मामचन्द शाह
एक ओर मलिन बस्तियों में अवैध रूप से बसाए गए बाहरी प्रदेशों के लोगों को सरकार और जनप्रतिनिधि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी तीन साल का समय मांग कर उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं पलायन की मार झेल रहे गोपेश्वर चमोली जैसी दुरूह जगहों पर रह रहे उत्तराखंड के मूल निवासियों के घर व रोजगार के ठिकाने बिना किसी पूर्व सूचना व नोटिस दिए बिना ही बरसात के मौसम में बुल्डोजर लगाकर ध्वस्त कराए जा रहे हैं। शासन-प्रशासन का इस तरह का दोहरा रवैया किसी के गले नहीं उतर रहा।
यहां बात की जा रही है जनपद चमोली के गोपेश्वर मुख्यालय की 70 वर्षीय बुजुर्ग माघी देवी की। माघी देवी विधवा हैं और वह यहां अपने पुत्र, बहू व पोता-पोती के साथ रहती हैं। माघी देवी का इकलौता पुत्र भी एक दुर्घटना के बाद आंशिक रूप से विकलांग हैं। इस परिवार की जीवनचर्या किसी तरह चल ही रही थी कि 18 जुलाई 2019 को एसडीएम चमोली बुशरा अंसारी खान नगरपालिका के अधिकारियों कर्मचारियों व पुलिस दल-बल के साथ धमक गए और उनके घर को बुल्डोजर से उजाडऩा शुरू कर दिया। इस दौरान घर की मुखिया माघी देवी व उनका पुत्र जगमोहन पंवार घर पर मौजूद नहीं थे।
घर को उजड़ते देख माघी देवी की बहू ने जब उन्हें पूछा कि आप घर तोडऩे का आदेश दिखाओ तो इस पर एसडीएम बोली कि वह जरूरी नहीं समझती और पुलिसकर्मियों को उन्हें व उनके तीन माह के बच्चे को बंधक बनाकर घर पूर्ण रूप से तोडऩे का आदेश दे दिया। इस दौरान उन्हें व उनके बच्चे को घसीटकर बाहर लेकर बंधक बना लिया गया। इस दौरान उनकी आंखों के सामने उनका दोमंजिला पक्का मकान तोड़ दिया गया व उनका सामान बाहर फेंक दिया गया। इसके अलावा रोजी-रोटी का एकमात्र साधन उनकी बिजली आटा चक्की व दो दुकानों में रखा सामान बाहर फेंक कर बर्बाद कर दिया गया और दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया। इससे माघी देवी व उनके परिवार के सम्मुख मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया है।
बताते चलें कि वृद्ध माघी देवी शारीरिक व मानसिक रूप से अत्यंत कमजोर हैं और उनका जौलीग्रांट हॉस्पिटल व अन्य जगहों पर पिछले पांच-छह वर्षोंे से इलाज चल रहा है। दरअसल नगरपालिका गोपेश्वर के गठन के बाद वर्ष 1986 में बस अड्डा चौड़ीकरण के कारण बाघ सिंह पुंडीर, पत्रकार धनंजय भट्ट व भजनलाल की दुकानें व मकान का अधिग्रहण कर दिया गया था। इसके बदले बाघ सिंह को इंटर कालेज गोपेश्वर के ऊपर खसरा नंबर 2492 वाली भूमि पर जगह दी गई। साथ ही अन्य दो लोगों को भी दूसरी जगह पर भूमि दी गई। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से बाघ सिंह को इस भूमि पर विस्थापित तो कर दिया गया, लेकिन उनका रिकार्ड में नाम दर्ज कराने में आनाकानी करते रहे। इसके दो साल बाद ही 1988 में बीमारी व मानसिक तनाव के कारण बाघ सिंह पुंडीर की मृत्यु हो गई। यह देख उन्हीं के साथ रहने वाली इकलौती पुत्री माघी देवी ने उन्हें न्याय दिलाने की ठानी। उनकी मांग को शासन-प्रशासन ने भी न्यायोचित बताया और मानवीय आधार पर उन्हें खसरा नंबर 2492 वाली भूमि पर रहने की स्वीकृति दे दी। इसके बाद माघी देवी ने उस जगह पर घर बनाया और परिवार का पालन-पोषण करने लगी। इस दौरान उन्होंने बंजर जमीन पर फलदार वृक्ष लगाकर उपजाऊ किया। तब से लेकर अभी तक वह इस जगह पर मालिकाना हक की लड़ाई लड़ रही हैं।
अपने जीवन के 30 महत्वपूर्ण साल माघी देवी ने इस जगह पर मालिकाना हक दिलाने के लिए लगा दिए, लेकिन आश्वासन के सिवाय उन्हें आज तक कुछ नहीं मिला। हां परेशान करने के उद्देश्य से उन्हें लगातार धमकियां मिलती रही और पत्थर आदि फेंके जाते रहे। यहां तक कि प्रभावशाली लोगों के दबाव में शासन-प्रशासन भी पलटी मारकर कहने लगा कि उनका मकान अवैध है, जबकि दस्तावेजों के आधार पर इस जगह को शासन-प्रशासन द्वारा ही जांच-परखकर बाघ सिंह पुंडीर की इकलौती वारिस उनकी पुत्री माघी देवी को १९९१-९२ में दी गई थी।
शासन-प्रशासन से सीधी लड़ाई लडऩे के कारण माघी देवी आज शारीरिक व मानसिक रूप से अत्यंत दुर्बल हो चुकी हैं। उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें बेघर कर दिया गया है। ऐसे में माघी देवी कहती हैं कि जो घर में लोगों से कर्ज लेकर व पाई-पाई जोड़कर बनाया था, वह सब प्रशासन ने मिट्टी में मिला दिया है। अब उनके परिवार के सम्मुख भारी समस्याएं खड़ी हो गई हैं।
हां यह अलग बात है कि उन्हीं के साथ जिन दो अन्य लोगों का विस्थापन किया गया, ऊंची पहुंच होने के कारण उन्हें तत्काल निर्माण सामग्री देकर नई जगह पर बसा दिया गया।
सूत्रों के अनुसार नगरपालिका गोपेश्वर माघी देवी के घर की जगह पर निर्माण कराने की कोशिश कर रही है। यही नहीं गुपचुप तरीके से इसका ठेका भी दे दिया गया है। वह ठेकेदार कांग्रेस नेता बताया जा रहा है। ठेकेदार की ऊंची पहुंच का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि डीएम ने ठेकेदार को इस जगह पर शीघ्र निर्माण कार्य प्रारंभ करने को कहा है।
माघी देवी प्रशासन से सवाल पूछती हैं कि उनके घर को किस आदेश के तहत तोड़ा गया और उन्हें पहले नोटिस क्यों नहीं दिया गया। यदि उन्हें मिली विस्थापित वाली जगह पर कुछ अन्य निर्माण होना है तो वह किस आदेश के तहत किया गया और यह स्वीकृति किसने दी। उन्होंने मांग करते हुए कहा कि उन्हें न्याय के आधार पर शीघ्र उक्त भूमि पर मालिकाना हक दिया जाए और उनका ध्वस्त किया गया मकान व सामान का मुआवजा भी दिया जाए। माघी देवी के पुत्र जगमोहन पंवार कहते हैं कि उनके साथ घोर अन्याय हुआ है और वह न्यायालय में यह लड़ाई लड़ेंगे।
चमोली की जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया कहती हैं कि अतिक्रमण वाली जगह को ध्वस्त किया गया है। उन्हें नोटिस दिए गए थे। माघी देवी के नाम पर यह जगह नहीं है। इन लोगों के गोपेश्वर में ही दूसरी जगह घर बने हैं।
चमोली की एसडीएम मुसरा अंसारी खान कहती हैं कि यह जगह माघी देवी के नाम पर नहीं है और यहां पर अतिक्रमण है। माघी देवी को तो पुलिस लाइन के पास लीज पर जगह दी गई है, जहां उनका मकान है। यहां तोडऩे से पहले उन्हें नोटिस दिया गया था। एनएच ने भी नोटिस दिया है कि इस जगह पर अतिक्रमण हुआ है। यह नगरपालिका की जमीन है और वह यहां कुछ निर्माण कराएगी। विस्थापन के बाद माघी देवी को दूसरी जगह लीज पर जगह दी गई है।
जब इस संबंध में गोपेश्वर नगरपालिका अध्यक्ष सुरेंद्र लाल से पूछा गया तो उनका कहना था कि मुझे इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। कुल मिलाकर सवाल यह है कि जब हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी देहरादून के मलिन बस्तियों को उजाडऩे की बात आती है तो वोट बैंक बचाने के लिए तीन साल का समय मांगा जाता है और पहाड़वासियों के मकान पर बिना सूचना दिए ही बुल्डोजर चला दिया जाता है। वे दो दिन की मोहलत मांगते हैं, लेकिन वहां बंद घरों तक को भी ध्वस्त कर दिया जाता है। सवाल यह है कि मैदानी अतिक्रमण से प्रेम और पहाड़ी अतिक्रमण से इतनी बेरुखी क्यों? प्रदेश सरकार व शासन-प्रशासन का यह दोहरा रवैया पहाड़वासियों के कतई गले नहीं उतर रहा।