कमल जगाती, नैनीताल
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने पेड़ों(वृक्षों) में लगाए गए बिजली के तारों और विज्ञापन बोर्डों के खिलाफ कुमाऊं और गढ़वाल आयुक्तों को निर्देश देते हुए तत्काल निकलवाने को कहा है। न्यायालय ने दोबारा ऐसी हिमाकत करने वाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को भी कहा है।
नैनीताल उच्च न्यायालय में पेड़ों में गैर कानूनी तरीके से लगाए गए विद्युत तारों और विज्ञापन बोर्डों के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई है।
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मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कुमाऊं आयुक्त(कमिश्नर)और गढ़वाल आयुक्त को दो माह के भीतर, प्रदेश के पेड़ों से विज्ञापन बोर्ड और बिजली के तार समेत पेड़ों में लगाई गई कीलों को हटाने के आदेश दिए हैं।
खण्डपीठ ने आयुक्त गढ़वाल और कुमाऊं को आदेश दिए हैं की पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों के विरुद्ध वृक्ष संरक्षण अधिनियम और उत्तराखंड सार्वजनिक संपत्ति संरक्षण अधिनियम 2003 के अंतर्गत मुकदमा भी दर्ज करवाने को कहा है।
न्यायालय ने प्रदेश के सभी डी.एम.को आदेश दिए हैं कि वो किसी भी स्थिति में पेड़ों में बिजली के तार और विज्ञापन ना लगने दें । न्यायालय ने कहा कि इसकी वह खुद मॉनिटरिंग भी करेंगे। मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्य न्यायाधीश ने प्रदेश के सभी सरकारी विभागों को कहा है कि वो सभी विज्ञापन दो माह के भीतर हटा ले।
अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने बताया कि हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि कुछ लोगों ने राज्यभर के पेड़ों में विज्ञापन, बिजली के तार समेत कीलें ठोंक दी हैं और इससे पर्यावरण को भारी क्षति हो रही है। उन्होंने न्यायालय से प्रार्थना की थी कि पेड़ों से बिजली के तार, व्यवसाईक विज्ञापन और कीलों को हटाया जाए।
मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने आज कुमाऊं और गढ़वाल आयुक्तों को अपने अधीनस्थों के माध्यम से पेड़ों से विज्ञापन बोर्ड और बिजली के तार और कील हटाने के आदेश दिए हैं।