उत्तराखंड में अपने गठन के बाद से ही अधर में झूल रहे सीपीपीजीजी यानि सेंटर फॉर पॉलिसी प्लानिंग एंड गुड गवर्नेंस के चेयरमैन पद से पूर्व प्रमुख सचिव उमाकांत पंवार इस्तीफा दे सकते हैं। उनके स्थान पर पूर्व मुख्य सचिव एन रविशंकर सीपीपी जीजी के नए चेयरमैन हो सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक रविशंकर इस पद पर आने के इच्छुक बताए जा रहे हैं।
एन रविशंकर वर्तमान में राज्य जल आयोग के अध्यक्ष हैं। राज्य जल आयोग का गठन पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने किया था। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी सरकार के अंतिम दौर में केंद्रीय जल आयोग का गठन करके पूर्व मुख्य सचिव को इसका अध्यक्ष बनाया था। तब सियासी गलियारों में यह चर्चा हुई थी कि केदारनाथ आपदा घोटाले में सरकार को क्लीन चिट देने के तोहफे के रूप में एन रविशंकर को यह तोहफा दिया गया है।
रविशंकर मुख्य सूचना आयुक्त के पद के प्रति इच्छुक थे, किंतु उस पद पर IAS तथा पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह की तैनाती की गई। अपने गठन के बाद से ही राज्य जल आयोग लगभग निष्क्रिय था। नई सरकार ने इस आयोग के प्रति कुछ खास रुचि नहीं दिखाई।
दूसरी तरफ उमाकांत पंवार भी एकाधिक बार अपने समकक्ष अफसरों से जाहिर कर चुके थे कि लंबी सरकारी नौकरी के दौरान उन्हें उनकी रुचि के अनुसार पढ़ने लिखने का समय नहीं मिल पाया। ऐसे में वह और अधिक कामकाज के इच्छुक नहीं है। उमाकांत के वी आर एस को भी इसी नजर से देखा गया। वर्तमान नौकरशाही से उनको पहले जैसी तवज्जो न मिलने और सरकारी तामझाम से उदासीनता के चलते यह तय माना जा रहा है कि वह ज्यादा समय तक इस पद पर नहीं रहेंगे।
सीपीपीजीजी का गठन अभी अपने प्रारंभिक दौर में है। यह माना जा रहा है कि सीपीपीजीजी के गठन की शुरुआती प्रक्रियाओं के संपन्न होने तक उमाकांत पंवार को इस पद पर रहने के लिए कहा गया था। अब इसमें विभिन्न पदों पर, सलाहकारों आदि के लिए विज्ञापन प्रकाशित किए जा रहे हैं। तो ऐसे में माना जा रहा है कि एन रविशंकर सीपीपीजीजी के अध्यक्ष पद के लिए आवेदन कर सकते हैं।
एक और तथ्य है कि अपने गठन के बाद से ही सीपीपीजीजी के गठन को एक बड़ी फिजूलखर्ची के तौर पर भी देखा जा रहा है। सीपीपीजीजी का कार्य विकास कार्यों के संदर्भ में सरकार को नीतिपरक सुझाव देना होगा। यही कार्य प्रदेश राज्य योजना आयोग कर रहा है। उत्तराखंड में राज्य योजना आयोग के ढांचे को समाप्त नहीं किया गया है। राज्य योजना आयोग में पहले से ही अर्थ एवं सांख्यिकी विभाग से लेकर अन्य विभागों से अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर सलाहकार आदि पदों पर कार्य कर रहे हैं।
सीपीपी जीजी में भी विभिन्न विभागों से अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर आने के इच्छुक हैं। यही नहीं लगभग इसी तरह की सलाह देने के नाम पर यूएनडीपी भी उत्तराखंड में कार्य करने का इच्छुक है। यूएनडीपी कोई धर्मार्थ संस्था नहीं है। यूएनडीपी अपने फायदे के लिए उत्तराखंड में अपना विस्तार करना चाहता है। यूएनडीपी का कार्य भी पॉलिसी प्लानिंग में सुझाव देना होगा।
बड़ा सवाल यह है कि जब राज्य योजना आयोग, सीपीपी जीजी और यूएनडीपी नाम की यह तीनों संस्थाएं एक ही कार्य करेंगी और यह सभी संस्थाएं सलाहकारों की भर्तियां करके सलाह देने का काम ही करेंगी तो उत्तराखंड में इन तीन संस्थाओं की आवश्यकता ही क्या है !
यह कर्ज के भारी बोझ तले दबे राज्य पर एक और अनावश्यक खर्च के तौर पर भी देखा जा रहा है। एक सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि जब यूएनडीपी और सीपीपीजीजी जैसी संस्थाओं ने भी राज्य योजना आयोग जैसा ही कार्य करना है तो भारी भरकम तनख्वाह पर इन दोनो संस्थाओं में सलाहकारों की आवश्यकता क्या है !
यह कार्य राज्य योजना आयोग भी आराम से कर सकता है।यदि सलाहकारों की बाहर से आवश्यकता पड़ेगी तो राज्य योजना आयोग भी सलाहकारों की भर्ती कर सकता है। देश के दर्जनों ऐसे राज्य हैं जो उत्तराखंड से कई गुना बड़े हैं और जिनकी आर्थिक स्थिति उत्तराखंड से कहीं बेहतर है किंतु वहां भी सीपीपीजीजी और यूएनडीपी जैसी संस्थाओं की आवश्यकता नहीं जताई गई। ऐसे में उत्तराखंड राज्य पर उनका बोझ लादना उचित प्रतीत नहीं होता। बहरहाल देखना यह है कि वित्त विभाग तथा राज्य सरकार इस विषय पर क्या निर्णय लेती है !