लंबे इंतजार के बाद आखिरकार उत्तराखंड में मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति हो गई और रिटायर होने से ठीक पहले शत्रुघ्न सिंह भी एक पांचसाला कुर्सी पर विराजमान हो गए। मुख्य सूचना आयुक्त के पद की भर्ती का विज्ञापन सूचना आयुक्त के भर्ती के विज्ञापन के बाद निकाला गया था। तीन बार सूचना आयुक्त की भर्ती के संबंध में बैठक हो चुकी है, किंतु फैसला है कि होता नहीं। दर्जनों पत्रकार और कई अधिकारी इंतजार कर रहे हैं कि कब रिजल्ट आउट हो और वे उत्तराखंड सूचना आयोग के शानदार कार्यालय में बैठकर मजे उड़ाएं। मीठी गोली देने वाले नाड़ीवैद्य मुखिया जी जानते हैं कि चुनाव आते-आते वे मीडिया के लोग कम
से कम उनके और उनकी सरकार के बारे में ऐसी बात नहीं कहेंगे-लिखेंगे, जिससे मुखिया जी की पार्टी को नुकसान हो। दर्जनों पत्रकारों को इसी प्रकार मीठी गोली खिला-खिलाकर कइयों को शुगर पीडि़त कर चुके मुखिया जी कभी नेता प्रतिपक्ष को तो कभी राजभवन को दोष मढ़ रहे हैं। पत्रकार समझ नहीं पा रहे हैं कि वो विरोध करें या साथ में खड़े रहें। फिलहाल तो उम्मीदें कायम हैं और उम्मीदों पर ही दुनिया टिकी हुई है। देखना है कि आचार संहिता से पहले कितनों की उम्मीदें ध्वस्त होती हैं।
इसलिए हो रही मंत्री के बेटे की चमचागिरी!
उत्तराखंड में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे हर दिन नए-नए किस्से सामने आ रहे हैं। मंत्रियों-विधायकों ने पिछले पांच सालों के लेखा-जोखा के साथ-साथ नए-नए न्यूज पोर्टल से लेकर अति उत्साही फेसबुकियों के मोबाइल इस शर्त पर रीचार्ज करने शुरू कर दिए हैं, ताकि वे दिनभर इन लोगों की चरण वंदना कर सकें। शाम को गमगला करने को जब दो पुराने दोस्त बैठे तो एक ने अपने न्यूज पोर्टल वाले दोस्त से पूछ ही लिया कि पत्रकारिता के गिरते स्तर पर उसने कईयों को मंत्री-विधायकों की चरण-वंदना करते तो सुना था, लेकिन तू क्यों मंत्री के बिगड़ैल बेटे की भी कर रहा है? तीन पैग पीने के बाद आखिरकार पत्रकार महोदय ने उगल ही दी कि वो एक जरूरी काम के लिए मंत्री के घर पर गया था और मंत्री के बेटे ने उसे पिताजी के साथ-साथ अपनी भी चरण वंदना करने के बाद ही काम दिलाने की शर्त रखी है। जिस प्रदेश में पत्रकारों की हालत अब मंत्रियों के बेटों की चमचागिरी तक पहुंच गई हो, वहां मंत्रियों की ‘हनकÓ और उनके ‘कनकÓ की चांदी कटनी स्वाभाविक है।
छोटा राज्य-छोटी सोच
ऐसा कहा जाता है कि छोटे घरों में रहने वालों की संतानें भी छोटे कद की ही रह जाती हैं। उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के नेता भी अपने आचरण से इस कहावत की पुष्टि कर रहे हैं। चुनावी दौर में टिकट प्राप्ति व जनता में रौब-गालिब करने के लिए नेताओं के वाहनों पर लगी नाम पट्टिकाएं इसे साबित कर रही हैं।
हरिद्वार में पिछले दिनों महिला कांग्रेस के सम्मेलन में पहुंची एक महिला नेत्री की कार पर लगी नेतानीं की बड़ी-सी पदनाम पट्टिका देखकर सब चौंक गए। लिखा था ‘जिलाध्यक्ष महानगर उत्तराखंड सरकारÓ! जब नेतानीं जी से पूछा गया कि सरकार ने यह कब और कौन सा पद सृजित किया है तो वह बगलें झांकने लगी।
दूसरा उदाहरण द्वारहाट का है, जहां एक नेताजी अपनी गाड़ी पर ‘विधायक उम्मीदवार द्वारहाट विधानसभाÓ का बोर्ड लगाए घूम रहे हैं। हरिद्वार के एक नेताजी की विज्ञप्ति में उनका परिचय प्रवक्ता उत्तराखंड सरकार लिखा रहता है, जबकि सरकार में ऐसा कोई पद ही नहीं है। यह नेता अपनी अज्ञानता के कारण ऐसा कर रहे हैं अथवा लोगों को भ्रमित कर अपना रौब-गालिब करने के लिए, मालूम नहीं, लेकिन ऐसे नेताओं की छोटी सोच पूरे राज्य को ही बदनाम कर रही है।