कुलदीप एस. राणा
उत्तराखण्ड आयुर्वेदिक विवि में एक बार फिर से अवैध नियुक्तियों का खेल शुरू हो गया है। नियुक्ति-नियुक्ति का यह खेल और कोई नही स्वयं विवि के प्रभारी रजिस्ट्रर राजेश अड़ाना के नेतृत्व में खेला जा रहा है। अपनों को पिछले दरवाजे से एंट्री करवाने के उद्देश्य से राजेश अड़ाना ने विवि में परीक्षा नियंत्रक पद सृजित किया है।
राजकुमार नामक व्यक्ति के लिए यह पद प्रभारी कुलसचिव द्वारा कुलपति को अपने प्रभाव में लेकर बनाया गया है। जबकि उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 एवं परिनियमावली 2015 में यह पद सृजित ही नहीं है,नियमानुसार उक्त अधिनियम और परिनियमावली में उपलब्ध पदों के अतिरिक्त यदि कोई भी पद बनाया जाता है तो उसके लिए उत्तराखंड शासन अथवा विश्वविद्यालय की कार्यसमिति से अनुमोदन लेना अनिवार्य होता है, लेकिन आननफानन में अपन आकाओं को खुश करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस पद को बनाकर नियुक्ति होने जा रही है।
24 अप्रैल 2018 को मुख्य सचिव की तरफ़ से शासनादेश हुआ कि बिना शासन की अनुमति के संविदा अन्सकालिक दैनिक कर्मियों की नियुक्ति नहीं कर सकते हैं यदि किसी नियुक्ति अधिकारी ने अवैध तरीके से नियुक्ति की तो उसके वेतन से कटोती की जायेगी
मुख्य सचिव का यह आदेश सभी विभागों, निगमों एवं निकायों के लिए जारी किया गया है, यदि कोई भी विभाग एवं संस्था प्रमुख इसका उल्लंघन करता है तो उसके वेतन से अवैध नियुक्त कर्मचारी के वेतन राशि की वसूली का स्पष्ट निर्देश उक्त शासनादेश में दिया गया है।
राजेश अड़ाना द्वारा उक्त पद के संदर्भ में अनुमति की कोई भी कार्यवाही नही की गई है। उत्तखण्ड शासन द्वारा अप्रैल 2018 में जारी एक शासनादेश में कहा गया कि कोई भी विभाग /संस्थान बिना शासन की अनुमति के संविदा व अंशकालिक दैनिक कर्मियों की नियुक्ति नही कर सकता है।
ऐसे में विवि में स्वयंभू बने अड़ाना ने भीतर खाने न सिर्फ परीक्षा नियंत्रक का एक पद स्थापित किया साथ उक्त पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक पदाधिकारी के भाई राजकुमार की ताजपोशी की पूरी तैयारी भी कर ली। कांट्रेक्ट बेसिस पर भरे जाने वाले उक्त पद के लिए राजेश अड़ाना ने 29 सितंबर को एक गुपचुप आदेश जारी किया जिसे न तो विवि की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है और न ही किसी दैनिक अखबार के माध्यम से कोई विज्ञापन प्रकाशित किया गया।
फ़िर खानापूर्ति के लिये 2 अक्तूबर देर शाम उक्त आदेश को वेबसाईट पर अपलोड किया गया ताकि एक दिन के उपरांत की जाने वाली नियुक्ति मे कोई अड़चन पैदा न हो जाये।
आश्चर्यजनक बात यह है कि ठीक उसी दिन अड़ाना द्वारा विवि की यू ए यू सी पीजी 2018 की ऑनलाइन काउंसिलिंग के आदेश भी जारी किये गए।जिसका विज्ञापन एक अक्टूबर को विभिन्न दैनिक अखबारों में प्रकाशित करवाया गया किन्तु परीक्षा नियन्त्रक के पद का विज्ञापन कहीं प्रकाशित नही हुआ। जो राजेश अड़ाना की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
उक्त घटनाक्रम से यह भी सवाल खड़ा होता है कि कल तक विवि में बैक डोर एंट्री से होने वाली नियुक्तियों पर हंगामा खड़ा करने वाली विद्यार्थी परिषद क्या अब उसी भ्रष्टाचार के द्वार से अपनों को रोजगार दिलाने में जुट गई है !