राहुल सिंह शेखावत
आधा दर्जन से ज्यादा भाई-बहिन वाले देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री पद पर काबिज हैं।सुना है खुद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के भी आठ भाई बहिन हैं। देश भर में भाजपा और कांग्रेस समेत विभिन्न दलों में थोक के भाव ऐसे नेतागण है, जिनके आधा दर्जन भाई-बहिन हैं।
सभी जानते हैं कि संसद देश और राज्य में विधानसभा राज्यों की नीति निर्माता हैं। जहां अभी तक ना तो सांसद अथवा विधायक के लिए शैक्षिक योग्यता निर्धारित हुई और न ही दो से बच्चों वाले नेताओं के चुनाव लड़ने पर कोई पाबंदी लगी है, लेकिन उत्तराखंड की सरकार ने जल्दबाजी में जमीनी हकीकत को दरकिनार करते हुए बिना होम वर्क बहुमत के दम कानून पास करा दिया। जिसे फौरन लागू करते हुए राज्य में में दो से अधिक संतान वाले लोगों पर ग्रामीण सरकार यानि ग्राम पंचायतों के चुनाव लड़ने के लिए पाबंदी लगा दी। जिसे नैनीताल हाईकोर्ट ने गैरकानूनी बताते हुए एक मियाद तय कर दी है। यानि दो से ज्यादा बच्चे वाले लोग मौजूदा पंचायत चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते हैं।
अरे भई ये क्या मतलब हुआ कि सांसद-विधायक बनने के लिए कोई शर्त नहीं और एक ग्राम प्रधान से किताबी सुधार की शुरुआत करोगेकोई भी बदलाव अथवा सुधारवादी निर्णय तुगलकी अंदाज में नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से कानून के दायरे में लागू किया जाता है। मेरी समझ में नहीं आता कि कौन लोग हैं जो मुख्यमंत्री की भद्द पिटवाने पर आमादा हैं या राज्य के महाधिवक्ता समेत वकीलों की फौज नकारा हैं? या फिर उनसे समुचित राय ही नहीं ली जाती है।
मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि आखिर दिक्कत कहां है। स्पष्ट कर दूं कि मैं चुनावों में शैक्षिक योग्यता और संतान की शर्त का समर्थक हूं, लेकिन इंडिया और भारत के बीच फर्क करने का विरोधी हूं। मैं तो कहता हूं की चुनाव लड़ने के लिए दो संतान की शर्त ही क्यों? अगर देश के सभी दल राजी हों तो एक संतान की शर्त क्यों ना हो भला। इससे न सिर्फ पुत्र के मोह में आबादी के बढ़ने पर अप्रत्यक्ष रोक लगेगी, बल्कि “बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ” अभियान को और अधिक रफ्तार मिलेगी। वैसे उत्तराखंड के पंचायतीराज कानून में दो संतान शब्द उल्लेखित था, उसमें दूसरी बार जुड़वा बच्चे होने पर उम्मीदवारी को लेकर स्थिति स्प्ष्ट नहीं थी जो कि बेहद जरूरी है।
बहरहाल, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय के जरिए लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की है। कांग्रेस नेता जोत सिंह बिष्ट समेत अन्य सभी याचिकाकर्ता को बधाई उम्मीद करता हूं की राज्य सरकार आगे लोकतांत्रिक तरीके से सुधारवादी निर्णय लेगी। जिन बातों के निपटारे के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष की व्यवस्था बनी है, वो कोर्ट की दहलीज में ना जाए। लब्बोलुआब इतना भर है कि सरकार को बहुमत की ताकत के दम पर नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से सुधारों को आगे बढ़ाना चाहिए। वैसे भी न्यायालय में भद्द पिटने की नौबत से बचने के लिए विपक्ष की न्यायोचित बात को तरजीह देने में कहीं कोई बुराई नहीं है।