नर्सिंग बेरोजगारों के समर्थन में उतरा उक्रांद। सरकार पर लगाये कई आरोप
उत्तराखंड क्रांति दल नर्सिंग बेरोजगारों के समर्थन में खुलकर सामने आ गया है। आज पत्रकारों से वार्ता के दौरान उत्तराखंड क्रांति दल ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार प्रदेश के बेरोजगारों को रोजगार के अवसरों से वंचित करने के लिए अजीबोगरीब नए-नए मानक अपना रखी है। उत्तराखंड क्रांति दल द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद प्रदेश के राजकीय चिकित्सालयों के लिए स्टाफ नर्सों की भर्ती प्रक्रिया विवादों में आ गयी है।
उत्तराखंड क्रांति दल के नेता शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा कि, प्रदेश सरकार 2011 के बाद से पहली बार स्टाफ नर्सों की सीधी भर्ती करने जा रही है। लेकिन सरकार द्वारा मांगे जा रहे 30 शैय्यायुक्त अस्पताल से 1 साल के कार्यानुभव की अनिवार्यता और इन बेरोजगारों से मांगे जा रहे आयकर फॉर्म 16 की वजह से हजारों नर्सिंग डिग्री/डिप्लोमाधारी छात्र परीक्षा में बैठने से वंचित हो गए हैं। यूकेडी नेता सेमवाल ने सरकार से मांग की है कि, उन्हें परीक्षा में बैठने का मौका दे सरकार।
वहीं उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय संगठन मंत्री संजय बहुगुणा ने कहा कि, पहाड़ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों और बड़े प्राइवेट अस्पतालों की कमी को मद्देनजर रखते हुए प्रशिक्षित बेरोजगारों से इस तरह का अनुभव और फॉर्म 16 मांगना इस पूरी भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। केंद्रीय संगठन मंत्री संजय बहुगुणा ने इस बात के प्रति आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि, सरकार बेरोजगारों से नौकरी के नाम पर आयकर फॉर्म 16 मांग रही है।
यूकेडी नेता शिव प्रसाद सेमवाल ने आपत्ति जताई और कहा कि, एक पहाड़ी राज्य जिसके किसी भी पहाड़ी जिले में कोई इतना बड़ा अस्पताल ना होने के बावजूद सरकार द्वारा इन प्रशिक्षित बेरोजगारों से अनुभव मांगा जाना कैसे भी न्यायोचित नही लगता। जबकि हिमाचल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उड़ीसा, केरल, पंजाब और दिल्ली जैसे अन्य सभी राज्यो में कही भी अनुभव की अनिवार्यता नही है। जब दिल्ली जैसे राज्य जहाँ के सभी अस्पताल 30 बेड से बड़े हैं, वहां भी अनुभव की अनिवार्यता नही रखी गयी है, तो फिर उत्तराखंड जैसे अभावयुक्त राज्य में ऐसा अनुभव अनिवार्य करना कैसे उचित हो सकता है?
नर्सिंग बेरोजगारों का कहना है कि, जब सरकार स्टाफ नर्स की लिखित परीक्षा करा रही है तो फिर अनुभव की अनिवार्यता क्यों? बड़े शहर और अस्पतालों में सब नर्सिंग प्रशिक्षितों को नौकरी नही मिल पाती। वो प्रशिक्षित नर्सिंग बेरोजगार कहाँ जायँगे जो 2012 से इस भर्ती का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। जबकि प्रत्येक नर्सिंग डिग्री और डिप्लोमाधारी अपने 3-4 वर्षीय कोर्स का 60 से 70% प्रशिक्षण अस्पतालों में क्लिनिकल कार्य के रूप में प्राप्त करते हैं। फिर उनसे अब 1 साल का अनुभव और फॉर्म 16 क्यों? जब कही किसी भी राज्य में ये अनिवार्यता नही तो अपने विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले अभावग्रस्त उत्तराखंड में ये अनिवार्यता क्यों?
युवा मोर्चा की जिलाध्यक्ष सीमा रावत ने कहा कि, सभी को निष्पक्ष तरीके से परीक्षा में बैठने का मौका मिलना चाहिए। क्योंकि पहाड़ के ये प्रशिक्षित बेरोजगार कहा से 1 साल का अनुभव और फॉर्म 16 लाएंगे। जब पहाड़ में कोई 30 बेड का अस्पताल है ही नही।