चमोली हादसे मे झूठी वाहवाही।सात दिन बाद भी टनल मे फंसी 35 जिंदगियां
रिपोर्ट- विनय केडी
चमोली हादसे का आज सातवां दिन है। मुख्यमंत्री ने हादसे के दिन ही तुरंत मौके पर पहुंचकर, और मोदी जी के सहायता सम्बन्धी फोन ने जितनी द्रुत गति से सुर्खियां और वाहवाही बटोरीं अभी तक बचाव कार्य उतनी स्पीड नहीं पकड़ पाया है।
लेकिन इन सब बतौलेबाजियों के बीच आज सातवें दिन तक टनल के अंदर फंसे 35 लोगों को बचाने की कवायद में रेस्क्यू में लगीं टीमें कुल जमा 200 मीटर भी नहीं खोद पायीं हैं । यह नहीं कि रेस्क्यू में लगी टीमें काम नहीं कर रहीं हैं। लेकिन उपलब्ध जंग लगी मशीनरी के आगे उनके हौसले भी मजबूर हैं। जबकि कारगर मशीनें मुहैय्या कराने का जिम्मा सरकारों और व्यवस्थाओं का था जिसमें वह पूरी तरह से फेल हुई हैं।
सूत्रों की मानें तो दिल्ली के बड़े मीडिया हाउसेज के आपदा विशेषज्ञ पत्रकार जो कि आपदा पर्यटन हेतु सरकारी हैलीकॉप्टर से तपोवन पहुंचें हैं, आज सात दिन बाद भी किसी होने वाले चमत्कार पर खबरें चला रहे हैं। जिस टनल में इस ठंड के मौसम में ग्लेशियर से निकला मलबा घुसा हो वहां फंसी 35 जिंदगियां घण्टा किसी चमत्कार की वजह से बचीं होंगीं।
मीडिया का काम यह था कि, इन सब की बजाए पहले दिन के पहले घण्टे से ही सरकार पर दबाव बनाता ताकि बेहतर मशीनों का इंतजाम कर रेस्क्यू अभियान समय से किया जा सकता। लेकिन इसके उलट मीडिया पहले दिन से ही मालिक के वफादार कुत्ते की तरह गुणगान करने में पूरी शिद्दत से जुटा हुआ है…. जबकि हासिल अब तक “शून्य” ही है ।
गौरतलब यह भी है हादसे के दिन ही दिल्ली से जुमलेश्वर महाराज के “उत्तराखंड की सहायता करने में कोई कोताही नहीं बरती जायेगी” जैसे बयान भी मीडिया ने उनके उत्तराखंड प्रेम के कई एंगल से दिखाए। लेकिन अभी तक मदद के नाम पर अच्छी मशीनों की व्यवस्था भी न करायी जा सकीं। सालों पुरानी मशीनें हमारी जंग लगी सरकारी मशीनरी की तरह “हांफने” लगीं हैं।
आपदाओं में सहायता भेजने से जुमलेश्वर महाराज का पुराना नाता है। आपको याद होगा कि कुछ साल पहले दिल्ली से नेपाल, मीडिया सहित तुरंत सहायता तुरंत पहुंचाई गई थी। इंटरनेशनल बेइज्जती हुई वो अलग। और यह वही मीडिया है जो “दाढ़ी” से पाकिस्तान कंपा देता है। ख़ैर यह भी हैरत की बात है कि नेपाल सहायता चंद घण्टों के अंदर पहुंचा दी गई थी लेकिन उत्तराखंड …..
नेशनल मीडिया से कई गुना बुरी स्थिति हमारे प्रदेश की मीडिया व यहां के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों की है जिन्हें यह गुमान रहता है कि ग्राउण्ड जीरो पर काम करने का उनसे ज्यादा अनुभव किसी को नहीँ है । प्रादेशिक मीडिया और तथाकथित बुद्धिजीवियों की समझ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वो टनल में फंसीं 35 जिंदगियों और 200 से अधिक लापता लोगों पर फोकस करने के बजाय नेताओं के भ्रमण और सरकार द्वारा बांटी जा रही राशन के पैकेटों को आपदा राहत एवं बचाव समझ सके हैं ।
सात दिनों में इनमे से किसी माई के लाल की यह हिम्मत नहीं हो सकी कि पहले दिन से ही सरकार से आपदा रेस्क्यू के लिए डंडा करता। जबकि ये लोग पहले दिन से ही सरकार और रेस्क्यू टीमों के बेहतरीन सामजंस्य की ख़बरें चला रहे हैं ।
प्रादेशिक मीडिया के कुछ पत्रकारों के बौद्धिक स्तर का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि बेशक RSS भी ग्राउंड पर पहुंच चुकी है, लेकिन हमारे कुछ स्वनामधन्य पत्रकारों ने तो 2013 की केदार आपदा में जुटी RSS के निक्कर वाली फ़ोटो तक पोस्ट करते समय यह तक नही सोचा कि RSS का निक्कर तीन साल पहले प्रमोशन पाकर फुल पैंट बन चुका है।