उत्तराखंड की चौपट होती स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर सोशल एक्टिविस्ट और पत्रकार उमेश कुमार ने स्वास्थ्य सचिव पंकज पांडये साहब को पत्र लिखा है | पत्र में उन्होंने तमाम स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लिखा,जिसमें उन्होंने उत्तराखंड में वेल्टीनेटर ,ऑक्सीजन तथा कोरोना को लेकर लिखा, साथ ही पहाड़ो में उपचार न मिलने पर मरती गर्भवती बहनो के बारे में भी लिखा है |
जानिए विस्तार से क्या कुछ लिखा पत्र में :-
आशा है आपका स्वास्थ्य तो टकाटक होगा। लेकिन प्रदेश के स्वास्थ्य के प्रति आपकी लापरवाही साफ झलक रही है। कभी आपका नम्बर उठता नहीं है तो कभी लगता नहीं।
मुझे अपने इस उत्तराखण्ड प्रदेश को देखकर रोना आता है कि,आखिर कैसे नौकरशाहों को ऐसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के लिए चुनते हैं।
पंकज पांडेय जी ,आपको तो त्रिवेंद्र रावत ने एनएच घोटाले में आरोपी बना दिया था फिर वही त्रिवेंद्र रावत आपको क्लीन चिट भी दे देते है। इस बात का अंदाजा हमारे उत्तराखण्डी लोग साफ तौर पर लगा सकते हैं कि, अधिकारी नेताओं को कितनी आसानी से करवट में ले लेते है।
खैर ,प्रभारी स्वास्थ्य सचिव पंकज पांडे जी । आज जब उत्तराखण्ड में त्राहिमाम है । लोगो को वेल्टीनेटर ,ऑक्सीजन तो दूर बेड तक उपलब्ध नही हो पा रहे है औऱ आप ब्रीफिंग करके बड़े बड़े दावे करते नजर आते हो।
अरे पहले फोन तो उठाओ । संवाद तो करो ।
दरअसल , इन अफसरों को उत्तराखण्ड से कोई लेना देना नहीं है । इनको तो तनख्वाह मिलनी ही मिलनी है । इसलिए संवेदना भी इनकी खत्म हो चुकी है।
ऐसे ही अफसरों की वजह से रिखणीखाल की हमारी गर्भवती बहन स्वाति की जान चली गयी ,गैरसैंण की हीरा जैसी बहनो को हमने खो दिया। ऐसी ही न जाने कितनी सैकड़ो बहने सिर्फ इलाज न मिलने के चलते दम तोड़ देती है।
हम सब कहते है कि, सिस्टम खराब है। अरे ऐसे ही अधिकारी तो सिस्टम को बर्बाद करते है। जो देहरादून के एसी कमरों में बैठकर ब्रीफिंग करते हैं वो क्या जाने पहाड़ की जनता का हाल । इन्हें किसी के दुःख दर्द से कोई लेना देना नही है।
पंकज पांडेय जी जहां इलाहाबाद से आप आते है वहां औऱ हमारे पहाड़ो में जमीन आसमान का फर्क है। आपको तो शायद ये भी न पता हो कि, निजमुला घाटी से लेकर धारचुला घाटी तक की हमारी गर्भवती बहनो को आज भी डंडी कंडी पर ढोकर अस्पताल पहुंचाया जा रहा है | जहाँ कभी जंगलों में उनका प्रसव हो रहा है तो कभी रास्ते मे ही दम तोड़ देती हैं।
किसी की जवान बेटी ,पत्नी ,माँ का उससे छिन जाना कितना दुखदायी होता है सोचा है कभी आप लोगों ने ??
अरे । सिर्फ किताबें रटकर टेस्ट निकालकर अधिकारी बन जाने से कुछ नही होता भाई। कम से कम मानवीय संवेदनाएँ तो होनी चाहिए।
आज कोरोना की वजह से आये दिन दर्जनों लोगों की मौत हो रही है । श्मशान घाटों पर जगह ही नही है। अस्पतालों के बुरे हाल है।
पंकज पांडे । एसी रूम में ही बैठे रहोगे या फील्ड में आकर जनता के हाल भी देखोगे ?
मुख्यमंत्री तीरथ रावत जी । कैसे कैसे लोगो को आपने जिम्मेदारी दी रखी है जिन्हें आपकी जनता की पीड़ा से कोई सरोकार ही नही है। एसी रूम में बैठकर ही जो कोरोना का हिसाब किताब लगा रहे हो| आप खुद सोचिये वो आपको क्या फीडबैक दे पाएंगे ?
मुख्यमंत्री साहब, जब ऐसे अधिकारी काम ही नही कर पा रहे हैं तो इन्हें इस प्रदेश से अलविदा कर दीजिए।
मैं पहले भी कह चुका हूँ फिर कह रहा हूँ मेरी लड़ाई उत्तराखण्ड की जनता के हितों के लिए हमेशा ही जारी रहेगी। मेरा किसी से भी कोई निजी द्वेष नही है। मेरे उत्तराखण्ड की जनता की पीड़ा ही मेरी पीड़ा है।
पंकज पांडे साहब, आशा है आप तक ये पत्र जरूर पहुंचेगा। मेरी बात पर मनन करना ,चिंतन करना । संकट की इस घड़ी में मेरे किसी भी उत्तराखण्डी भाई को कोई परेशानी न हो इस बात का ध्यान जरूर रखना।
वरना,ये भी याद रखना कि ये देवभूमि है यहाँ सजा बाबा बद्री-केदार ही तय करते है।