पर्वतजन द्वारा कई मर्तबा आबकारी घोटाले से अवगत कराने के बाद आबकारी विभाग ने मदिरा की दुकानों के लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू की है।
यह टेंडर आबकारी विभाग ने जिला आबकारी अधिकारी के माध्यम से मांगे हैं। यह टेंडर सिर्फ 1 महीने के लिए हैं जो 30 अप्रैल तक के लिए होंगे। आबकारी विभाग ने बड़ी चालाकी से यह नीति बनाई है कि 31 मार्च की दोपहर 12:00 बजे तक टेंडर जमा कराए जा सकेंगे। और 4:00 बजे जिलाधिकारी कार्यालय में टेंडर खोले जाएंगे। आबकारी विभाग ने चमोली, पिथौरागढ़, पौड़ी, उत्तरकाशी जैसे जिलों का टेंडर तो अखबार में प्रकाशित भी किया है। किंतु देहरादून और टिहरी जैसे जिले का क्यों नहीं किया। यह अपने आप में बड़ा प्रश्न है।
अकेले टिहरी में इस बार 20 नई दुकानें खोली जानी है। और केवल टिहरी से ही आबकारी विभाग ने 68 करोड रुपए के राजस्व का लक्ष्य रखा हुआ है। इससे समझा जा सकता है कि टिहरी को लेकर आबकारी विभाग कितनी उम्मीद से है।
पहले आबकारी विभाग ने मदिरा की दुकानों का लाइसेंस अप्रैल तक के लिए इस तर्क के साथ बढ़ा दिया था कि नई आबकारी पॉलिसी पर कैबिनेट का निर्णय देर में हुआ है और अब नए टेंडर कराने के लिए समय नहीं बचा है। आबकारी विभाग का तर्क था कि टेंडर कराने के लिए कम से कम 15 दिन का समय होना चाहिए। आबकारी विभाग ने पहले जानबूझकर पॉलिसी लटकाए रखी और जो 15 दिन वाला टेक्निकल पेंच फंस गया तो 1 अप्रैल तक के लिए दुकानों के लाइसेंस बढ़ा दिए थे।
इस में घोटाला यह था कि दुकानदारों ने पहले ही शराब स्टोर करके रख ली थी ताकि अगले 1 अप्रैल से बढ़ी हुई दामों पर शराब बेची जा सके। दूसरा घोटाला इसमें 1 महीने के लिए होने वाले राजस्व का भारी भरकम नुकसान भी शामिल था।पर्वतजन ने जब इस खेल का खुलासा किया तो आबकारी विभाग ने दिखावे के लिए 1 माह के लिए टेंडर आमंत्रित कर लिए।
अब आप देखिए कि खेल कहां हो गया है। कहते हैं कि चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से न जाए। कुछ इसी तर्ज पर आबकारी विभाग ने देहरादून में 1 माह के लिए टेंडर तो निकाले लेकिन यह टेंडर 1 तरीके से पुराने दुकानदारों को ही लाइसेंस 1 महीने तक आगे बढ़ाने जैसा ही है। बस कान थोड़ा घुमा कर पकड़ा है।
क्योंकि पहला तथ्य यह है कि आबकारी विभाग ने कहीं भी यह नहीं बताया है कि टेंडर किन किन दुकानों के लिए निकाला जा रहा है।
दूसरा तथ्य यह है कि आबकारी विभाग ने कहीं यह नहीं बताया है कि इन दुकानों का पिछला टर्नओवर क्या रहा है।
जब तक किसी को यह पता नहीं चलेगा कि इस दुकान से कितनी सेल हुई है, तब तक वह किस आधार पर और किस रेट पर टेंडर डालने का रिस्क लेगा !
तीसरा तथ्य यह है कि आबकारी विभाग ने देहरादून में किसी भी दुकान का बेस प्राइज नहीं रखा है। कोई आम आदमी भी समझ सकता है कि जब तक आबकारी विभाग बेस प्राइस ही निर्धारित नहीं करेगा तो कोई टेंडर किस आधार पर डालेगा !जाहिर है कि आबकारी विभाग में पुराने दुकानदारों को ही लाइसेंस 1 महीने आगे बढ़ाने के लिए तरकीब निकाली है। इस तरह से पूरी आशंका जताई जा रही है कि यह टेंडर पहले से ही फिक्स हैं।
आज शाम टेंडर खोलने के बाद जिनके नाम दुकानें आवंटित होंगी, यदि उनका मिलान पिछले साल के दुकानदारों से किया जाए तो तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाएगी कि घुमा फिरा कर पिछले साल वालों को ही 1 महीने के लिए दुकानें आवंटित की गई है।