एक डाँक्टर बनने में लगभग दस साल की कड़ी मेहनत लगती है और मेडिकल कालेज का प्राचार्य बनने में लगभग 25 से 30 साल। लेकिन अल्मोड़ा मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. आर जी नौटियाल की नौकरी महज तीन सेंकेंड की फोन काॅल ने ले ली।
जानकारी के अनुसार, कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य डा. नौटियाल से खफा हो गयी कि, उनकी उपस्थिति में डा. नौटियाल ने विधानसभा उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह चैहान का फोन उठा लिया ।
डा. नौटियाल ने विधानसभा उपाध्यक्ष से महज 3 सेंकेंड ही बात की। इस बात को लेकर रेखा आर्य ने प्रोटोकाल का हवाला दिया और डीएम से नाराजगी जाहिर की। बताया जाता है कि, एक महीने तक विवाद चला और डा. नौटियाल को उनके पद से हटा दिया गया।
सवाल यह है कि, यदि प्रोटोकाल को भी देखा जाए तो क्या कैबिनेट मंत्री का दर्जा विधानसभा उपाध्यक्ष से बड़ा होता है? यदि नहीं, तो फिर रेखा आर्य की नाराजगी का सवाल ही नहीं होता।
दूसरे, मंत्री और विधायक जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं, लेकिन जनता उनके दरबार में बाहर घंटों इंतजार करती है लेकिन वो उन्हें दर्शन तक नहीं देते? तब प्रोटोकाल लागू नहीं होता। जबकि जनता मालिक है और नौकरशाह व नेता जनता के नौकर।
धामी जी, क्या यह सही है? यदि ऐसा है तो भाजपा सरकार किसी भी तरह से लोकप्रिय नहीं हो सकती है। ऐसे नेता ही भाजपा की नैया को डुबो देंगे। सभलो सरकार। वक्त कम बचा है और काम अधिक करने हैं।