भार्गव चन्दोला
कोटद्वार। कोटद्वार में पुलिस का अजब कारनामा सामने आया है। दो दिवस पूर्व अवैध खनन की रिपोर्टिंग के दौरान राज्य आंदोलनकारी एवं पत्रकार राजीव गौड़ और सोशल एक्टिविस्ट पर हमला कर घायल कर दिया था। हैरानी तब हुई, जब एफआईआर में नाम होने के बावजूद पुलिस के प्रैस नोट से खनन वालों के पता नामालूम बताकर छुपा दिया।
बताते चलें कि 30 मई को रिपोर्टिंग के दौरान खनन माफियाओं ने 20-25 लोगों के साथ मिलकर पत्रकार राजीव गौड़ एवं मुजीब नैथानी पर जानलेवा हमला कर दिया था। यही नहीं राजीव गौड़ पर बंदूक के बट से हमला कर उन्हें जख्मी कर दिया गया।
इसकी शिकायत राजीव गौड़ ने थाने में की। बताया गया कि थाने में भी खनन शैलेंद्र बिष्ट गढ़वाली व महेंद्र बिष्ट व अन्य द्वारा राजीव गौड़ पर हमला किया, लेकिन पुलिस ने उसे रोक लिया। उसके बाद पुलिस राजीव गौड़ व मुजीब नैथानी के बयान के आधार पर महेंद्र बिष्ट, कोटद्वार, अजय नेगी, हरिद्वार, प्रधान हरिद्वार व 20-25 अज्ञात के नाम मु.अ.स. 162/2020 धारा 147/324/506 में दर्ज कर लिया।
वहीं खनन वाले हमलावरों ने भी विरोध में राजीव गौड़ व मुजीब नैथानी पर मुकदमा दर्ज कर लिया। उन पर मु.अ.स. 163/2020 धारा 307/506/324/384 भादवि व 3(1)(घ) अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम बनाम राजीव गौड़ व मुजीब नैथानी कर दिया गया।
कोटद्वार में पुलिस की कार्यवाही पर कई सवाल
पहला सवाल यह है कि पुलिस ने खनन वालों के विरुद्ध दर्ज एफईआर में नाम तो दर्शाए हैं, किंतु पुलिस ने जो प्रैस नोट प्रसारित किया, उसमें से पता छिपा दिया गया। ऐसे में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल और मजबूत हो गया है कि जब एफआईआर में नाम पाता दर्ज है तो आखिर पुलिस को प्रैस नोट में पता छिपाने की क्या आवश्यकता पड़ गई? दूसरा सवाल यह है कि उक्त व्यक्ति पूर्व में भाजपा जिलाध्यक्ष रह चुके हैं। पुलिस अधिकारी उके घर आते-जाते हैं। ऐसे में उन्हें संबंधित का पता नामालूम कैसे है? महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पुलिस बिना नाम व पते के किसी की तहरीर भी नहीं लेती है। ऐसे में जाहिर है कि पूर्ण डिटेल प्राप्त होने के बाद ही एफआईआर लिखी गई होगी, और भाजपा से जुड़े नेता को बचाने के लिए उनका पता नामालूम दर्शाया गया है।
तीसरा महत्वर्ण सवाल यह भी है कि पत्रकार राजीव गौड़ व मुजीब नैथानी पर हमला करने वालों में कुछ लोग उत्तर प्रदेश के भी मौके पर मौजूद थे। उनका पास कोटद्वार तक पहुंचने के लिए कैसे जारी किया गया या फिर उनकी चैकिंग क्यों नहीं की गई। प्रदेश में आम जन पर अनजाने में हुई चूक पर भी मुकदमा दर्ज कर दिया जा रहा है तो सवाल यह है कि खनन स्थल पर पहुंचकर हमला करने वाले उत्तर प्रदेश के लोगों पर लॉकडाउन उल्लंघन के आरोप में मुकदमा दर्ज क्यों नहीं किया गया।
उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि पत्रकार राजीव गौड़ व मुजीब नैथानी पर जानबूझकर एकतरफा कार्यवाही की गई है और खनन वालों को रसूख का फायदा पहुंचाते हुए बचाने का प्रयास किया गया है।
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संडे पोस्ट के पत्रकार के मुकदमे पर मौन
बीते सप्ताह ‘दि संडे पोस्ट’ से जुड़े पत्रकार अहसान अंसारी को हरिद्वार के ज्वालापुर पुलिस द्वारा एक फर्जी मामले में फंसाकर गिरफ्तार कर लिया गया है। अहसान अंसारी लगातार एसएचओ ज्वालापुर के खिलाफ लिख रहे थे। इतना ही नहीं, वे लगातार राज्य पुलिस के आकाओं को, राजनीतिक आकाओं को एवं राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग तक को पत्र लिखकर यह आशंका व्यक्त कर चुके थे कि उन्हें किसी मामले में फंसाया जा सकता है। बावजूद इसके पत्रकार अहसान अंसारी को कहीं से भी न्याय नहीं मिल पाया और उन्हें गलत मामले में फंसाकर उत्पीडऩ किया जा रहा है।
उपरोक्त प्रकरणों को देखकर स्पष्ट होता है कि गलत नीतियों और कार्यों को समाज के सामने उजागर करने वाले पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस द्वारा एकतरफा कार्यवाही की जा रही है। ऐसे में पुलिस की कार्यशैली को लेकर आम जन में भी सवाल उठ रहे हैं। यदि समाजहित में जनमुद्दे उठाने वाले लोगों पर इस तरह की कार्यवाही होती रहेगी तो फिर आने वाले समय में कोई भी समाज विरोधी मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाने की कोई पत्रकार या सोशल वर्कर पहल नहीं कर पाएगा।