स्टोरी(कमल जगाती,नैनीताल):-
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में भारतीय वन सेवा(आई.एफ.एस.)के चर्चित अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के लिए कहा कि उन्हें उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं पर विश्वास नहीं है । न्यायालय ने इस वजह से उन्हें अपने मामले की स्वयं पैरवी(इन पर्सन)करने की अनुमति देते हुए मामले की सुनवाई 23 अक्टूबर को तय की है ।
मामले के अनुसार आई.एफ.एस.अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्ति में गड़बड़ी को लेकर सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल(कैट)में याचिका दायर की थी । इसमें कैट की नैनीताल सर्किट पीठ सुनवाई कर रही थी, लेकिन उसे बाद में कैट की दिल्ली पीठ को रैफर कर दिया था । इसे संजीव चतुर्वेदी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए मामले की सुनवाई नैनीताल में ही करने की अपील की थी ।
इस मामले में पैरवी के लिये संजीव चतुर्वेदी ने उच्च न्यायालय में सीनियर और जूनियर अधिवक्ता नियुक्त किये थे । लेकिन पिछले दिनों उन्होंने उच्च न्यायालय में “हाईकोर्ट ऑफ उत्तराखण्ड, पार्टी इन पर्सन रूल्स 2020” के तहत अपने मामले की पैरवी स्वयं करने का प्रार्थना पत्र दिया ।
इसकी सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने संजीव चतुर्वेदी से पूछा कि उन्होंने पहले से ही सीनियर और जूनियर अधिवक्ता नियुक्त किये हैं, तो अब इन-पर्सन क्यों आना चाहते हैं और यदि उन्हें दूसरे सीनियर अधिवक्ता की आवश्यकता है तो न्यायालय उन्हें उपलब्ध कराएगा ।
न्यायालय के इन सवालों के जबाव में संजीव चतुर्वेदी ने कहा कि उन्हें उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं पर विश्वास नहीं है, इसलिये उन्हें अपने मामले की स्वयं पैरवी करने की अनुमति दी जाए ।
संजीव चतुर्वेदी ने न्यायालय को बताया कि वे कैट के अलावा दिल्ली हाईकोर्ट, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट में भी अपने मामले की स्वयं पैरवी कर रहे हैं । उच्च न्यायालय ने इस मामले में बहस के बाद उन्हें इन-पर्सन पैरवी की अनुमति दे दी है । न्यायालय ने संजीव चतुर्वेदी के अधिवक्ताओं के प्रति की गई टिप्पणी को रिकॉर्ड में लिया है।
उच्च न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि इस मामले के रिकॉर्ड को देखने से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि संजीव चतुर्वेदी को वास्तव में एक कठिन कार्य का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उन्होंने कई मौकों पर एक विसिल ब्लोअर के रूप में काम किया है।
प्रथम दृष्टिया, यह भी पता चलता है कि संजीव चतुर्वेदी बड़ी संख्या में विवादों में उलझे हुए हैं, जिन्हें वे कई मंचों के समक्ष अपने पक्ष को स्पष्ट करने और हल करने का प्रयास करते रहे हैं। विभिन्न मंचों द्वारा की गई कई टिप्पणियां, वास्तव में संजीव चतुर्वेदी के पक्ष में हैं।
कानून के उनके ज्ञान, उनके विद्वता तर्क, कानून के उनके महत्वपूर्ण विश्लेषण और तथ्यों की कुछ कानूनी मंचों द्वारा सराहना की गई है। इस प्रकार, स्पष्ट रूप से संजीव चतुर्वेदी वर्तमान मामले में तथ्यों और कानून दोनों पर बहस करने की स्थिति में हैं। वा
स्तव में, यह नोट करना दुखद है कि एक वादी को “बार के सदस्यों में कोई विश्वास नहीं है”। लेकिन शायद यह संजीव चतुर्वेदी के मन में एक गलत धारणा है। इस तरह की धारणा केवल बार के विद्वान सदस्यों और कानूनी बिरादरी के विद्वान सदस्यों को थोड़ा आत्मनिरीक्षण करने के लिए मजबूर करता है। संजीव चतुर्वेदी का भी यह मत है कि वे अपने वकील को मुसीबत में डालने का जोखिम नहीं उठाना चाहते। जबकि याची प्रभावशाली व्यक्तियों के खिलाफ अपनी एकल लड़ाई लड़ता है। इसलिए वह पेशेवर अधिवक्ता को शर्मिंदगी से बचाना चाहता है ।