एक्सक्लुसिव
आर के सुधांशु व डॉ. अरुण त्रिपाठी की भ्रष्टाचार पर सांठगांठ
शासन में आयुष विभाग में बैठे अधिकारी लगता है उत्तराखंड आयुर्वेद विभाग को खंड-खंड कर ही दम लेंगे। आयुर्वेद विभाग में फार्मेसिस्टों की भर्ती और ट्रांसफर में हुए घपले- घोटाले की आग अभी ठंडी भी नही हुई है, वहीं शासन में बैठे विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने उक्त प्रकरण में हाथ सेंकते हुए निदेशक के पद से हटाए गए डॉ. अरुण त्रिपाठी की पुनः बहाली के लिए तिकड़म भिड़ानी शुरु कर दी है।
वैसे इसके संकेत तो तभी मिलने लगे थे जब निदेशक पद से हटाए जाने के बावजूद भी सचिव आयुष आर के सुधांशु ने डॉ. अरुण त्रिपाठी को न तो कारण बताओ नोटिस जारी किया न ही उनके कारनामो की जांच हेतु जांच अधिकारी नामित किया। पर्वतजन ने तब भी सचिव की मंशा पर सवाल उठाये थे।
उसी क्रम में आर के सुधांशु ने नया पैंतरा चलते हुए 29-30 अगस्त को बैंगलुरु में होने वाले सीआईआई के 8वें इन्वेस्टर समिट में मुख्यमंत्री के साथ जाने वाली टीम हेतु डॉ अरुण त्रिपाठी को नामित किया है। उक्त कार्यक्रम हेतु सुधांशु ने अपने से संबंधित विभागों में आइटीडीए निदेशालय से निदेशक व बायोटेक निदेशालय से निदेशक को नामित किया है, वहीं निदेशक आयुर्वेद का दायित्व देख रहे अपर सचिव आयुष आनंद स्वरूप के स्थान पर भ्रष्टाचार के आरोपों में निदेशक के पद से हटाये गए डॉ अरुण त्रिपाठी को शामिल करते हुए आदेश जारी कर दिया है। उक्त कार्यवाही से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सचिव किस प्रकार आयुष विभाग में अपनी मनमानी करने पर तुले हैं , उक्त निर्णय से क्या सचिव आर के सुधांशु मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति की खुले आम धज्जिया उड़ाते नज़र नहीं आ रहे हैं?
प्रभारी निदेशक के पद से भ्रष्टाचार के आरोप में हटाये गए अरुण त्रिपाठी को मुख्यमंत्री की टीम का हिस्सा बनने से क्या साफ साफ पता नही लग रहा है कि आर के सुधांशु व अरुण त्रिपाठी में बीच निदेशक पद को लेकर कोई बड़ी डील हो चुकी है। सचिव का अरुण त्रिपाठी को मुख्यमंत्री की टीम में भेजना उसी क्रम में उठाया गया कदम है।
ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले सूबे के मुख्यमंत्री आयुष सचिव की उक्त कार्यवाही पर क्या रुख अख्तियार करते हैं, उक्त दिशा में त्रिवेंद्र रावत का हर कदम उनकी ज़ीरो टॉलरेंस की नीति की सार्थकता को भी प्रमाणित करेगा।