जोशीमठ के प्रभागीय वनाधिकारी किशन चंद केंद्रीय विजलेंस की टीम ने दबोच लिया
करोड़ो के लॉकर व करोड़ों की बेनामी संपत्ति के चलते विजलेंस टीम दबोचा
अनुज नेगी
जोशीमठ के प्रभागीय वनाधिकारी किशन चंद की जांच प्रदेश स्तर पर अभी चल ही रही थी कि बुधवार को केंद्रीय विजलेंस की टीम ने उन्हें दबोच लिया और अपने साथ दिल्ली ले गयी। बता दें कि किशनचंद अग्रिम जमानत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे थे मगर याचिका दायर करने से पहले ही विजलेंस की टीम ने दबोच लिया। आपको बताते चलें कि उनके 18 लाॅकर पकड़े गए हैं जिसमें करोड़ों रूपये हैं।
जीरो टोलरेंस के नाम पर गाल बजाने वाली सरकार पर एक सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर वन विभाग के मुखिया जयराज ने किशन चंद के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए राज्य की विजिलेंस को अनुमति क्यों नहीं दी ??
जुलाई 2016 को प्रकाशित आवरण कथा
विजिलेंस अनुमति मांगता रह गया लेकिन जयराज ने नहीं दी। क्या कोई जयराज से पूछने की जुर्रत करेगा कि आखिर उन्होंने किसके इशारे पर यह अनुमति प्रदान नहीं की ??
क्या कोई उत्तराखंड के फॉरेस्ट चीफ जयराज को पूछ सकता है कि आखिर आपने किशनचंद को दो दो विभाग किस खुशी में थमा रखे थे। किशन चंद Dfo अलकनन्दा भूमि संरक्षण वन प्रभाग गोपेश्वर,व उप निदेशक नन्दा देवी बायोस्पर गोपेश्वर के पद पर तैनात थे। क्यों भाई ! क्या यही है आपका जीरो टोलरेंस ??
जब विजिलेंस चौतरफा घेराबंदी में लगी हुई थी और कार्यवाही करने की अनुमति मांग रही थी तो फिर कार्यवाही करने के बजाय अथवा अनुमति देने के बजाय आखिर किसके कहने पर किशन चंद को इनाम के तौर पर ₹25करोड़ के और काम आवंटित कर दिए गए? जाहिर है कि देर सबेर संरक्षण देने वाले भी चपेट मे आएंगे।
पर्वतजन के पाठकों को याद होगा कि इस पर “एक और वीरप्पन” के नाम से आवरण कथा प्रकाशित की गयी थी। जिसमे विस्तार से किशन चंद के घोटाले सबूतों के साथ खोले गये थे। विजिलेंस ने इसी का संज्ञान लेकर पर्वतजन से समस्त दस्तावेज प्राप्त किये तथा विभागीय स्तर पर अपनी जांच में इनको सही पाने के बाद किशन चंद के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा दर्ज कर दिया था।
गौरतलब है कि वर्ष 2000 में भी विजिलेंस ने किशन चंद की खुली जांच की थी और उसमें पाया था कि किशन चंद के पास अरबों रुपए की संपत्ति है और जब विजिलेंस इसकी संपत्ति कोई जांच नहीं कर सका तो विजिलेंस ने आखिर में यह लिख दिया कि किशन चंद के पास अकूत संपत्ति है तब नया नया राज्य बना था और जांच रिपोर्ट अधिकारियों ने रफा दफा कर दी थी। यह जांच रिपोर्ट ही आज गायब है।
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पर्वतजन ने तत्कालीन मुख्य सचिव रामास्वामी को भी दस्तावेजों के साथ इस मामले से अवगत कराया था लेकिन तब रामास्वामी ने भी बड़ी धूर्तता के साथ इस मामले को दबा दिया था।
इसके बाद विजिलेंस ने हरीश रावत के कार्यकाल में भी किशन चंद के खिलाफ पर्वतजन की खबरों को दिखाते हुए मुकदमा दर्ज कराने की अनुमति मांगी थी लेकिन किशन चंद की पत्नी के कांग्रेसी नेता होने के चलते तब हरीश रावत ने भी इसकी अनुमति नहीं दी थी।
वर्तमान सरकार मे भी किशनचंद सरकार और उच्चाधिकारियों की आंखों का तारा बना हुआ था लेकिन किशन चंद के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले इतने जबरदस्त थे कि विजिलेंस की राह को रोकना असंभव था। नतीजा केंद्रीय विजलेंस् ने दबोच ही लिया।
लिहाजा विजिलेंस ने एक साल किशन चंद की पूरी घेराबंदी कर लेने के बाद सोच समझकर हाथ डाला और आज परिणाम सबके सामने है।
इससे पहले आयुर्वेद विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार मृत्युंजय मिश्रा के घोटालों को भी पर्वतजन ने आवरण कथा के माध्यम से सबूतों के साथ खोला था और परिणाम यह है कि आज वह भी जेल में है। जाहिर है कि ऊपर वाले के घर में देर है अंधेर नहीं। भ्रष्ट कोई भी हो बच नहीं पाता है, सब का टाइम आएगा !!