाया। बाकी अवैध खनन माफिया व नेताओ का रैकेट खनन की चोरी से लगातार फलता फूलता रहा।
बाकायदा अवैध खनन के चलते तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत ने अपने खुद के क्षेत्र के डीएफओ को अवैध खनन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए वन मुख्यालय से अटैच कर दिया था।
2019 में हरिद्वार के लक्सर कोतवाली क्षेत्र की बाण गंगा नदी में अवैध खनन का काला कारोबार खुलकर भला फूला।
अपना कार्यकाल भूल धामी को घेरने में जुटे त्रिवेंद्र
हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा भाजपा सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बाकायदा मीडिया में भी सरकार को घेरा और कहा कि अवैध खनन से राज्य के खजाने को राजस्व की हानि होती ही है लेकिन पर्यावरण को भी नुकसान होता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाजपा सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि हमारे प्रधानमंत्री पर्यावरण के प्रति बहुत जागरूक हैं और वह पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं।
अवैध खनन मुद्दे का इस्तेमाल पार्टी के भीतर अपने प्रतिद्वंदियों पर बढ़त बढ़ाने के लिए किए जाने से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कोई प्रतिक्रिया नहीं आई किंतु लगातार इस तरह के बयानों से सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता रहा है।
यूं तो त्रिवेंद्र रावत सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं चूकते। पिछले दिनों भी राज्य में कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार को गिरती हुई त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मीडिया में बयान दिया था कि राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब हो गई है।
त्रिवेंद्र रावत के कार्यकाल मे अवैध खनन पर कैग ने भी खड़े किए थे सवाल
त्रिवेंद्र सरकार में अवैध खनन का कितना बोलबाला था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की कैद ने बाकायदा अवैध खनन को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी और उसको भी केवल नहीं बताया था कि यह तो एक छोटा सा जांच का हिस्सा है।
त्रिवेंद्र सरकार के दौरान वर्ष 2019 की राष्ट्रीय लेखा परीक्षा रिपोर्ट में रिवरबेड माइनिंग करने वालों से शुल्क की वसूली में धोखाधड़ी और घोटालों को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए थे।
यही नहीं बल्कि वर्ष 2021 की ऑडिट रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि राज्य सरकार की एजेंसियों ने ठेकेदारों को बिना ट्रांसिट पास के लगभग 37.5 लाख मैट्रिक टन खनन सामग्री उपयोग करने दिया।
2021 की ऑडिट रिपोर्ट में बाकायदा सवाल उठाया गया है कि नदियों से लाखों टन बजरी रेत और बोल्डर अवैध रूप से निकाले गये, जिससे पर्यावरण और राजकोष दोनों को घाटा हुआ।
वर्ष 2021 की ऑडिट रिपोर्ट में तत्कालीन सरकार पर गंभीर सवाल खड़े करती हुई ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार रिवर बेड माइनिंग करने वालों से किसी प्रकार की पेनल्टी वसूलने में भी विफल रही है, जो काम से कम 104.008 करोड रुपए होती है।
सवाल उठाने वाले खुद घेरे में
भले ही कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खनन प्रेमी मुख्यमंत्री का तमगा देते हों अथवा पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत वर्तमान सरकार पर अवैध खनन करने का लेबल लगते हों लेकिन हकीकत यह भी है कि राष्ट्रीय लेखा परीक्षा विभाग ने बाकायदा वर्ष 2015-16 से लेकर 2021 तक की एक पूरी लेखा परीक्षा रिपोर्ट तैयार की है जो अवैध अवैध खनन पर गंभीर सवाल खड़े करती है और संयोग वर्ष यह कार्यकाल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर सवाल खड़े करने वाले दो मुख्य राजनेताओं हरीश रावत और त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री कार्यकाल का ही है।
त्रिवेंद्र कार्यकाल में मातृ सदन संतों की गई थी जान, काफी था मुखर
त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में मातृ सदन की साध्वी पद्मावती ने 62 दिन तक अवैध खनन के खिलाफ अनशन किया था, जिससे वह गंभीर रूप से बीमार हो गई थी। उसी दौरान मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने इस बात पर कड़ा आक्रोश जाहिर किया था कि सितंबर 2020 में सरकार ने झूठा आश्वासन देकर उनका अनशन समाप्त कराया था।
अवैध खनन से बुरी तरह निराश होकर वर्ष 2020 में मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद ने 3 अगस्त से अनशन करने का भी निर्णय लिया था। वह इससे पहले भी अनशन पर बैठे थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से उन्होंने वर्ष 2020 , 29 मार्च को अपने अनशन पर विराम लगाया था ।
अवैध खनन के मुद्दे पर त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में ही मातृ सदन संत आंदोलन करते हुए मौत के मुंह में समा चुके हैं।
11 अक्टूबर 2018 को बाकायदा मातृ सदन के स्वामी शिवानंद महाराज ने सीधे-सीधे आरोप लगाया था कि स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद की हत्या हुई है।
उनकी मौत के बाद मातृ सदन के साधु गोपाल दास अनशन पर बैठ गए थे और गंगा निर्मलता के लिए 20 अप्रैल 2019 को 189 दिनों से अनशन रत मातृ सदन के साथ ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा था, लेकिन सरकार ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
22 जून 2018 को अनशन पर बैठने से पहले स्वामी सानंद ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था लेकिन तत्कालीन राज्य सरकार ने इसके बावजूद गंगा में अवैध खनन पर रोक नहीं लगी।
अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के संसद में दिए गए बयान को राजनीतिक नजरिये से देखा जा रहा है और उनके राजनीतिक प्रतिनिधि पुष्कर सिंह धामी घेरने के रूप में देखा जा रहा है। यदि त्रिवेंद्र सिंह रावत अवैध खनन को बढ़ावा देने के लिए अपनी सरकार में ही गंभीर होते तो संभवतः आज स्थिति कुछ और होती।
अवैध खनन को लेकर अब तक अधिकांश सिर्फ राजनीति ही होती रही है , किंतु अवैध खनन पर लगाम लगाने में भाजपा और कांग्रेस की दोनों ही सरकारें असफल साबित हुई हैं।
वर्तमान में इतना जरूर हुआ है कि अवैध खनन से माफिया के पास जा रहे धन का एक बड़ा हिस्सा अब सरकार राजस्व का खजाना बढ़ा रहा है।
हाल ही में खनन के परिवहन और भंडारण का कार्य एक निजी कंपनी को देने के बाद सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी हुई है, हालांकि सरकार को यह भी समीक्षा करती रहनी होगी कि उक्त निजी कंपनी से अधिक से अधिक राजस्व बटोरा जा सके।
इसके अलावा लेकिन आगे भी यह देखने वाली बात होगी कि धामी सरकार अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के हमले से बचने के लिए अवैध खनन पर लगाम लगाने के लिए और क्या व्यवस्था करती है।