उत्तराखंड में सरकार रोजगार वर्ष मना रही है, लेकिन इस वर्ष एक भी भर्ती नहीं हुई। राज्य में रिक्त 58 हजार पदों में से सरकार ने निर्णय लिया था कि वित्तीय स्थिति और जरूरत को देखते हुए 18 हजार पद भरे जाएंगे लेकिन इन पर भी अभी तक कोई भर्ती नहीं हुई है।
इसके ऊपर से ब्यूरोक्रेसी का हाल यह है कि वर्ष 2017 मे जूनियर इंजीनियरों की वैकेंसी निकाली गई थी लेकिन वह भी फंसी पड़ी है।
इन भर्तियों पर शासन, विभाग से लेकर चयन आयोगों के बीच में चक्कर पर चक्कर लग रहे हैं। कभी कोई कमी बताकर आयोग अधियाचन को लौटा देता है तो कभी शासन अधियाचन की कमियों को दुरुस्त करने की बजाय फाइल दबा कर बैठ जाता है, तो कभी विभाग नियमावलियों में कोई ना कोई कमी छोड़कर मामला लटका देता है।
पहले समूह ग के पदों में सेवायोजन केंद्रों में पंजीकरण करने की अनिवार्यता के कारण भर्तियां बाधित रही।
जब यह मामला ठीक हुआ तो अब 10% आर्थिक आरक्षण को लेकर फिर से भर्तियां लटक गई। 10% का मामला सुलझने को हुआ तो अब फिर से अनुसूचित जाति आरक्षण के नए रोस्टर के कारण पेंच फंस गया है। इसको सुलझाने को लेकर बनी कमेटी कब तक निर्णय लेगी यह भी अपने आप में पेचीदा सवाल है।