उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पत्रकारों पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करके गिरफ्तारी को लेकर प्रदेश सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सरकार से पूछा कि आखिर त्रिवेंद्र सरकार में पहुंच वाले लोगों पर आरोप लगाने वाले पत्रकारों पर आखिर राजद्रोह लगाने की जरूरत क्या थी !
क्या यह सरकार की दमन नीति नहीं है ! हाईकोर्ट ने पूछा की इसमें कहीं सरकार का निर्मम क्रूर हाथ तो नहीं !
राजेश शर्मा की जमानत पर सुनवाई के आदेश
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने यह सवाल सरकार से वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा को तत्काल अंतरिम जमानत पर छोड़ने का आदेश देने के दौरान अपने आदेश में ही पूछा है।
इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार उमेश शर्मा के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपने आर्डर में लिखा था कि जब सरकार से यह पूछा गया कि आखिर राजद्रोह और गैंगस्टर लगाने के पीछे क्या कारण था तो फिर सरकार इसका जवाब नहीं दे पाई।
उमेश शर्मा के मामले हाईकोर्ट के आदेश
इस मामले में उमेश कुमार की वकील कपिल सिब्बल ने पैरवी करते हुए कहा था कि नोटबंदी के दौरान हुए लेनदेन के मामले में उमेश शर्मा के खिलाफ झारखंड में मुकदमा दर्ज हुआ था जिसमें वह पहले से ही जमानत पर हैं इसलिए एक ही मुकदमे के लिए दो बार गिरफ्तारी नहीं हो सकती जबकि उनके खिलाफ दर्ज गैंगस्टर एक्ट के बारे में सरकार हाईकोर्ट में कोई जवाब नहीं दे सकी।
पत्रकार राजेश शर्मा की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने हैरानी जताई कि आखिर उन पर धारा 420, 467, 468 कैसे लगा दी पत्रकार पर शिकायतकर्ता ने अपनी f.i.r. में फोर्जरी करने के क्या आरोप लगाए हैं !
आखिर उनके पीछे क्या तथ्य हैं ! इन दस्तावेजों में फोर्जरी हुई थी तो ऐसे कौन से नकली दस्तावेज थे जो असली की तरह पेश किए गए ! सबसे ज्यादा हैरानी कोर्ट ने पत्रकारों पर राजद्रोह की धारा लगाने को लेकर जताई।
कोर्ट ने सरकार से 2 सप्ताह में काउंटर एफिडेविट मांगा है और ऐसे सवाल पूछे हैं कि सरकार से जवाब देते नहीं बनेगा !
अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए पत्रकारों पर राजद्रोह और गैंगस्टर जैसे मुकदमे लगाने के बाद हाईकोर्ट ने जिस तरह से त्रिवेंद्र सरकार को लताड़ लगाई है, उससे व्यक्तिगत रूप से त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि खराब हुई है और उन पर पुलिस का राजनीतिकरण और अपराधीकरण करने के दाग और भी अधिक गहरे हो गए हैं।
आजकल उत्तराखंड सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुशासन पर आवाज उठाने वाले जागरूक लोग आपस में ही एक दूसरे को मजाकिया लहजे में टिप्पणियां कर रहे हैं कि ज्यादा सवाल मत उठाओ वरना राजद्रोह लग जाएगा।
इस तरह की ट्रेंडिंग टिप्पणियों से समझा जा सकता है कि पत्रकारों पर राजद्रोह लगाने के बाद हाईकोर्ट से पड़ी लताड़ से उत्तराखंड सरकार की कितनी छीछालेदर हो रही है !