तुला इंस्टीट्यूट द्वारा अवैध तरीके से प्राप्त की गई मान्यता
तुला इंस्टीट्यूट में एक बहुत बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। इंस्टीट्यूट को जब मान्यता दी गई, उस समय जिन लोगों को यहां पर अध्यापक के रूप में कार्यरत बताया गया वह तो उस समय यहां थे ही नहीं। वे देहरादून या देहरादून से बाहर अलग अलग शिक्षण संस्थानों अथवा दूसरी कंपनियों में नौकरी कर रहे थे। इस खुलासे के बाद इस बात की भी आशंकाएं और अधिक बलवती हो गई है कि ऐसे अन्य इंस्टीट्यूट भी हो सकते हैं, जिन्होंने इस तरह से फर्जी फैकल्टी दिखाकर मान्यता हासिल कर ली।
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अहम सवाल यह है कि जिन अधिकारियों और मंत्रियों के संरक्षण में इस तरह के इंस्टीट्यूट चल रहे हैं, क्या उनके खिलाफ भी कोई कार्यवाही हो पाएगी अथवा नहीं !
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से स्पष्ट होता है कि तुला इंस्टीट्यूट देहरादून द्वारा अवैध तरीके से अपने संस्थान में इंजीनियरिंग तथा मैनेजमेंट कोर्स को चलाने के लिए फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति दिखाकर मान्यता हासिल की गई।
सूचना के अधिकार के तहत उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय से उन शिक्षकों की लिस्ट मांगी गई थी, जिनको तुला इंस्टीट्यूट द्वारा निरीक्षण समिति के समक्ष पेश किया गया था।
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सूचना के अधिकार से प्राप्त लिस्ट में ऐसे- ऐसे शिक्षकों का नाम है, जिनका कभी तुला इंस्टीट्यूट से कोई संबंध नहीं रहा या निरीक्षण तिथि के समय वह अन्यत्र जगह पर कार्य थे।
सूचना के अधिकार से प्राप्त लिस्ट में कुछ ऐसे शिक्षकों का नाम भी है जो निरीक्षण की तिथि के समय सरकारी विभागों या अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों में कार्यरत थे।
तकनीकी शिक्षा में इस प्रकरण को एक काले अध्याय के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि इन्हीं कारणों से तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आई है, फलस्वरूप छात्रों का रुझान तकनीकी शिक्षा में कम हुआ है। जीरो टॉलरेंस की सरकार में अब यह देखा जाना बाकी है कि उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय इस संबंध मे तुला इंस्टीट्यूट पर क्या कार्यवाही करता है.
निरीक्षण की स्थिति के समय दर्शाई गई शिक्षकों की वास्तविक स्थिति निम्न प्रकार थी
१) अरुण गैंगवार उस समय सरकारी विभाग जल विद्युत निगम उत्तर प्रदेश में तैनात थे.
२) शशी भूषण विगत 3 साल से अफ्रीका में थे
३) रीता रावत देहरादून के निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में
४) दीपक पुनेठा उस समय आईआईटी पटना से पीएचडी कर रहे थे
५) राजेश कुमार सिंह इंडस्ट्री में कार्य थे
६) शिवानी पुन क्वांटम विश्वविद्यालय में करती
७) देवेश श्रीवास्तव सिंडिकेट बैंक में कार्य थे
८) स्नेहा जोशी सिर्फ इंटरव्यू देने कॉलेज में आई थी और उसके डॉक्यूमेंट रख लिए गए थे वर्तमान में वह नमामि गंगे मे कार्यरत हैं
९) अंकित अग्रवाल उस समय रुड़की में निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में
१०): मनोज गर्ग तथा पारस गर्ग इंडस्ट्री में कर रहे
११) नेहा चौहान उत्तरांचल यूनिवर्सिटी
१२) मयंक उनियाल , राहुल गुप्ता हेमलता देवलाल , आलोक कुमार कॉलेज छोड़ चुके थे
सूचना के अधिकार में प्राप्त जिन शिक्षकों के नाम सामने आए हैं, उनकी वास्तविक तैनाती के इस खुलासे के बाद आप भी जरूर हैरान होंगे।
अहम सवाल यह है कि क्या ऐसे इंस्टीट्यूट और इन्हें संरक्षण देने वाले अफसरों तथा मंत्रियों के खिलाफ भी कोई कार्यवाही होगी अथवा नहीं !!
ऐसे फर्जी संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य आखिर क्या होगा !!
इन संस्थानों की मोटी फीस भरने के बाद अभिभावकों और बच्चों के साथ जो छलावा होता है आखिर उसकी जिम्मेदारी किसकी है !
इन संस्थानों को संरक्षण देने वाले अफसर और मंत्री जी को क्या कुछ शर्म आएगी ! क्या पर्वतजन के पाठकों को अभी भी यह बताने की जरूरत है कि ऐसे संस्थानों को संरक्षण देने का काम कौन सा अफसर और कौन सा विभागीय मंत्री जी कर रहे हैं।
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