आरटीआई में एक बड़ा खुलासा हुआ है। राज्य में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) की खस्ता हालत के लिए राज्य सरकार ही दोषी है।
गौरतलब है कि पिछले काफी लंबे समय से राज्य सरकार आरटीई की खराब हालत के लिए केंद्र सरकार के सर पर ठीकरा फोड़ देती है।
हालात यह है कि निजी स्कूल सरकारी कोटे के गरीब बच्चों को अपने यहां आरटीई के अंतर्गत प्रवेश देने में इसलिए आनाकानी करते हैं क्योंकि राज्य सरकार उनका बकाया भुगतान नहीं कर रही है।
जब इस बात पर राज्य सरकार की आलोचना होती है तो राज्य सरकार आराम से अपनी गेंद केंद्र सरकार के पाले में खिसका देती है और कहती है कि केंद्र सरकार ने अभी तक धन स्वीकृत नहीं किया है।
जबकि हकीकत इसके बिल्कुल उलट है। हकीकत जानने के लिए आरटीआई एक्टिविस्ट हेमंत गोनिया ने सूचना के अधिकार का प्रयोग किया। आरटीआई में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के विशेषज्ञ ने जो जानकारी दी उसके अनुसार इसके लिए जिम्मेदार सीधे-सीधे राज्य सरकार है।
दरअसल जब राज्य सरकार शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आने वाले खर्चे को वहन कर देती है तो वह इसकी रिपोर्ट भारत सरकार को भेज दी जाती है।
भारत सरकार फिर राज्य सरकार द्वारा खर्च किए गए पैसे को प्रतिपूर्ति (रिंबर्स) कर देती है। लेकिन जब राज्य सरकार ही शिक्षा के अधिकार अधिनियम में पल्ले से खर्च नहीं करेगी तो फिर खर्च किए गए धन की रिपोर्ट भी नहीं भेज पाएगी। ऐसे में तो फिर आखिर केंद्र सरकार भी कहां से प्रतिपूर्ति करेगी !!
हेमंत गोनिया ने शिक्षा सचिव कार्यालय से सूचना के अधिकार में पूछा था कि उत्तराखंड में जब से यह अधिनियम लागू हुआ है, तब से लेकर अब तक केंद्र सरकार द्वारा कितना पैसा उत्तराखंड राज्य सरकार को दिया गया तथा केंद्र सरकार के ऊपर राज्य सरकार को दी जाने वाली धनराशि में कितनी धनराशि देनी बाकी है !
साथ ही उन्होंने राज्य सरकार को दी गई धनराशि का ब्यौरा वर्ष वार उपलब्ध कराने को कहा था। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के विशेषज्ञ ने जानकारी दी कि वर्ष 2015-16 में 39.50 करोड रुपए धनराशि भारत सरकार द्वारा राज्य सरकार को दी गई तथा वर्ष 2018-19 में 47.146 करोड़ की धनराशि दी गई।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के समन्वयक तथा विशेषज्ञ ने बताया कि भारत सरकार द्वारा उतनी ही धनराशि प्रतिपूर्ति के रूप में दी जाती है जो कि राज्य सरकार द्वारा निजी विद्यालयों में प्रवेश कराए गए बच्चों के शुल्क आदि पर व्यय की जाती है।
वर्ष 2014 से वर्ष 2018 तक यदि राज्य सरकार द्वारा पूर्ण भुगतान कर दिया जाता है तो तभी भारत सरकार 152.384 करोड़ रुपए की धनराशि राज्य सरकार को दे सकती है।
ऐसे में राज्य सरकार जो बार-बार अपनी अक्षमता का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ देती है, उसका खुलासा सूचना के अधिकार अधिनियम में दी गई इस जानकारी से हो जाता है। राज्य सरकार तथा उनके अफसरों का यह रवैया ना सिर्फ जनता के साथ एक धोखा है बल्कि उत्तराखंड के गरीब नौनिहालों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।