उत्तराखंड में जमीनों का खेल लंबे समय से खेला जा रहा है। कभी जमीनों पर कब्जे तो कभी रजिस्टर में फर्जीवाड़ी की खबरें अब आम हो चली है।
ताजा मामला नगर निगम की एक बेशकीमती करोड़ो की जमीन का है,जिसे ठिकाने लगाने की तैयारियां जोरों पर चल रही है।
कुछ अधिकारी लोग ही इस नगर निगम की जमीन को ठिकाने लगाने की ताक में लगे हुए हैं। बस शासन से मंजूरी मिलने की देरी हैं।
दरअसल,सहस्रधारा रोड स्थित एटीएस कॉलोनी में नगर निगम की बेशकीमती जमीन हैं, जिसे एक व्यक्ति की सिफारिश पर निगम ने जमीन को एक्सचेंज करने का प्रस्ताव शासन को भेजा है। उक्त व्यक्ति की जमीन डांडा लखौंड वार्ड में है, जबकि निगम की जमीन पॉश कॉलोनी में है, जिसकी कीमत करोड़ों में है। मंजूरी मिलने के बाद उपरोक्त जमीन पर प्लॉटिंग करने की योजना है।
दरअसल एटीएस कॉलोनी में नगर निगम की करीब 3800 वर्गमीटर जमीन है। यह पहले गोल्डन फॉरेस्ट में दर्ज थी। बाद में इसे ग्राम समाज को सामुदायिक प्रयोग के लिए दिया गया। वार्ड बनने के बाद यह जमीन नगर निगम को मिली है, जिस पर पार्क बनाया जाना प्रस्तावित है।
नियमानुसार सामुदायिक प्रयोग के लिए प्रस्तावित भूमि को भू उपयोग में नहीं बदला जा सकता।बावजूद इसके कुछ अधिकारी नियमों को ताक पर रखकर प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने में लगे हैं।
सूत्रों के मुताबिक पता चला हैं कि डांडा लखौंड में निगम को बदले में जो जमीन मिलेगी, वह आबादी में दर्ज है। जबकि एटीएस कालोनी में स्थित जमीन पर पार्क प्रस्तावित है।
अब शासन मंजूरी दे देता है तो इसका भू उपयोग भी आबादी में बदल जाएगा । लखौंड स्थित जमीन को निगम की एटीएस कॉलोनी स्थित जमीन से एक्सचेंज करने के लिए एक प्रस्ताव नगर निगम को सौंपा। निगम की ओर से शासन को रिपोर्ट भी सौंप दी गई है, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि शासन इस मामले में जनहित में कोई निर्णय ले।
लेकिन बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि बेशकीमती जमीन को आनन-फानन में एक व्यक्ति को क्यों दिया जा रहा है!
इस पूरे मामले को गोपनीय रखा गया है, ताकि स्थानीय लोगों और निवर्तमान पार्षद की ओर से कोई विरोध दर्ज नहीं हो।
यह मामला संज्ञान में है। नगर निगम की ओर से जमीन एक्सचेंज करने का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया है। शासन स्तर से जो निर्णय होगा, उसी के तहत प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। -सोनिका, प्रशासक नगर निगम, जिलाधिकारी देहरादून