उत्तराखंड के कोटे से राज्यसभा चुनाव को लेकर हर दिन एक नया नाम सामने आ रहा है। बृहस्पतिवार को राज्यसभा के लिए प्रत्याशी के तौर पर हंस फाउंडेशन की संस्थापक माता मंगला का नाम उछला तो सियासी हलकों में तूफान आ गया।
दरअसल हकीकत यह है कि राज्यसभा के प्रत्याशी के तौर पर भाजपा की ओर से माता मंगला के नाम की चर्चा उनका एक विरोधी गुट करवा रहा है जो यह नहीं चाहता कि माता मंगला और हंस फाउंडेशन द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों का श्रेय उन्हें मिले।
इसके पीछे राजनीतिक साजिश यह है कि एक बार माता मंगला पर राजनीतिक रूप से एक पार्टी से जुड़े होने का ठप्पा लग जाएगा तो कांग्रेस पार्टी खुद-ब-खुद उनके खिलाफ खड़ी हो जाएगी।
हंस फाउंडेशन वर्तमान में भाजपा तथा कांग्रेस दोनों पार्टियों को समान रूप से देखता है। किसी भी पार्टी से हंस फाउंडेशन का कोई लेना देना नहीं है।
एक तथ्य और भी है कि माता मंगला तथा भोले जी महाराज भारत के नागरिक ही नहीं हैं। वह भारत के लिए एन आर आई हैं। उनकी पुत्री श्वेता जरूर भारत की नागरिक है। श्वेता हंस फाउंडेशन और हंस कल्चरल फाउंडेशन की चेयरपर्सन भी है। हंस फाउंडेशन शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उत्तराखंड राज्य में ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी व्यापक स्तर पर सामाजिक कार्यों में भागीदार है।
एक बार हंस फाउंडेशन पर पार्टी विशेष का ठप्पा लग गया तो फिर उनकी सामाजिक छवि धूमिल होनी तय है। संभवत: इसी तथ्य को ध्यान में रखकर उनका नाम राज्य सभा के प्रत्याशी के तौर पर उछाला गया है। वर्तमान में माता मंगला अपने सामाजिक कार्यों के सिलसिले में काठमांडू में है।
गौरतलब है कि राज्यसभा के प्रत्याशियों की लड़ाई पूर्व सीएम विजय बहुगुणा और श्याम जाजू के बीच आकर अटक गई है। इसी कारण 4 दिन से एक भी नामांकन नहीं हो पाया है।
जनसंपर्क अधिकारी विकास वर्मा ने माता मंगला के हवाले से यह स्पष्ट कर दिया है कि वह समाज सेवा के क्षेत्र में ही कार्यरत रहेंगे उनका राजनीति में आने का विचार न कभी था न कभी रहेगा।