आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली आम लोगों की समझ से परे है। राज्यभर में अलग-अलग स्थानों पर आबकारी निरीक्षक (इंस्पेक्टर) के 40 कार्यालय हैं। इन कार्यालयों में से अधिकांश किराये के भवन में संचालित हो रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि विभाग इन कार्यालयों के किराये का भुगतान नहीं कर रहा है, जबकि मकान मालिक को लगातार किराया मिल रहा है। सवाल यह है कि कौन ऐसा ‘धर्मात्मा’ है जो सरकारी विभाग के कार्यालयों का किराया जमा कर रहा है। महंगाई के दौर में यह तो अविश्वसनीय है कि आबकारी निरीक्षक अपने वेतन से इसका भुगतान कर रहे हों।
शराब की तस्करी पर रोक लगाने और शराब व्यवसाय पर पैनी नजर रखने के लिये आबाकरी विभाग में निरीक्षकों की नियुक्ति की जाती है। विभाग के इन निरीक्षकों के लिये प्रदेशभर में 40 कार्यालय खोले गये हैं। इनमें से 6 कार्यालय ही ऐसे हैं जो सरकारी भवन में संचालित हो रहे हैं शेष 34 किराये के निजी भवनों में मौजूद हैं। इन 34 कार्यालयों में से अधिकांश के किराये का भुगतान विभाग की ओर से नहीं किया जा रहा है।
विभाग के पास ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं ही नहीं जिनके आधार पर कहा जाये कि निरीक्षकों के दफ्तरों का किराया सरकार की ओर से पे किया जा रहा है। जबकि दूसरी ओर सम्बंधित मकान मालिकों का कहना है कि विभाग पर उनके भवन का कोई किराया लंबित नहीं हैं।
साफ है कि कोई न कोई किराये का भुगतान कर रहा है। काबिलेगौर है कि अक्सर ऐसी घटनायें सामने आती हैं जिनमें आबकारी महकमे के अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में रहती है। शराब माफिया और तस्करों से विभाग का गठजोड़ भी किसी से छिपा नहीं है। यदि निरीक्षकों के कार्यालयों के किराये के भुगतान की पड़ताल की जाये तो इस गठजोड़ के सच का खुलासा होना तय है।
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‘यह मामला मेरे संज्ञान में नहीं है। यदि ऐसा है तो यह गंभीर विषय है। मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी’।
_ सुशील कुमार, आयुक्त आबकारी विभाग।