भ्रष्ट निदेशक मेहरबान की कारस्तानी। पांच लाख की बनी फिल्म पर बीस लाख का किया भुगतान
नैनीताल। अवैध तरीके से फिल्मों को बांटे गए लाखों के अनुदान की जांच के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखण्ड शासन से दो सप्ताह के अंदर जवाब देने को कहा है। कोर्ट ने अनुदान लेने वाले एक फिल्म निर्माता को भी काउंटर एफिडेविट जमा करने के लिए 48 घण्टे के अंदर नोटिस तामील कराने के आदेश दिए हैं। श्री भण्डारी ने याचिका में कहा है कि, 5 लाख की लागत से बनी फिल्म पर 20 लाख रूपए का अनैतिक अनुदान पाने के लिए 98 लाख से अधिक के फर्जी बिल लगा दिए गए। उन्होने बिलों का ऑडिट करवाने की मांग की है।
उत्तराखण्डी फिल्म निर्माता निर्देशक प्रदीप भण्डारी ने उत्तराखण्ड हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। याचिका में श्री भण्डारी ने कहा है कि, उनके द्वारा एक गढ़वाली फिल्म बनायी गई थी ‘हैलो यूके’। फिल्म को 5 लाख रूपये में मनीष वर्मा द्वारा खरीद लिया गया था। गत वर्ष 8 नवम्बर को प्रदेश सरकार द्वारा उत्तराखण्डी फिल्मों को अनुदान दिया गया। जिसमें फिल्म ‘हैलो यूके’ के लिए मनीष वर्मा द्वारा 98 लाख 24 हजार रूपए के बिल बाउचर जमा कर 20 लाख का अनुदान ले लिया गया। यह अनुदान फर्जी बिलों के आधार पर लिया गया है।
इसके साथ ही अनुदान बांटने में अधिकारियों द्वारा जानबूझकर गड़बड़झाला किया गया। मनीष वर्मा द्वारा जमा किए गए बिल अधिकतम स्वयं उनके (श्री वर्मा) द्वारा सृजित किए गए हैं। जहां उन्होंने स्वयं के वाउचर दर्शा कर कई बार अपनी ही कम्पनी से स्वयं ही लाखों रूपए लेना दर्शाया है। कानून के हिसाब से कोई व्यक्ति 20 हजार से ज्यादा नकद रूपए ले दे नहीं सकता है। मगर मनीष वर्मा द्वारा अपनी ही कम्पनी से कई बार 20-20 लाख रूपए तक स्वयं ही नकद लिए जाना दर्शाया गया है। लेकिन ताज्जुब यह है कि, अनुदान बांटने वाले सूचना विभाग के आला अफसरों को यह सब गड़बड़झाला नज़र नहीं आया। यहां तक कि उत्तराखण्ड फिल्म नीति 2015 (संशोधित नीति 2019) के क्रम संख्या 14 के खण्ड क व ख में साफ है कि अनुदान फिल्म की प्रोसेसिंग लागत का 30 प्रतिशत ही अनुदान दिया जाएगा।
वह भी किसी लैब कोप्रोसेसिंग अर्थात सिर्फ शूटिंग पर आया खर्चा। उसमें एडिटिंग, प्रचार प्रसार आदि खर्चे शामिल नहीं हो सकते। अगर फिल्म हैलो यूके 5 लाख में मनीष वर्मा ने लिया है तो उन्हें 5 लाख रूपए पर ही अनुदान मिलना चाहिए। मगर अधिकारियों को यह भी नहीं दिखा । इतना ही नहीं प्रदीप भण्डारी के फर्जी हस्ताक्षरों वाले 5 लाख रूपए के फर्जी बाउचर भी उक्त बिल फाइल में लगाए गए हैं।
प्रदीप भण्डारी द्वारा अनुदान चेक जारी होने के तीसरे दिन यानिकि 11 नवम्बर 2019 को उत्त्राखण्ड फिल्म विकास परिषद को पत्र भेजकर व फोन द्वारा यह सब गड़बड़झाला के बारे में बताया गया। 13 व 14 नवम्बर को भी पत्र देकर सरकारी धन के गबन को रोकने को कहा गया। मगर अफसरों की अनदेखी के चलते सप्ताह बाद मनीष वर्मा को 20 लाख रूपए भुगतान कर दिया गया। श्री भण्डारी द्वारा पुनः 13 मार्च 2020 को भी श्री वर्मा द्वारा जमा किए गए बिलों का आॅडिट करने को पत्र दिया गया। मगर उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद व सूचना विभाग के आला अफसरों द्वारा निरन्तर अनदेखी की गई और जानबूझ कर सरकारी धन लुटाया गया। जिससे कि विभागीय अधिकारियों की इसमें मिलीभगत नज़र आती है।
कार्यकारी अधिकारी उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद एवं महानिदेशक सूचना द्वारा लगातार अनदेखी करने पर प्रदीप भण्डारी द्वारा गत माह 3 नवम्बर को नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दाखिल किए। याचिका स्वीकार करते हुए न्यायालय ने सचिव उत्तराखण्ड शासन, महानिदेशक सूचना, मुख्य कार्यकारी अधिकारी उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद, अपर निदेशक सूचना तथा मनीष वर्मा को प्रति शपथपत्र कोर्ट में देने को कहा। शासन, महानिदेशक और फिल्म विकास परिषद द्वारा प्रति शपथपत्र कोर्ट में जमा होने के पश्चात कल मंगलवार को वीडियो काफे्रंसिग के माध्यम से सुनवाई हुई।
प्रतिपक्ष संतोषजनक जवाब अदालत में नहीं रख पाए। जिसे पर कोर्ट ने मामले को बहुत गम्भीर मानते हुए अधिकारियों को फटकार लगायी तथा स्पष्ट वाब दो सप्ताह के भीतर कोर्ट में जमा करने के आदेश जारी किए। साथ ही मनीष वर्मा को कांउन्टर एफिडेविट जमा करने हेतु 48 घण्टे में नोटिस पहुंचाने को कहा है। श्री भण्डारी की ओर से हाईकोर्ट में अधिवक्ता भुवन भट्ट पैरवी कर रहे हैं। श्री भण्डारी ने कहा कि कुछ गलत लोग और भ्रष्ट अधिकारी इस प्रकार के घोटाले कर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की छवि खराब करने में तुले हैं। क्योंकि उत्तराखण्ड फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष भी मुख्यमंत्री हैं।