हाईकोर्ट द्वारा अवैध अतिक्रमण हटाने को लेकर किए गए आदेश के आगे अब सरकार खुद ही आड़े आ गई है। इससे जीरो टॉलरेंस की पोल खुल चुकी है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने महाधिवक्ता मोहनलाल बाबुलकर को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि अतिक्रमण अभियान को रोकने के लिए तत्काल कानूनी कार्यवाही की जाए।
मोहनलाल बाबुलकर ने कहा कि अब इसकी अपील तो केवल सुप्रीम कोर्ट में ही हो सकती है और शनिवार तथा इतवार की छुट्टी होने के कारण अब इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा सोमवार को ही खटखटाया जा सकता है।
किंतु यह साफ हो गया है कि सरकार अवैध अतिक्रमण हटाने के विरोध में अब खुद ही खड़ी हो गई है। इसके पीछे बरसात के मौसम का बहाना लिया गया है। सरकार का कहना है कि बरसात के मौसम में अतिक्रमण हटाने से मलिन बस्तियों में रहने वाले लोग कहां जाएंगे !
बड़ा सवाल यह है कि आज सरकार बरसात के बहाने यदि अतिक्रमण के खिलाफ कोर्ट में जाती है तो फिर वह आगामी निकाय चुनाव तक इस मुहिम को दोबारा से शुरुआत नहीं कर पाएगी और फिर सर्दियां आ जाएंगी फिर सरकार के पास एक नया बहाना होगा कि अब सर्दियां हो गई है, इसलिए अब क्या किया जाए ! इसके बाद फिर सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव का डर पैदा होने लगेगा और इस तरह से अतिक्रमण हटाने की मुहिम ठंडे बस्ते में जा सकती है।
देहरादून में धन सिंह, उमेश शर्मा, हरवंश कपूर, विधायक गणेश जोशी, खजानदास, पूरन फर्त्याल आदि विधायकों सहित नगर निगम चुनाव के मुख्य दावेदार सुनील उनियाल गामा ने आज मुख्यमंत्री से इस संबंध में मुलाकात भी की। खजानदास तथा सुनील उनियाल गामा ने इस मुलाकात की पुष्टि की तथा कहा कि यह मलिन बस्तियों के हित मे है।
मुख्यमंत्री ने महाधिवक्ता मोहनलाल बाबुलकर के साथ मुलाकात करके सुप्रीम कोर्ट में अभियान को पीछे खिसकाने अथवा स्थगित करने के लिए अपील दायर करने के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने कहा था कि अवैध अतिक्रमण को न सिर्फ हटाया जाए बल्कि जिनके कार्यकाल में यह अवैध अतिक्रमण हुए हैं उन अफसरों के खिलाफ भी कार्यवाही की जाए और इस कार्यवाही को करते हुए यह जरूर ध्यान रखा जाए कि कुल्हाड़ी केवल छोटे अफसरों पर ही न गिरे बल्कि बड़े से बड़े अफसर अगर जिम्मेदार हैं तो किसी को भी छोड़ा न जाए।
किंतु अतिक्रमण हटाओ अभियान शुरुआत से ही पक्षपात का शिकार रहा है। कहीं पहुंच वाले लोगों के अतिक्रमण से एक बार लगे हुए निशान मिटाए जा रहे हैं तो कहीं फीता लगाने में अफसर पक्षपात कर रहे हैं। इससे आए दिन बवाल हो रहा है।
वहीं सरकार जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ अभी तक एक शब्द भी नहीं बोली है, कार्यवाही करना तो बहुत दूर की बात है।
एक ओर सरकार पहाड़ों में उफनती नदी नालों और बादल फटने की तमाम घटनाओं से आपदा पीड़ितों को उबारने में अक्षम साबित हो रही है वहीं आपदा का बहाना करके अतिक्रमण अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रही है।
सरकार के इस फैसले से जनता में कड़ी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। देहरादून में हाई कोर्ट के इस फैसले का सभी अतिक्रमणकारी चुपचाप पालन कर रहे थे तथा इसके खिलाफ जाने की कोई सोच भी नहीं रहा था किंतु सरकार के इस तरह से खिलाफ खड़े होने से अतिक्रमणकारियों के हौसले बुलंद हो रहे हैं।
माना जा रहा है कि सरकार का यह कदम आगामी निकाय चुनाव को देखते हुए उठाया गया है। सरकार को लगता है कि यदि अतिक्रमण हटाओ अभियान जारी रहेगा तो शहर मे उन्हें वोटों का नुकसान हो सकता है। यह बात तो साफ़ है कि मुख्यमंत्री के ऊपर किसी तरीके का कोई दबाव नहीं है। किंतु इसके बावजूद यह मुख्यमंत्री सहित सरकार में शामिल कुछ लोगों के हित हैं, जिनके कारण बरसात का बहाना करके अतिक्रमण हटाओ अभियान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी की जा रही है।
सरकार के इस निर्णय से नाराज एक व्यक्ति का कहना है कि देहरादून में आजकल तमाम जगहों पर लोग अपने आवासीय भवनों का नव निर्माण कर रहे हैं। यदि बरसात ही इन में बाधा होती तो फिर वह लोग आजकल भवन निर्माण के कार्यों में नहीं लगे होते, किंतु सरकार को तो बरसात का केवल बहाना ही चाहिए।
जाहिर है कि जनता को डबल इंजन और प्रचंड बहुमत तथा जीरो टॉलरेंस के दावे करने वाली सरकार से इस तरह के ढीले करैक्टर की उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं रही होगी।