नयी विधानसभा परिसीमन में पहाड़ पर हावी हो जाएगा मैदान।
ध्रुव रौतेला
मेरा मानना है कि उत्तराखण्ड की राजधानी गैरसैंण होगीतो दूरस्त देहाती पर्वतीय इलाकों में जहां विकास नहीं पहुंचा है, राजधानी बन जाने से कुछ हलचल तो बढ़ेगी ही । साथ ही नई गतिविधियां भी शुरू होंगी । मुख्यमंत्री और उनका सरकारी अमलाबैठेगातो अपने आप सड़क और दूरसंचार जैसे सुविधाएं भी पीछे पीछे आएंगी । पिछले दिनों मैं गैरसैंण गया था । वहां अनियोजित तरीके से भवन बन रहे हैं । नेता अफसल पहले ही यहां के हालात इतने बिगड़ देना चाहते हैं कि बाद में उन्हें बहाना मिल जाए कि साहब यहां तो राजधानी को लाया ही नहीं जा सकता । खतरे की जगह है । राज्य आन्दोलनकारियों के सपने में प्रारंभ से ही गैरसैंण राजधानी के रूप में बसा था । तत्कालीन सरकार ने देहरादून को चमक धमक और शानो शौकत के लिए राजधानी चुना।
गैरसैंण सार्थक तब होगा जब यहां दिल्ली या लखनऊ की नकल न हो। सब जानते हैं कि गैरसैंण कुमाउं और गढ़वाल के बीच की जगह है ।जहां आम आदमी की पहुंच आसान होगी । आज देहरादून में अस्थाई राजधानी होने के बावजूद सचिवालय, विधानसभा और कई विश्वविद्यालय बन गए हैं।
ये सभी पहाड़ से कटे हुए हैं। हमने पर्यावरण की रक्षा का संकल्प भी लिया था। जब भोपाल, चंडीगढ़ और भुवनेश्वर 60 वर्षोंमें जंगल सुनियोजित ढंग से विकसित शहर बन सकते हैं तो फिर गैरसैंण क्यों नहीं सरकार आज क्यों नहीं कहती की हम 20 साल बाद गैरसैंण को राजधानी बनाएंगें और तब तक समय समय पर प्रतीक के रूप में वहां विधानसभा सत्र चलाते रहेंगे इसमें हर्ज क्या है पहाड़ की भावनाओंका सम्मान करते हुए तुरंत गैरसैंण को कार्यकारी राजधानी घोषितकर वर्तमान सरकार लाभ प्राप्त कर सकती हैं। रही केंद्र से मिलने वाले रूपयों की बात तो पहले प्रदेश सरकार को अपनी नीयत स्पष्ट करनी होगी। राजनीतिक दलों और अफसरों के निहित स्वार्थ देहरादून में रहते हुए ही पूरे हो सकते हैं । इसलिए वे नहीं चाहते कि राजधानी गैरसैंण शिफ्ट हो। आज राजधानी का मुद्दा परिसीमन के साथ सीधे जुड़ गया है । नयी विधानसभा सीटों के हिसाबसे एक बार मैदान पहाड़ पर हावी हो जाएगा और प्रथक पहाड़ी राज्य का सपना धूल धूसरित। इसलिए भी राजनीतिक दल मौन साधेहुए हैं, लेकिन यदि ऐसा ही होना था तो फिर अलग राज्य बनाया ही क्यों गया।
गैरसैंण को भूकंप प्रभावित कहने वालों को मैं कुतर्की मानता हूं, क्योंकि राज्य का अधिकांश भाग इसकी जद में आता है……… और डर की वजह से क्या हम काम करना बंद कर देते हैं । गैरसैंण में मिनी सचिवालय खुलें, मुख्यमंत्री और मुख्यसचिव वहां बैठे तो इसके नतीजे भी जनता को सामने दिखाई देंगे।
( प्रोफ़ेसर पुष्पेश पंत से बातचीत पर आधारित)