
देहरादून।
उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को देश-विदेश तक पहुंचाने वाले प्रसिद्ध लोकगायक सौरभ मैठाणी अब देहरादून स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट (ITM) के वार्षिक महोत्सव में अपने सुरों से समां बांधने जा रहे हैं। इस मौके पर कॉलेज परिसर में पारंपरिक लोकधुनों के साथ आधुनिक रंगों का संगम देखने को मिलेगा।
लोकसंगीत की आत्मा: सौरभ मैठाणी
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के जखोली ब्लॉक स्थित कुवीला खाल गाँव में जन्मे सौरभ मैठाणी ने बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि दिखाई। उनकी मां, श्रीमती हेमा मैठाणी स्वयं एक प्रसिद्ध गढ़वाली लोकगायिका हैं और आकाशवाणी से जुड़ी रही हैं, जबकि पिता श्री चैतराम मैठाणी पेशे से शेफ हैं। परिवार में संगीत का माहौल ही सौरभ के लोकगायक बनने की प्रेरणा बना।
उन्होंने “मैं पहाड़ों कु रेबासी”, “सपना स्याली”, “नीलिमा”, “गुड्डू का बाबा” और “बौ सुरेला” जैसे गीतों के माध्यम से पारंपरिक संगीत को आधुनिक अंदाज में प्रस्तुत कर युवाओं के बीच खूब लोकप्रियता हासिल की है। सोशल मीडिया पर उनके गीत लाखों लोगों द्वारा देखे और सराहे गए हैं।
संस्कृति और तकनीकी शिक्षा का संगम
आईटीएम संस्थान ने सौरभ मैठाणी को अपने वार्षिक महोत्सव में आमंत्रित कर यह संदेश दिया है कि तकनीकी शिक्षा और सांस्कृतिक विरासत साथ-साथ चल सकते हैं। इस आयोजन का उद्देश्य छात्रों को अपनी जड़ों से जोड़ते हुए, उन्हें सांस्कृतिक जागरूकता की दिशा में प्रेरित करना है।
महोत्सव को लेकर छात्रों में उत्साह
सौरभ मैठाणी की प्रस्तुति की खबर से छात्र-छात्राओं में खासा उत्साह है। कॉलेज परिसर में लोकगीतों पर नृत्य प्रस्तुतियों की तैयारियाँ जोरों पर हैं। कुछ छात्र उनके गीतों पर वाद्य यंत्रों का अभ्यास कर रहे हैं तो कुछ उनसे बातचीत के लिए प्रश्नों की सूची तैयार कर रहे हैं। यह आयोजन केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं होगा, बल्कि यह छात्रों के लिए प्रेरणा और सीख का स्रोत भी बनेगा।
सम्मानों से नवाजे गए सौरभ
सौरभ मैठाणी को उत्तराखंड रत्न, यूथ आइकन अवार्ड और लोक संस्कृति सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उन्होंने दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़, पुणे और बेंगलुरु जैसे शहरों में उत्तराखंड की संस्कृति को मंच प्रदान किया है।
संस्थान का प्रयास: सांस्कृतिक पुनर्जागरण की पहल
आईटीएम का यह कदम सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यह केवल एक कलाकार को मंच देने की बात नहीं है, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत, उसकी बोली और पहचान को संरक्षित करने का संकल्प भी है।
जब सौरभ मैठाणी आईटीएम के मंच पर अपने लोकगीतों से विद्यार्थियों को भावविभोर करेंगे, तो यह केवल एक सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं होगी, बल्कि यह एक प्रेरणादायी संदेश होगा—कि हम अपनी जड़ों को न भूलें, और अपनी विरासत को गर्व से आगे बढ़ाएं।