उत्तराखंड में वन्यजीवों का कहर, लोकसभा में गूंजा पहाड़ का दर्द

उत्तराखंड में मानव और वन्यजीवों के बीच टकराव इन दिनों अपने चरम पर है। पहाड़ी जिलों—विशेषकर पौड़ी, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी—में भालू और गुलदार के बढ़ते हमलों ने ग्रामीणों में भारी दहशत फैला दी है। रोजमर्रा की जिंदगी इस कदर प्रभावित हो गई है कि सामान्य गतिविधियाँ भी जोखिम भरी हो चुकी हैं। बढ़ती घटनाओं के चलते यह मुद्दा अब सीधे लोकसभा तक पहुँच गया है।

लोकसभा सत्र के दौरान गढ़वाल सांसद अनिल बलूनी ने उत्तराखंड में जंगली जानवरों के बढ़ते खतरे का विषय विस्तार से उठाया। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ हफ्तों में मानव वन्यजीव संघर्ष ने भयावह रूप ले लिया है। सिर्फ तीन सप्ताह के भीतर चार लोगों की जान जा चुकी है जबकि 15 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। खास बात यह कि भालुओं के हमले इस मौसम में आम तौर पर नहीं होते, लेकिन इस बार घटनाएँ अचानक बढ़ गई हैं, जो स्थिति को और चिंताजनक बना रही हैं।

सांसद बलूनी ने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों में लोग भय में जी रहे हैं। कई गांवों में बच्चे सुरक्षा कारणों से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। गांवों में शाम होते ही सन्नाटा पसर जाता है और माहौल कर्फ्यू जैसा हो जाता है। महिलाओं का जंगल जाना और पुरुषों का खेती-बाड़ी या दैनिक जरूरतों के लिए बाहर निकलना बेहद खतरनाक हो चला है।

उन्होंने सदन को बताया कि यह मामला उन्होंने कुछ दिन पहले केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव के सामने भी रखा था, ताकि तुरंत प्रभाव से जंगली जानवरों की गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें। बलूनी ने कहा कि राज्य में वन्यजीवों का मूवमेंट अनियंत्रित होता जा रहा है और इसका सीधा असर ग्रामीणों की सुरक्षा और मानसिक शांति पर पड़ रहा है।

इसी के मद्देनजर उन्होंने उत्तराखंड के पीसीसीएफ (प्रधान मुख्य वन संरक्षक) से अनुरोध किया है कि जंगली जानवरों के हमलों और गतिविधियों की रोजाना समीक्षा की जाए और संबंधित रिपोर्ट प्रतिदिन उपलब्ध कराई जाए, ताकि जरूरत पड़ने पर तत्काल राहत और सुरक्षा उपाय लागू किए जा सकें।

उन्होंने साफ कहा कि, “जनसुरक्षा सर्वोपरि है। पहाड़ों में रहने वाले लोगों की जिंदगी किसी भी हाल में खतरे में नहीं छोड़ी जा सकती। इस दिशा में हम हर संभव और त्वरित कार्रवाई के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।”

राज्य में वन्यजीवों के बढ़ते दबाव और लगातार होती घटनाओं ने यह संकेत दे दिया है कि अब एक व्यापक नीति, मजबूत सुरक्षा ढांचा और जमीनी स्तर पर त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है।

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