कृष्णा बिष्ट
लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी गदगद है। उत्तराखंड में भाजपा ने पिछला प्रदर्शन दोहराते हुए पांच की पांच सीटें रिकॉर्ड मतों से जीती हैं। पार्टी को ऐतिहासिक सफलता दिलाना सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के सियासी करियर का बड़ा पड़ाव माना जा रहा है। उत्तराखंड हमेशा राजनीतिक साजिशों का गढ़ रहा है।
त्रिवेंद्र जिस दिन से सीएम बने उनके खिलाफ भी साजिशें कम नहीं हुई। भ्रष्टाचार के खिलाफ जबरदस्त मुहिम छेड़कर त्रिवेंद्र ने विपक्षी और अपनी ही पार्टी में कई ऐसे दुश्मन पाल लिए जो त्रिवेंद्र को अपनी राह का कांटा मानने लगे।
लेकिन स्वभाव से बेहद शांत और मितभाषी त्रिवेंद्र सिंह रावत चुपचाप साफ नीयत के साथ अपने विकासवादी एजेंडे पर चलते रहे। त्रिवेंद्र के नेतृत्व में बीजेपी ने थराली उपचुनाव जीता, नगर निकाय चुनावों में ऐतिहासिक प्रदर्शन किया, बावजूद इसके उनके खिलाफ अंदरखाने और बाहर से साजिशें होती रही। लेकिन जनता के विश्वास पर खरा उतर रहे सीएम त्रिवेंद्र ने हर चालाकी का मुंहतोड़ जवाब दिया।
लोकसभा चुनाव के परिणाम सीएम त्रिवेंद्र के विरोधियों के लिए एक करारा सबक हैं। ऐसा इसलिए कि ये चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़े गए थे, लेकिन सीएम त्रिवेंद्र ने प्रचार का जिम्मा अपने कंधों पर लिया था। सीएम ने राज्यभर में 55 रैलियां करके हर प्रत्याशी के लिए वोट मांगे, अपनी उपलब्धियों को गिनवाया। हर मुद्दे पर बेबाकी से राय दी औऱ जनता का विश्वास जीता। बहरहाल चुनाव नतीजों के बहाने उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ साजिश रचने वालों औऱ सत्ता परिवर्तन की मंशा रखने वालों को मुंह की खानी पड़ी है।