शिव प्रसाद सेमवाल
अराजके जनपदे स्वकं भवति कस्याचित्। मत्स्या इव जना नित्यं भक्षयन्ति परस्परम।।
अर्थात राज्य में कर्तव्यच्चुत और असंवेदनशील नेतृत्व जब आपराधिक वृत्ति के लोगों पर अंकुश लगाने का संकल्प नहीं ले पाते हैं और उचितानुचित का विवेक खो बैठते हैं तो उस राज्य में बड़ी मछली द्वारा छोटी को आहार बना लेने जैसी अराजकता छा जाती है। उत्तराखंड में इसी अराजकता को खत्म करने के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे पर विश्वास करके जनता ने उत्तराखंड को सत्ता सौंपी है। एनएच-७४ हाइवे के लिए भूमि अधिग्रहण घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति देने के साथ ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इसमें संलिप्त आधा दर्जन अधिकारियों को सस्पेंड करके अपने तेवर जाहिर कर दिए हैं। चीनू पंडित के साथ मित्र पुलिस का रोल निभाने वाले पुलिस कर्मियों को भी निलंबित करके उन्होंने सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है।
संघ और केंद्र की पसंद के तौर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र रावत के सामने ऐसी ही कई तरह की चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों पर आवरण कथा में पद्मश्री डा. अनिल प्रकाश जोशी और वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने विस्तार से प्रकाश डाला है। अब यह त्रिवेंद्र रावत जी का कौशल है कि वह चुनौतियों को अवसर में कैसे बदलते हैं।
उत्तराखंड की सरकारों में अब तक के सर्वाधिक प्रचंड जनादेश के साथ श्री त्रिवेंद्र की कुर्सी अब तक के मुख्यमंत्रियों में सबसे मजबूत मानी जा रही है। सोशल मीडिया में उनकी एक-एक गतिविधि को लेकर त्वरित टिप्पणी करने वाले अति व्यग्र भी दो भागों में बंट गए हैं। एक धड़ा उनकी तुलना उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कर रहा है तो दूसरा धड़ा टीका-टिप्पणी के लिए उन्हें और अधिक वक्त दिए जाने का पक्षधर है।
वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट ने त्रिवेंद्र रावत के अब तक के प्रदर्शन का विश्लेषण पाठकों के सम्मुख रखा है। भाजपा को प्रचंड बहुमत देने वाले उत्तराखंड के जागरुक वोटर और खुद मुख्यमंत्री श्री रावत को भी अपनी शुरुआत का विश्लेषण करना ही चाहिए। डबल इंजन किस दिशा में जा रहा है, यह शुरू से ही सतर्कता की मांग करता है। शुरू में ही दिशा गलत हो तो इतिहास बड़ा निर्मम साबित होता है। यदि दिशा सही हो तो इंजन को शुरुआती गति पकडऩे में लगने वाला समय खास मायने नहीं रखता। सीएम के लिए ‘सुनो सबकी करो मन कीÓ नीति पर चलना मुफीद साबित होगा। कहीं ऐसा न हो कि यूपी से तुलना और लोकप्रियता की अधीर मांग के चलते वह अपनी स्वाभाविक चाल भूलकर गैर जरूरी छापामारी के प्रदर्शन में पड़ जाएं!
मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र रावत के नाम की घोषणा होते समय उत्तराखंड के चकड़ैत लोगों में निराशा व्याप्त हो गई थी कि त्रिवेंद्र तो किसी को मुंह नहीं लगाते, अब काम कैसे होंगे! यह निराशा मंत्रिमंडल का गठन होते ही छंट भी गई। चकड़ैतों के चेहरों पर फिर चमक आ गई कि सरकार किसी की भी हो, आदमी तो हमारे ही पावर में हैं। इस चमक की चौंध में मुख्यमंत्री का चेहरा कहीं खो न जाए, इस आशंका को निर्मूल सिद्ध होना बाकी है।
जनता ने दागी-बागी कुछ न देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी की बात पर विश्वास कर वोट दिया है।
सत्ता संभालते ही पहली प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने पहली और दूसरी प्राथमिकता गाय और गंगा को गिनाया। हो सकता है यह २०१९ में होने जा रहे आम चुनावों के लिए जरूरी हो, किंतु राज्य के पारदर्शी और स्वच्छ प्रशासन के साथ ही विकास पहली प्राथमिकता है। वोट मांगते वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार से मुक्ति का वादा किया था, गौवध और गंगा का नहीं।