विश्व रंग मंच पर अनूठा प्रयोग।
गंगा की गोद में संगीत सभा।
विदेशियों ने गाए हिंदी भजन।
फ्लोटिंग जेट्टी पर कथक नृत्य।
गिरीश गैरोला
उत्तरकाशी की जोशियाड़ा झील के बीचों बीच गंगा की गोद में बांसुरी वादन, भजन और कथक नृत्य के साथ विश्व रंग मंच के दो दिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ। इससे पूर्व उत्तरकाशी कलेक्ट्रेट में स्थित ऑडिटोरियम में जनपद के दुर्लभ 17 नृत्यों को डिवाइन डांस ऑफ़ उत्तरकाशी नाम से वेब साइट की लॉन्चिंग की गयी और रंग मंच से जुड़े नामी कलाकरो की प्रस्तुति के बाद डीएम उत्तरकाशी ने उन्हें सम्मानित किया। गंगा यमुना के मायका होने के चलते अभी तक धार्मिक रूप में अपनी पहिचान बनाये उत्तरकाशी जनपद में अब सांस्कृतिक पर्यटन के साथ कुछ नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन की तलाश भी शुरू हो गयी है। वर्षो से खाली पड़ी जोशियाड़ा झील अब विद्युत उत्पादन के साथ पर्यटन की नए आयाम छूने को बेक़रार है। झील के चारों तरफ ongc के सीएसआर मद से सौंदर्यीकरण कर यहां नौकायन राफ्टिंग सहित वाटर स्पोर्ट्स की सुरुआत होने जा रही है।
जिसमे झील पर तैरता हुआ रेस्टोरेंट तो अगले एक सप्ताह के अंदर ही शुरू होने वाला है। रात के अंधियारे में चमचमाती रौशनी में झील के बीच मौजूद रोमानिया से आये विदेशी म्यूजिकल ग्रुप ने हिंदी भजन गाकर कार्यक्रम को चार चांद लगा दिए।
इस वर्ष विश्वरंग मंच दिवस 27 और 28 मार्च सीमांत जनपद उत्तरकाशी के लिये खास सौगात लेकर हाजिर हुआ, जब जनपद पिथौरागढ़ में रहते हुए आईएएस डॉ आशीष कुमार चौहान ने अपनी पहल को उत्तरकाशी में नयी सीख के साथ अमली जामा पहनाने के लिए अपनी टीम को मैदान में उतारा । इस टीम ने भी अपनी कड़ी मेहनत के बाद सुदूरवर्ती इलाकों से दुर्लभ और विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके 17 नृत्यों की पहचान कर इसे डिवाइन डांस के नाम से देश और दुनिया को समर्पित किया।
डीएम उत्तरकाशी डॉ आशीष कुमार चौहान इस पहल की सुरुआत अपने पिथौरागढ़ के कार्यकाल में कर चुके है किंतु वहां के अनुभवों से सीख का उत्तरकाशी जनपद को पूरा फायदा मिला है। उन्होंने बताया कि पिथौरागढ़ में वो चाहते थे कि वहां के छोलिया नृत्य को सामाजिक धरोहर के रूप में पेटेंट किया जाय अब उत्तरकाशी में बिखरी पड़ी सांस्कृतिक विरासत को समेट कर इसे पेटेंट करने की दिशा में कार्य करेंगे।
आईएएस चौहान ने बताया कि उनकी मनसा है कि वे संस्कृति के इस खजाने को अगली पीढ़ी तक पहचा सके । अब तक धार्मिक आयोजन तक सिमित उत्तरकाशी में गंगा की गोद में नए प्रयोग कर पर्यटन के नए आयाम तलासने की दिशा में डीएम का यह प्रयास पर्यटन के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
उत्तरकाशी जनपद के सुदूर बंगाण में पैदा हुए और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से रंग मंच पर अपनी कला का लोहा मनवा चुके रंग कर्मी सुवर्ण रावत कहते है कि सिनेमा कितना ही आगे बढे किन्तु रंग मंच कभी मर नहीं सकता यह सदैव जिन्दा रहेगा। उन्होंने बताया कि बड़े बड़े रंग कर्मी मनोज बाजपेयी , श्रीश डोभाल , प्रदीप बेनेकर, सुरेश शर्मा, हाफिज खान, और उनके गुरु बैरी जॉन खुद गंगा यमुना के मायके से उत्तरकाशी की मिट्टी को प्रणाम करके ही सफलता के शीर्ष तक पहुुंचे हैं। इसके अलावा हॉलीवुड और बॉलीवुड में भी नित नए सेलेब्रेटी तैयार करने वाले गुरु भी कहीं न कहीं गंगा यमुना की इस मिट्टी के कर्जदार हैं।
वहीं साउथ अमेरिका के ब्राजील, श्रीलंका के कोलम्बो में अपनी प्रस्तुति दे चुकी श्रीवर्णा रावत जो प्रसिद्ध रंगकर्मी सुवर्ण रावत की ही पुत्री है ने बताया कि पहली बार गंगा की गोद में फ्लोटिंग जेट्टी पर उन्होंने कथक नृत्य की प्रस्तुति दी है । इसलिये उत्सुकता के साथ थोड़ा नर्वश भी थी किन्तु अपने गृह जनपद में गंगा ने माँ की तरह अपने आगोश में लिया तो उसे विदेशों से भी सुखद अहसास हुआ।
अपने सन्देश में श्रीवर्णा ने कहा कि किसी भी बच्चे को उसके पैशन को पूरा करने के लिए समाज को सहयोग करना चाहिए साथ ही वे समाज के उस इलाके में जागरूकता बढ़ाने का काम करेंगे जहां महिलाओं का नृत्य करना ठीक नहीं समझा जाता है।
गंगा और यमुना का मायका उत्तरकाशी न सिर्फ गंगा यमुना के उद्गम के लिए बल्कि यहां सुंदर पहाड़ियां, झरने, झील और ताल-बुग्याल के लिए जाना जाता है , किंतु दुखद है कि देश और दुनिया की नजर में गंगोत्री और यमुनोत्री तीर्थ यात्रा के अतिरिक्त यहां के प्राकृतिक खजाने और सांस्कृतिक विरासत का उपयोग नहीं हो सका । नौजवान युवा आईएएस अधिकारी की पहल के बाद देश और दुनिया में के लोग यहां बिखरी पड़ी प्रकृति और संस्कृति को नए कलेवर के साथ देख सकेगी।