रिपोर्ट – राजकुमार सिंह परिहार
राजनीतिक चश्मे और राजनीतिक लाभ-हानि से दूर करके यदि निष्पक्षता के साथ देखा जाये, तो समाज के उस स्वरूप को ही उकेरती है, जो हमारे देश के प्राचीन सूत्र “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” की खुलेआम खिल्ली उड़ाता हुआ सा लगता है।
प्राचीन भारत में नारी के सम्मान की बात को देवताओं के वास से जोड़ा गया था, जिसके दो तात्पर्य भी हो सकते हैं कि पुरुष प्रधान समाज में या तो उस समय भी महिलाओं की स्थिति आज जैसी ही थी, जिसे रोकने के लिए वातावरण को अच्छा बनाने की कोशिश के रूप में यह भरोसा दिलाया गया हो कि नारियों के सम्मान वाले स्थान पर देवता वास करते हैं। जरा गौर कीजिये साहब कहीं आज बागेश्वर जिलापंचायत का ये आन्दोलन हमारी सभ्यता को कलंकित तो नहीं कर रहा है।
“महिलाओं से नफ़रत करने वाली इस दुनिया में मासूमियत पर दोहरे मापदंड हावी हैं। यहां दूसरों की राय का सम्मान नहीं किया जाता है। जहाँ एक महिला का तिरस्कार करने वाले पुरुष की तो तारीफ़ होती है, लेकिन अगर वही काम कोई महिला करे तो उससे क्या कहा जाना चाहिए। हम हमेशा ऐसा ही करते हैं और फिर ऐसे दिखावा करते हैं जैसे कि हमने कुछ नहीं किया। एक समाज के रूप में हम असफल हो गए हैं। हम किसी इंसान को इतनी बुरी तरह से प्रताड़ित करते हैं कि वह आत्महत्या कर ले और फिर हम ऐसे दिखावा करते हैं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं।“
हमारी प्राचीन संस्कृति तथा हमारे धर्म-शास्त्र महिलाओं के प्रति कैसा नज़रिया रखते थे यह बात भारतीय संस्कृति में खासतौर पर हिंदू धर्म में स्वीकार्य अनेक पूज्य देवियों से साफ पता चलती है। इन देवियों के अतिरिक्त धर्म व इतिहास से जुड़ी अनेक गाथाएं भी ऐसी हैं जो महिलाओं की अस्मिता,उनके शौर्य,साहस तथा उनके सद्चरित्र का बखान करते हैं। यहां तक कि दुर्गा पूजा के दिनों में होने वाले कन्या पूजन के दिन तो केवल कुंआरी बालिकाओं को ही पूजने की परंपरा हिंदू समाज में चली आ रही है। राजनैतिक स्तर पर भी यदि हम देखें तो प्राय: दोहरा चरित्र अपनाने वाले राजनीतिज्ञ भी दिखावे के लिए ही क्यों न सही परंतु कभी-कभी महिलाओं को ‘आधी आबादी’ कहकर संबोधित करते नज़र आते हैं तथा उन्हें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में बराबर का आरक्षण दिए जाने की पैरवी भी करते रहते हैं। यह और बात है कि अभी हमारे देश में महिलाओं को 33 प्रतिशत वह आरक्षण भी पूरी तरह से नहीं दिया जा सका जिसके लिए न केवल महिलाएं बल्कि पुरुष भी काफी लंबे समय से संघर्षरत हैं। परंतु यदि हम विभिन्न पार्टियों में शीर्ष पदों पर या दूसरी पंक्ति में नज़र डाल कर देखें तो लगभग सभी दलों में ऐसी महिलाएं देखी जा सकती हैं जो हमें राजनैतिक रूप से शक्तिशाली दिखाई देती हैं। और उन्हें देखकर हमें यह तसल्ली भी हो सकती है कि महिलाएं भारतीय राजनीति में अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं। परंतु क्या बागेश्वर जिला प्रशासन व बागेश्वर कि सम्मानित जनता को महिलाओं को लेकर हमें जो कुछ दिखाई दे रहा है वास्तविकता भी ऐसी ही है? या फिर हमारे जनपद में महिलाओं की स्थिति शायद उतनी बद्तर है जितनी किसी दूसरे जनपद में नहीं?
इन दिनों जिला पंचायत बागेश्वर में चल रहा आन्दोलन आज 21वें दिन भी जारी है जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बड़े दुर्भाग्य कि बात तो तब है धरने पर बैठे 9 सदस्यों मे से 6 महिला सदस्य हैं और वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भी एक महिला ही विराजमान हैं। धरने पर बैठे सदस्यों ने आज अध्यक्ष की ओर से उपलब्ध कराई पंचायत एक्ट के खिलाफ सोमवार प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्णय लिया है। जिला पंचायत सदस्यों का वित्तीय अनियमितताओं को लेकर चलाया जा रहा आंदोलन आज 21वें भी जारी रहा। आंदोलनकारी सदस्यों ने जिला पंचायत अध्यक्ष पर हठधर्मिता का आरोप लगाते हुए कहा कि अध्यक्ष द्वारा सदन में पारित प्रस्तावों की अनदेखी कर सदस्यों का अपमान कर रही है। उन्होंने कहा कि पंचायत राज एक्ट की गलत जानकारी सदस्यों को प्रसाशसन के सामने उपलब्ध कराने पर उनके खिलाफ पुलिस अधीक्षक को पत्र भेजा था। जिस पर कोई कार्यवाही आज तक अमल में नही लायी गयी। उन्होंने निर्णय लिया कि सोमवार को जिला पंचायत अध्यक्ष द्वारा गलत पंचायत एक्ट देने के खिलाफ कोतवाली बागेश्वर में प्राथमिकी दर्ज कराने का निर्णय लिया है। विवेकाधीन कोष के तहत बांटने को सही बताने को उनकी तानाशाही करार दिया। सदस्यों ने कहा कि शासन से प्राप्त बजट को सभी सदस्यों में समान रूप से बांटने की बात अध्यक्ष
जी बोल रही है। लेकिन सदस्यों को पता नही की उनके क्षेत्रों को किस योजनाओं में धनराशि उपलब्ध करवाई गई है। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष समर्थित कुछ सदस्य तो बोल नही रहे हैं। लेकिन उनके पति बड़े बड़े बयान देकर पंचायती राज व्यवस्था का मखौल उड़ा रहे हैं। इस दौरान जिला पंचायत उपाध्यक्ष नवीन परिहार,जिला पंचायत सदस्य हरीश ऐठानी, सुरेंद्र सिंह खेतवाल, रूपा कोरंगा, इंदिरा परिहार, वंदना ऐठानी, गोपा धपोला, पूजा आर्या, रेखा देवी आदि मौजूद थे।
यह कैसी नारी, जिसका दूसरी नारी की परेशानियों को देख अब तक नहीं पशीजा दिल – गोपा धपोला
जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर काबिज व्यक्ति भी हमारे समाज की ही एक महिला है। परन्तु यह कैसी महिला है यह कहना बहुत मुश्किल है। आप ही सोचिये जो स्वयं एक नारी होकर दूसरी नारी का दर्द नहीं समझ सकती है वह जनपद का दर्द कैसे समझ सकती हैं। इतनी गर्मी में हम पिछले 20 दिनों से अपने छोटे-छोटे बच्चों को घर पर अकेला छोड़ क्षेत्र के हक के लिए धरने पर बैठे हैं और वह घर पर आराम कैसे कर सकती है समझना मुसकिल है। जो मध्यस्ता की बात करना तो दूर कार्यालय आना तक उचित नहीं समझ रही हैं। यह हमारे बागेश्वर जनपद व बागेश्वर जनपद की शांतिप्रिय जनता के साथ एक धोखा है। क्या इन्ही राजनीतिक द्वेष भावना के साथ होगा जनपद का समान विकास ? क्या यही है इनका महिला सम्मान ? क्या इसी बात के लिए इनकी पार्टी ‘बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ’ व ‘महिला समानता’ का नारा देती है। मुझे पहले लगता था पर आज विश्वस हो गया है इनकी पार्टी दोहरे मापदण्डो को अपनाती है। तभी तो ये लोग कहते कुछ और करते कुछ हैं। लोगों को गुमराह करने की इनकी पॉलिसी है।
तीन दिन के लिखित आश्वाशन पर स्थगित हुआ गोपा धपोला का आमरण अनशन —
जैसा कि हमारे पाठकों को पूर्व विदित है कि बुधवार को सुबह 11 बजे से जिला पंचायत सदस्या भैरुचौबट्टा गोपा धपोला ने आमरण अनशन कि घोषणा जिला पंचायत अपर मुख्य अधिकारी डाँ सुनील कुमार की मौजूदगी में पत्रकार बंधुओं के माध्यम से की थी। अपने कथनानुसार वह ठीक 11 बजे से आमरण अनशन पर चली गई। इस बीच जिपं अपर मुख्य अधिकारी उन्हे मनाते रहे पर वह अपनी बात पर अडिग रहीं। परन्तु दुर्भाग्य कहें या सत्ता का नशा जिला पंचायत अध्यक्ष ने इस पर भी धरने पर बैठी सदस्य से बात तक करनी उचित नहीं समझी और न ही जनपद के जिलाधिकारी आईएएस विनीत कुमार और न ही मुख्य विकास अधिकारी डी. डी. पंत व स्वास्थ्य विभाग की कोई टीम धरना स्थल पर उनकी सुध लेने पहुंची। इतनी गर्मी मे अन्न जल त्यागे एक महिला के लिये इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? क्या इसी सोच के साथ हमारे प्रदेश की कल्पना हमारे आंदोलनकारी पूर्वजों ने की होगी? मामला तब गंभीर हुआ जब अन्य दिनों की भाति साँय 5 बजे भी धरना स्थल खाली नहीं हुआ, तब प्रशासन अपनी नींद से जागा। उसके बाद तहसीलदार नवाज़िश खलिक अपनी टीम के साथ धरनास्थल पहुंचे और आमरण अनशन पर बैठे जिला पंचायत सदस्य को मनाने की पुरजोर कोशिश करी। उसके बाद तीन दिन मे समाधान की बात लिखित मे और जब तक सभी सदस्यों की सहमति नहीं बन जाती तब तक बजट के आवंटन संबन्धित समस्त कार्यों का सम्पादन नहीं किया जाएगा अपर मुख्य अधिकारी द्वारा तहसीलदार की मौजूदगी मे देने पर रात 8 बजे बाद स्थगित किया। वहीं अनशन पर बैठी सदस्य गोपा धपोला का कहना है कि हम क्षेत्र के विकास की मांग व समान बजट वितरण को लेकर यहाँ बैठे हैं। तब तक यहाँ से नहीं हिलेंगे जब तक हमारी मांगे नहीं मानी जायेंगी। जिला पंचायत हमारा एक परिवार है और हमें परिवार के प्रत्येक सदस्य की भावनाओं का समान रूप से सम्मान करना चाहिए। इसी भाव से मैंने आमरण अनशन स्थगित किया है यदि इन तीन दिनों मे अपर मुख्य अधिकारी का रवैया पूर्व की भांति रहा और उनके द्वारा मध्यस्ता की कोई सकारात्मक पहल कर निर्णय नहीं लिया गया तो मजबूरन हमें उग्र आन्दोलन को बाध्य होना पड़ेगा, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी शासन प्रशसान की होगी। अभी तक हम सभी आंदोलनरत सदस्य धैर्य बनाये हुए हैं जिस दिन हमारे धैर्य का बांध टूट गया उस दिन प्रशासन से स्थिति संभाले नहीं संभलेगी तब क्या होगा? प्रशासन को इस बात बात पर गौर कर कार्यवाही अमल मे लानी चाहिये।
सदस्यों को गुमराह करना किसी अपराध से कम नहीं है – नवीन परिहार
गुरुवार को जिला पंचायत उपाध्यक्ष नवीन परिहार ने प्रेस वार्ता करते हुये मीडिया के माध्यम से जिला पंचायत अध्यक्ष बसंती देव पर सदस्यों को गलत एक्ट दिखाकर गुमराह करने का आरोप लगाया है। उन्होने कहा कि यह बागेश्वर जनपद के इतिहास कि पहली सबसे शर्मनाक घटना है। इसके लिए अध्यक्ष महोदया को सार्वजनिक तौर पर एवं सभी सम्मानित सदस्यों से क्षमा मागनी चाहिये। एक सम्मानित पद पर रहते हुये यह किसी बड़े अपराध से कम नहीं है। जिला प्रशासन ने इसका संज्ञान लेते हुये इस पर कार्यवाही करनी चाहिये। उनके द्वारा अपने साथ लाया गया एक्ट पूरी तरह से गलत है जिसकी पुष्टि सूचना के अधिकार मे प्राप्त एक्ट से हो चुकी है। उन्होने सदन की गरिमा को खंडित करने का काम किया है और प्रदेश की सभी तेरह जिला पंचायतों मे बागेश्वर जिला पंचायत को शर्मसार करने का काम किया है। यह निंदनीय है जिसकी हम सभी धरने पर बैठे नौ सदस्य निंदा कराते हैं।
धारा 420, 467, 468 में दर्ज करेंगे मुकदमा – हरीश ऐठानी
पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष व वर्तमान जिला पंचायत सदस्य शामा हरीश ऐठानी का कहना है कि उन्होने हाईकोर्ट व जिला न्यायालय के अधिवक्ताओं से विधिक राय ली है और उसी के आधार पर अध्यक्ष के खिलाफ सोमवार को वाद दायर किया जायेगा। उनका कहना है कि नियमों के अनुसार संवैधानिक पद पर रहते हुये संविधान से खिलवाड़ करने व धोखाधड़ी कर सम्मानित सदस्यों को गुमराह करने पर अध्यक्ष के खिलाफ धारा 420, 467 और 468 के अंतर्गत सश्रम कारावास कि सजा के प्रावधान के साथ ही उन्हें अपनी सदस्यता से भी हाथ धोना पड़ सकता है। अध्यक्ष द्वारा जिला पंचायत की शाख धूमिल करने के साथ ही हर जनपदवासी को शर्मसार करने का काम किया किया है जिसके लिए उन्हें माफ नहीं किया जा सकता है। उन्होने जिला पंचायत परिवार के मान सम्मान को आघात पहुंचाने का काम किया है।
“लिहाज़ा हमारे देश में नारी अस्मिता की बातें करना भी हमारे समाज के लोगों द्वारा अपनाए जाने वाले दोहरे चरित्र व दोहरे मापदंड का ही सबसे मज़बूत उदाहरण है। हम लाख देवियों की पूजा कर लें, महिला मान-सम्मान के लिए भाषण देते फिरें,बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान चलाकर लोक लुभावनी बातें करते फिरें परंतु हकीकत यही है कि भारतवर्ष में नारी की अस्मिता व सम्मान की जो वास्तविक स्थिति है वह दर्पण में साफ दिखाई दे रही है और ज़ाहिर है दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता। जिसका ज्वलंत उदाहरण बागेश्वर जिला पंचायत में धरने पर बैठी महिला सदस्य हैं।“