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एक्सक्लूसिव: पढिए पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं दिए जाने वाले अध्यादेश की काॅपी। और इसका विश्लेषण

September 7, 2019
in पर्वतजन
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सबसे पहले देखिए  अध्यादेश  की काॅपी और,फिर राजनीतिक विश्लेषक इंद्रेश मैखुरी का लेख

उत्तराखंड सरकार पूर्व मुख्यमंत्रियों को दिये गए सरकारी आवासों का किराया माफ करने के लिए अध्यादेश लायी है. इस अध्यादेश के जरिये पाँच पूर्व मुख्यमंत्रियों को अब वो लाखों रुपये नहीं चुकाने होंगे,जो कि आवंटित आवासों हेतु उन्हें चुकाने थे. दरअसल उत्तराखंड उच्च न्यायालय,नैनीताल ने उन सभी नेताओं से किराया वसूलने का आदेश दिया,जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री होने की हैसियत से सरकारी आवास निशुल्क आवंटित थे.
उत्तराखंड उच्च न्यायालय,नैनीताल में एक जनहित याचिका (Writ Petition No.90 of 2010 (PIL)) दाखिल करके रुरल लिटिगेशन एंड एंटाईटलमेंट केंद्र(रुलेक) ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को निशुल्क आवास आवंटित किए जाने की व्यवस्था को अवैध करार देते हुए,इसे समाप्त करने और सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों से उक्त आवासों का किराया वसूले जाने की मांग की थी. इस मामले की सुनवाई करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आर.सी. खुल्बे की खंडपीठ ने 26 फरवरी 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसे 03 मई 2019 को सुनाया गया. उक्त फैसले में उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि 6 महीने के भीतर सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से आवंटित आवासों का किराया बाजार दर पर जमा करना होगा. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो राज्य सरकार उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही अमल में लाये. साथ ही उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त बिजली, पानी, पेट्रोल आदि पर हुए व्यय को जमा करने का आदेश दिया और पूर्व मुख्यमंत्रियों द्वारा जमा न किए जाने की दशा में सरकार को कानूनी तरीके से पूर्व मुख्यमंत्रियों से उक्त व्यय की वसूली का निर्देश दिया. अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने केवल एक कार्यालय आदेश पर पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास आदि सुविधाएं दिये जाने को अवैध करार दिया.
उक्त याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य मंत्रिमंडल ने पूर्व मुख्यमंत्रियों के बकाया किराए की माफी का संकल्प पारित किया और इस आशय का एक शपथ पत्र सरकार की तरफ से 20 फरवरी 2019 को उच्च न्यायालय में भी दाखिल किया गया. मंत्रिमंडल के उक्त संकल्प और न्यायालय में दाखिल शपथ पत्र में कहा गया कि राज्य के लिए पूर्व मुख्यमंत्रियों की अमूल्य सेवाओं को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवासों के बकाया किराए को माफ कर दिया जाये. परंतु अपने फैसले में उच्च न्यायालय ने लिखा कि न तो मंत्रिमंडल के संकल्प और न ही न्यायालय में दाखिल शपथ पत्र से यह स्पष्ट हो सका कि वे क्या “अमूल्य सेवाएँ” हैं,जिनकी एवज में राज्य सरकार,इन पूर्व मुख्यमंत्रियों के आवास के किराए के बकाए की माफी चाहती है ! उच्च न्यायालय ने यह भी लिखा कि उक्त पूर्व मुख्यमंत्रियों की मुख्यमंत्री की हैसियत से की गयी सेवाओं(चाहे उन्हें अमूल्य ही क्यूँ न माना जाये) की एवज में उनके प्रति बरती गयी उदारता, न्यायोचित नहीं है.
इस तरह देखें तो उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार उत्तराखंड सरकार को पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी गयी निशुल्क आवास आदि की सुविधाओं की शुल्क वसूली करनी चाहिए थी. परंतु मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार तो किराया माफी का अध्यादेश ले आई. यह सरकार को हासिल विधायी शक्तियों का खुला दुरुपयोग और उच्च न्यायालय के आदेश का मखौल उड़ाने वाली कार्यवाही है.
प्रश्न यह उठता है कि जिन लोगों के सरकारी आवास के किराये का बकाया माफ करने के लिए उत्तराखंड सरकार अध्यादेश ले कर आई है,वे क्या दीन-हीन, निर्धन,साधनहीन लोग हैं ? जी नहीं,वे सभी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री,केंद्र में मंत्री,सांसद,विधायक आदि पदों पर रहे हुए लोग हैं. उनके चुनावी शपथ पत्रों को ही देखें तो उनके धनधान्य का अंदाजा हो जाता है.
सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों में से भगत सिंह कोश्यारी ऐसे थे,जिन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से उन्हें आवंटित आवास का किराया चुकाने में असमर्थता जताई. तो क्या कोश्यारी जी वाकई ये लाखों रुपये का बकाया नहीं चुका सकते हैं ? 2014 के लोकसभा चुनाव में सम्पत्तियों के ब्यौरे का जो शपथ पत्र उन्होंने दाखिल किया है,उसे पढ़ कर तो ऐसा नहीं लगता. उस शपथ पत्र के अनुसार तो उनके पास 18 लाख रुपये से अधिक की चल संपत्ति है.साथ ही पिथौरागढ़ में 30 लाख रुपये का होटल है,बागेश्वर स्थित खेमला गाँव में 3 लाख रुपये मूल्य की कृषि भूमि और 4 लाख रुपये का आवासीय भवन है.
इसी तरह एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खण्डूड़ी द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव में दाखिल शपथ पत्र के अनुसार उनकी कुल चल-अचल संपत्ति 4 करोड़ रुपये से अधिक है.
पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कुल संपत्ति चुनावी शपथ पत्र के अनुसार दो करोड़ रुपये से अधिक है. निशंक जी के शपथ पत्र के अनुसार उनके पास देहारादून में भी एक करोड़ रुपये मूल्य का आवसीय भवन है. अपना करोड़ रुपये का आवसीय भवन होने के बावजूद उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से सरकारी बंगला क्यूँ चाहिए था और उसका किराया वे क्यूँ नहीं चुका रहे थे,ये तो खुद वो ही बेहतर जानते होंगे !
पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के चुनावी शपथ पत्र के अनुसार उनकी कुल संपत्ति एक करोड़ रुपये से अधिक है.
इन सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों द्वारा चुनाव के दौरान दाखिल शपथ पत्रों से यह साफ है कि घोषित तौर पर वे लाखों से लेकर करोड़ों रुपये की संपत्ति के मालिक हैं. यह भी गौरतलब है कि शुरू में इन पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवासीय भवन आवंटित करते हुए सरकार द्वारा उनका किराया 1000 से 1200 रुपये के बीच तय किया गया था. लेकिन इस मामूली किराए को चुकाने की जहमत भी नहीं उठाई गयी. और जब उच्च न्यायालय ने कहा कि इनसे बाजार दर से किराया वसूला जाये तो उत्तराखंड सरकार इनके किराया माफी का अध्यादेश ले आई है. यह अध्यादेश एक तरह से सरकार द्वारा “अपने लोगों” के लिए, किसी भी हद तक जा कर मुफ़्त सुविधाएं देने की मिसाल है. उत्तराखंड जैसा राज्य जहां सरकार रोजगार न देने के लिए खजाना खाली होने का बहाना रचती है,जहां कर्मचारियों के वेतन-भत्तों के लिए बाजार से कर्ज पर पैसा उठाना पड़ता है,वहीं आर्थिक रूप से सम्पन्न एवं सक्षम पूर्व मुख्यमंत्रियों का लाखों रुपया माफ करने के लिए सरकार न्यायिक,विधायी और नैतिक सीमाओं को लांघने पर उतारू है ! यह मनमानापन है, एक निरर्थक उद्देश्य के लिए जनता के खजाने की लूट और बंदरबांट है।


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