अनुज नेगी
अगर आप अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने जा रहे हो तो ये खबर अवश्य पढिए। अब आपको पहाड़ों में सरकारी स्कूलों में भोजनमाता शिक्षा का ज्ञान बांटती दिखेंगी। यह हम नहीं, एक सरकारी स्कूल की भोजन माता कह रही है।
जी हां! पहाड़ों में सरकारी स्कूल से शिक्षिक लापता और मिड डे मील बनाने वाली भोजन माता बच्चों को पढ़ा रही हैं।
ताजा मामला जनपद पौड़ी के पोखड़ा ब्लॉक का सामने आया है, जहां एक छात्र संख्या वाले प्राथमिक विद्यालय सलाण में अक्सर शिक्षिका लापता रहती है और भोजन माता द्वारा बच्चे को पढ़ाया जा रहा रहा है। स्कूल से अक्सर लापता रहने वाली शिक्षिका की शिकायत कई बार अविभवाकों व ग्राम प्रधान ने शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों तक कर दी, किंतु विभाग के उच्च अधिकारियों के कानो पर जूं तक नही रेंगी।
वहीं दूसरी ओर पोखड़ा ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय झलपड़ी में ताला लटका पाया गया। इस स्कूल में दो शिक्षक हैं, बावजूद इसके इस स्कूल में ताला लटका रहना किसी की समझ में नहीं आ रहा। इस तरह बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है।
शिक्षा में सुधार और पलायन रोकने के लाख दावे करने वाली सरकार की हवा निकलती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र पौड़ी में दिन-प्रतिदिन शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से निकाल कर प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर हंै। जब बच्चों के लिए खाना बनाने वाली भोजनमाता को ही शिक्षिका द्वारा मनमर्जी करते हुए स्कूल में बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाती हो तो ऐसे में समझा जा सकता है कि सरकार और गुरुजी बच्चों के भविष्य के प्रति कितनी रुचि रखते होंगे!
सवाल यह है कि जब स्कूल से शिक्षक छुट्टी पर रहते हैं तो व्यवस्था में कैसे भोजनमाता को जिम्मेदारी दी गई? क्या शिक्षक/शिक्षिकाओं के पास इस तरह का कोई शासनादेश या फिर विभागीय आदेश मौजूद है कि वे भोजनमाता को भी शिक्षकों की अनुपस्थिति में पठन-पाठन की जिम्मेदारी देता हो।
सवाल यह भी है कि आखिर एक छात्र संख्या वाला स्कूल कैसे चल रहा है? जबकि तीन किलोमीटर की दूरी पर दूसरा प्राथिमक विद्यालय झलपाड़ी मौजूद है।
यही नहीं यह भी गंभीर सवाल है कि जब उक्त प्राथिमक विद्यालय झलपाड़ी में दो शिक्षक कार्यरत हंै तो फिर स्कूल पर ताला क्यों लटका हुआ है? जाहिर है कि शिक्षक/शिक्षिकाओं को बच्चों के भविष्य को लेकर कोई परवाह नहीं हैं। यही कारण है कि वे बिना कारण कभी स्कूलों में ताला बंद कर स्कूलों की छुट्ट करवा दे रहे हैं तो कहीं भोजनमाताओं के भरोसे ही पठन-पाठन की जिम्मेदारी छोड़ दे रहे हैं। यदि इन तरह के मामलों में शिक्षा विभाग की ओर से कठोर कार्यवाही नहीं की जाती है तो दिन-प्रतिदिन ऐसे मामलों में और बढ़ौतरी देखने को मिलेगी और बच्चों का भविष्य अंधेरगर्दी की ओर जाता रहेगा।
”मैं 15 दिन के लिए अवकाश पर हूं। मैं व्यवस्था के बारे में कुछ नहीं जानती। आप इसके लिए शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।”
– उषा रानी, शिक्षिका, प्राथमिक विद्यालय, सलाण, पोखड़ा
”इस प्रकार का कोई भी मामला मेरे संज्ञान में नही है। मैं 100 किलोमीटर दूर पौड़ी मुख्यालय में हूं और अगर किसी भी स्कूल से शिक्षक अनुपस्थित रहता है तो वह खुद ही दूसरे शिक्षक की व्यवस्था करके जाएगा।”
– मदन सिंह रावत, मुख्य शिक्षा अधिकारी, पौड़ी