कक्षा 5 में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे नहीं लिख-पढ़ सकते अपनी मात्रभाषा
उत्तराखंड जैसे प्रदेश के लिए है बेहद चिंताजनक
पौड़ी। बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष योगेंद्र खंडूड़ी ने बच्चों के अधिकारों को लेकर उत्तराखंड की शिक्षा स्थिति पर गंभीर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि राज्य के मैदानी तथा पहाड़ी जिलों में शिक्षा के स्तर पर काफी बड़ा असंतुलन है। एनसीईआरटी आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड राज्य के 26 प्रतिशत बच्चे देश की राजधानी तक नहीं जानते, जबकि २१ प्रतिशत बच्चे अपने राज्य का ही नाम नहीं जानते। यह प्रदेश के लिए बेहद निराशाजनक आंकड़े हंै। १४ प्रतिशत बच्चे देश का नक्शा तक नहीं समझ पाते हैं। यही नहीं ४० प्रतिशत बच्चेे ऐसे हैं, जो घड़ी देखकर समय तक नहीं बता पाते हैं।
बाल संरक्षण आयोग क ेअध्यक्ष योगेंद्र खंडूड़ी बताते हैं कि यह सर्वे एनसीईआरटी और प्रथम संस्था ने किया है, जो वाकई विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा की पोल खोल रहा है। यह सर्वे १८ वर्ष तक के बच्चों का किया गया है। खंडूड़ी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि यह स्थिति केवल उत्तराखंड की ही होगी, इसी तरह देशभर के बच्चों, विशेषत: ग्रामीण क्षेत्रों की है, जहां शिक्षा की हालत बेहद खराब है।
विकास भवन पौड़ी के सभागार में बाल अधिकार आयोग के अध्यक्ष योगेंद्र खंडूड़ी ने विश्व स्तरीय संस्थाओं की ओर से देश तथा उत्तराखंड के बच्चों पर जारी विभिन्न सर्वेक्षण आंकड़ों पर विस्तार से जानकारी दी। शिक्षा के स्तर में उत्तराखंड का प्रतिशत अंाकड़ों के सापेक्ष काफी खराब स्थिति में है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में विश्व की दूसरे स्तर की सबसे घटिया शिक्षा है। भारत का शिक्षित युवा वर्ग मात्र 40 प्रतिशत ही नौकरी पाने के काबिल है, जबकि एनसीईआरटी की रिपोर्ट के अनुसार शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के स्तर पर काफी असंतुलन है।
कक्षा 5 में 50 प्रतिशत से अधिक बच्चे अपनी मात्रभाषा को भी ठीक तरह से लिख-पढ़ नहीं सकते। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के अनुसार देश के 37 प्रतिशत स्कूलों में बिजली की आपूर्ति नहीं है।
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में शिशु मृत्यु दर में कमी नहीं आ पा रही है। एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप के सर्वे के अनुसार भारत में हिमालयी राज्यों में चिकित्सा सुविधाओं का बेहद अभाव है, जिसके कारण हिमालयी राज्यों के बच्चों में अधिकतर बौनेपन की समस्या पायी जाती है। अध्यक्ष योगेंद्र खंडूड़ी ने कुपोषण, भुखमरी आदि के इंडक्स पर रोशनी डालते हुए बताया कि भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 38 प्रतिशत बच्चे कुपोषण से पीडि़त हैं।
नीति आयोग की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार देश के 177 कुपोषित जिलों में उत्तराखंड भी शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के चार जिले सर्वाधिक कुपोषण के शिकार हैं। जिनमें सर्वाधिक कुपोषित बच्चे हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, उत्तरकाशी तथा चमोली जिले शामिल हैं। देश में मध्य प्रदेश के सर्वाधिक 18 प्रतिशत जिले, महाराष्ट्र 13 प्रतिशत, बिहार 12 प्रतिशत तथा उत्तर प्रदेश के 7 प्रतिशत जिले कुपोषण की बीमारी की चपेट में हैं। भारत सरकार की नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार अपराध के मामले में दस हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड के बच्चों में अपराध की प्रवृत्ति सर्वाधिक है।
श्री खंडूड़ी ने बाल भिक्षा, बाल श्रम, बाल विवाह आदि मुद्दों पर अधिकारियों से अपने विचार साझा किए। उन्होंने बच्चों को गुणवत्तापरक शिक्षा तथा संस्कारों के लिए शिक्षकों तथा अभिभावकों को भी संस्कारवान तथा चरित्रवान शिक्षा देने की अपील की।
इस मौके पर पौड़ी के जिलाधिकारी सुशील कुमार ने सभी विभागों को एकजुट होकर बच्चों के प्रति कार्य करने को कहा। उन्होंने आयोग की गाइड लाइन के अनुसार शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, आईसीडीएस समेत सभी जिम्मेदार विभागों को बच्चों के प्रति अपनी सकारात्मक कार्यवाही करने को कहा।