अनुज नेगी
कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत कालागढ़ टाइगर रिजर्व के बफर जोन पाखरो में टाइगर सफारी में अवैध निर्माण व हज़ारों पेड़ कटान के प्रकरण की अब विजिलेंस जांच होगी। इस प्रकरण में विभाग के स्तर से अधिकारियों पर दोष निर्धारण के लिए विभाग में ही खींचतान देखने को मिली थी।इस प्रकरण में अलग-अलग स्तर से दो जांच बिठाई गईं, लेकिन नामित दोनों ही अधिकारियों ने जांच से इन्कार कर दिया था। अब शासन ने मामले में विजिलेंस जांच का निर्णय लिया है।
आपको बतादें कि कोटद्वार से करीब 30 किमी दूर काॅर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरो रेंज में टाइगर सफारी के लिए 106 हेक्टेयर भूमि में प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट टाइगर सफारी का निर्माण कार्य चल रहा है। टाइगर सफारी के निर्माण के लिए 163 पेड़ो की अनुमति मांगी गई थी,मगर विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों भ्रष्ट नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए 10 हजारों पेड़ काटे दिए,ओर वही कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग के पाखरों वन विश्राम गृह और कालागढ़ वन विश्राम गृह के बीच अवैध निर्माण भी करा दिए ।जब पार्क में हज़ारों पेड़ कटान का प्रकरण मीडिया में सुर्खियां आया तो वन महकमे में हड़कंप मच गया।
आनन-फानन कार्बेट टाइगर रिजर्व प्रशासन से मामले में रिपोर्ट तलब की गई। राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग ने कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल की जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पाखरो में टाइगर सफारी के लिए जितने पेड़ों के कटान की अनुमति ली गई थी उतने ही काटे गए। सफारी के लिए इससे अधिक कोई भी पेड़ नहीं काटा गया है।वहीं जब मामलें ने तूल पकड़ा तो जेएस सुहाग ने पाखरों रेंज के वन क्षेत्राधिकारी (रेंजर) बृज बिहारी शर्मा को निलंबित कर दिया।
आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी और एपीसीसीएफ बीके गांगटे ने जांच से खींचे हाथ
टाइगर रिजर्व (सीटीआर) की पाखरो रेंज में टाइगर सफारी के लिए हज़ारों पेड़ काटे जाने के मामले में नया मोड़ आ गया है।
हज़ारों पेड़ो के पातन मामलें में अधिकारियों पर दोष का निर्धारण करने के मद्देनजर शासन के निर्देश पर विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) ने मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी को जांच सौंपी थी। इसके अलावा मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने भी एपीसीसीएफ बीके गांगटे को जांच सौंपने के आदेश जारी किए थे। दोनों ही अधिकारी विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए जांच से इन्कार कर चुके हैं।
मामले की जांच के पीसीसीएफ राजीव भरतरी ने वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को सौंपी थी। लेकिन संजीव चतुर्वेदी ने मामले की जांच की वैधता और जांच से पहले उठाए जा रहे तमाम सवालों के बाद जांच करने से इनकार कर दिया है।
आईएफएस संजीव चवुर्वेदी ने लिखा है कि उन्होंने अब तक अपने सेवाकाल में भ्रष्टाचार, कदाचार से संबंधित सैकड़ों प्रकरणों की जांच कर उसे मुकाम तक पहुंचाया। जिसमें सत्तारूढ़ दलों के शक्तिशाली नेताओं से लेकर वरिष्ठतम अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की भ्रष्टाचार के मामलों में संलिप्तता उजागर हुई। इस जांचों की सरहाना सीबीआई, सीवीसी, संसदीय समिति और अन्य प्राधिकरणों की ओर से भी की गई। लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि उन्हें किसी मामले में जांच अधिकारी बनाए जाने के बाद इतना भय, व्याकुलता, भ्रम और संशय की स्थिति से गुजरना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि इस मामले की जांच विभाग या शासन स्तर पर सही में कराई भी जानी है या लिपापोती का प्रयास किया जा रहा है।
अवैध निर्माण और पातन मामले में मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी के बाद जांच अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ) बीके गांगटे ने भी जांच करने से इनकार कर दिया है। उन्होंने मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक द्वारा उन्हें जांच अधिकारी नामित किए जाने को नियम विरुद्ध करार दिया है।
गांगटे का कहना है कि वह वर्तमान में एपीसीसीएफ के पद पर कार्यरत हैं, जिसके नियंत्रक प्राधिकारी विभाग प्रमुख पीसीसीएफ हैं। ऐसे में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक की ओर से उन्हें जांच अधिकारी नामित करना नियम विरुद्ध और विधिक रूप से अमान्य है। ऐसे में उनके द्वारा प्रकरण की जांच करना संभव नहीं है। साथ ही सुझाव दिया है कि प्रकरण की जांच वन्यजीव शाखा में तैनात किसी दक्ष अधिकारी से कराना श्रेयस्कर होगा।
आखिर किस के डर से जांच नही कर रहें अधिकारी या राजनीतिक दवाब
टाइगर रिजर्व (सीटीआर) का चर्चित मामला में टाइगर सफारी के लिए हज़ारों पेड़ काटे जाने के मामले की विभाग के उच्च अधिकारी जांच करने से कतरा रहे है, या तो अधिकारी किसी राजनीतिक दवाब के चलते जांच करने से कतरा रहे है या किसी अधिकारी को बचाने में लगें है।
टाइगर रिजर्व (सीटीआर) के चर्चित मामले की जांच करने में कोई भी अधिकारी हाथ डालने को तैयार ही नही है,जिसके कारण चर्चित मामले जांच अब बिजलेंस को सौप दी गई है। अब अगर बिजलेंस जांच करेंगे तो कहीं अधिकारियों पर गाज गिरना तय है,और कई नेताओं की भी मुश्किलें बढ़ने वाली है।
क्या है मामला
कोटद्वार से करीब 30 किमी दूर काॅर्बेट टाइगर रिजर्व के पाखरो रेंज में प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट टाइगर सफारी का निर्माण कार्य चल रहा है।
टाइगर सफारी के निर्माण के लिए 163 पेड़ों की अनुमति मांगी गई थी,मगर विभाग के अधिकारियों व नेताओ की मिलीभगत से 10 हज़ार पेड़ काटे दिए गए, वही कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग के पाखरों वन विश्राम गृह और कालागढ़ वन विश्राम गृह के बीच अवैध निर्माण, पाखरों से कालागढ़ के बीच सड़क पर कर्ल्वट बनाने और जलाशय का निर्माण आदि की शिकायतें हैं।
उधर, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की फटकार के बाद काॅर्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) प्रशासन हरकत में आने के बाद शनिवार को कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग (केटीआर) के मोरघट्टी वन विश्राम गृह परिसर में निर्माणाधीन चार आवासीय भवन ध्वस्त कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता गौरव बंसल ने पिछले महीने 26 अगस्त को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) में एक याचिका दायर कर दावा किया था कि कॉर्बेट नेशनल पार्क में टाइगर सफारी की व्यवस्था करने के लिए 10,000 पेड़ काटे गए हैं।
इसे लेकर बीते शुक्रवार को केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की उप महानिरीक्षक वन सोनाली घोष ने उत्तराखंड वन विभाग को पत्र लिखकर इस मामले की वास्तविक स्थिति बताने को कहा है।
उत्तराखंड के वन क्षेत्र प्रमुख राजीव भरतरी ने कहा कि उन्होंने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) से एक हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है। साल 2019 में उत्तराखंड सरकार ने टाइगर सफारी प्रोजेक्ट लागू करने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी मांगी थी। उन्होंने अपने आवेदन में कहा था कि इसमें 163 पेड़ काटे जाएंगे।
याचिकाकर्ता बंसल ने अपने याचिका में मांग की है कि काटे गए पेड़ों की वास्तविक संख्या बताई जाए। उन्होंने इस परियोजना को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से मिली मंजूरी को भी रद्द करने की मांग की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बंसल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए इतने पेड़ काटे गए है। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने साल 2001 में अपने एक आदेश में कहा था कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में किसी भी स्थिति में कोई भी पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए।”
याचिकाकर्ता बंसल ने कहा कि कॉर्बेट के पाखरो ब्लॉक में गैर-वन कार्यों के लिए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा दो के तहत वन सलाहकार समिति से मंजूरी की आवश्यकता होती है।