राजनीति भी कई खेल खिलाती है। इसी तरह के उदाहरण अब भारतीय जनता पार्टी के डबल इंजन सरकार में दिखाई देने लगे हैं। कल तक एक दूसरे के खून के प्यासे आज गलबहियां कर रहे हैं। हालांकि यह नहीं मालूम कि कब तक करेंगे। 2012 में उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार आई तो विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बन गए।
मंत्री होने के बावजूद प्रकाश पंत विधायकी नहीं बचा पाए और कांग्रेस के मयूख महर से 10 हजार से अधिक मतों से बुरी तरह हार गए। विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए तब विधायक बनना आवश्यक था तो भाजपा के टिकट पर जीतकर आए किरन मंडल को खरीदकर उसकी सितारगंज सीट खाली करवा दी।
भाजपा के टिकट पर किरन मंडल तब 10 हजार से अधिक वोटों से जीतकर ताजा-ताजा विधायक बने थे। विजय बहुगुणा के सितारगंज से प्रत्याशी बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने तब पिथौरागढ़ से हारकर खाली बैठे प्रकाश पंत को विजय बहुगुणा के खिलाफ चुनाव लड़ा दिया। जोरदार प्रचार हुआ। प्रकाश पंत ने विजय बहुगुणा को कभी बंगाली तो कभी इलाहाबाद वाला बताया तो विजय बहुगुणा ने भी वार करने में कोई कमी नहीं रखी। चुनाव परिणाम आया तो कांग्रेस के विजय बहुगुणा ने भारतीय जनता पार्टी के प्रकाश पंत को ४० हजार से अधिक मतों से हराकर चित कर दिया। हालांकि विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनते ही प्रकाश पंत की शिक्षिका पत्नी का पिथौरागढ़ से तत्काल स्थानांतरण भी हो गया, किंतु चुनाव में किसी ने किसी पर रहम नहीं किया। समय बदला और उत्तराखंड के इतिहास में 18 मार्च 2016 की वो घड़ी भी आई, जब बहुगुणा ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। उस दिन से चुनाव के दुश्मन बहुगुणा और पंत एक दूसरे के करीब आने लगे।
देखना है कि उत्तराखंड में पनपते नए घटनाक्रमों के बीच ये नए कांग्रेसी कब तक भाजपाई बने रहते हैं।