पाठकों को उत्तराखंड का बहुचर्चित मी टू प्रकरण तो याद ही होगा। इसमें नया यह है कि कछुआ गति से चल रही इस जांच में भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री रहे संजय कुमार से पुलिस ने अब रेप की धारा हटा दी है।
पुलिस का कहना है कि “10 मार्च को संजय कुमार देहरादून में नहीं था और इसके लिए संजय कुमार ने पर्याप्त सबूत दिए हैं अतः रेप की धारा हटा दी।”
अहम सवाल यह है कि पुलिस को यह किसने कह दिया कि रेप 10 मार्च को हुआ था ! पीड़िता ने अपने बयानों में कहा है कि पहली बार उसके साथ रेप मार्च 2018 के आखिरी सप्ताह में हुआ था।
फिर पुलिस अपनी मर्जी से जांच में दूसरे सप्ताह की 10 मार्च की तारीख को कहां से ले आई ?
ऐसा संदेह होता है कि पहले ऐसी तारीख ढूंढ ली गई जिसमें संजय कुमार के राज्य से बाहर होने के पुख्ता प्रमाण जुड़ सकें और फिर अपनी मर्जी से संजय कुमार की सुविधा के हिसाब से 10 तारीख की तिथि को रेप होने की तिथि के लिहाज से जांच शुरू कर दी गई। वाह क्या तरीका है !!
पर्वतजन यहां पर पीड़िता के बयान की छायाप्रति उपलब्ध करा रहा है।
इसमें प्रश्न है कि
“संजय कुमार ने तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध सबसे पहले कब बनाए ?”
इसमें पीड़िता कहती है कि
“मुझे तारीख ठीक से याद नहीं है, यह मार्च का आखिरी सप्ताह था। आशीर्वाद एंक्लेव में संजय के घर में उसके बेडरूम में उसने मुझे कुछ नशीली चाय पिलाई। इसके बाद मुझे कुछ होश नहीं था। उसके बारे में संजय कुमार ने मुझे कहा था कि मैंने तुम्हारी वीडियो बना ली है, उसी वीडियो का भय दिखाकर उसने तीन बार और मेरा शारीरिक शोषण किया था।”
जांच का अहम सवाल पुलिस पी गयी
( छायाप्रति जूम करके देखिए )
अब अहम सवाल यह है कि जब पीड़िता ने अपने बयान में कहा है कि यह मार्च का आखिरी सप्ताह था तो फिर पुलिस 10 मार्च की तारीख कहां से और किसके इशारे पर जांच में शामिल कर रही है !!
10 मार्च को सेकंड सैटरडे था तथा मार्च 2018 महीने में कुल 5 सप्ताह आये थे। यदि पुलिस की मनसा निष्पक्ष जांच करने की होती तो मार्च के आखिरी सप्ताह में 26 से लेकर 31 तारीख तक 6 दिनों को अपनी जांच का हिस्सा बना सकती थी।
लेकिन दूसरे सप्ताह के शनिवार को अपनी जांच का हिस्सा बनाकर संजय कुमार को रेप पर क्लीन चिट देना पुलिस की जांच पर भी सवालिया निशान खड़े करता है।
पीड़िता का कहना है कि उसके साथ चार बार दुष्कर्म किया गया है, लेकिन उसने कहीं भी 10 मार्च को रेप होने का दावा नहीं किया है।
ऐसे में पुलिस अपने आप से 10 मार्च की कहानी कैसे गढ़ रही है !
पुलिस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि एक बार रेप की धारा लगाने के बाद पुलिस को यह धारा हटाने की क्या जल्दबाजी है !
पुलिस अपनी जांच को कोर्ट के समक्ष भी रख सकती है ताकि कोर्ट ही इस पर निर्णय करें।
पर्वतजन अपने पाठकों से अनुरोध करता है कि पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए यदि आपको यह खबर सहायक लगती है तो इसे शेयर जरूर कीजिएगा